July 18, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ शिव मानस पूजा ॥ रत्नैः कल्पितमासनं हिम-जलैः स्नानं च दिव्याम्बरं नाना-रत्न-विभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनं । जाती-चम्पक-बिल्व-पत्र-रचितं पुष्पं च धूपं तथा, दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत-कल्पितं गृह्यताम् ॥ १ ॥ सौवर्णे नव-रत्न-खंड-रचिते पात्रे घृतं पायसं, भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं रम्भाफलं पानकं । शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं, ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु ॥ २ ॥ छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं, वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला गीतं च नृत्यं तथा । साष्टांङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत् समस्तं मया, सङ्कल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥ ३ ॥ आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं , पूजा ते विषयोपभोग-रचना निद्रा समाधि-स्थितिः । सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्रानि सर्वा गिरो, यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनं ॥ ४ ॥ कर-चरण-कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा, श्रवण-नयनजं वा मानसं वापराधम् । विहितमविहितं वा सर्वमेतत्-क्षमस्व, जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥ ५ ॥ ॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्य-विरचिता शिव-मानस-पूजा समम्पूर्णा ॥ हे दयानिधे ! हे पशुपते ! हे देव ! यह रत्ननिर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्ना से विभूषित दिव्य वस्त्र, कस्तूरि आदि गन्ध से समन्वित चन्दन, जूही, चम्पा और बिल्वपत्र से रचित पुष्पांजलि तथा धूप और दीप – यह सब मानसिक [पूजोपहार] ग्रहण कीजिये । मैंने नवीन रत्नखण्डों से जड़ित सुवर्णपात्र में घृतयुक्त खीर, दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन, कदलीफल, शरबत, अनेकों शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल तथा ताम्बूल – ये सब मन के द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं । हे प्रभो, कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये । छत्र, दो चँवर, पंखा, निर्मल दर्पण, वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य, गान और नृत्य, साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति – ये सब मैं संकल्प से ही आपको समर्पण करता हूँ । हे प्रभु, मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये । हे शम्भो, मेरी आत्मा तुम हो, बुद्धि पार्वतीजी हैं, प्राण आपके गण हैं, शरीर आपका मन्दिर है, सम्पूर्ण विषयभोग की रचना आपकी पूजा है, निद्रा समाधि है, मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं । इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है । हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कर्णों से, नेत्रों से अथवा मन से भी जो अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणासागर महादेव शम्भो ! आप क्षमा कीजिये । हे महादेव शम्भो !, आपकी जय हो, जय हो । Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe