॥ शिव स्तुतिः ॥

धरापोऽग्निमरुद्व्योममखेशेन्द्वर्कमूर्तये ।
सर्वभूतान्तरस्थाय शङ्कराय नमो नमः ॥

१. पृथ्वी, २. जल, ३. अग्नि, ४. वायु, ५. आकाश, ६. यजमान, ७. सूर्य और ८. चन्द्ररूप से अष्टमूर्ति रूप धारण कर समस्त प्राणियों के अन्त:स्थित भगवान् शंकर को हम बारम्बार नमस्कार करते हैं ॥
श्रुत्यन्तकृतवासाय श्रुतये श्रुतिजन्मने ।
अतीन्द्रियाय महसे शाश्वताय नमो नमः ॥


श्रुतियों के सिद्धान्तभूत उपनिषत् में निवास करने वाले, श्रुति का स्वरूप धारण करने वाले तथा श्रुतियों के जन्मदाता, इन्द्रियों से अगोचर, अनिर्वचनीय तेजःस्वरूप सदाशिव को हमारा बारम्बार नमस्कार है ॥
स्थूलसूक्ष्मविभागाभ्यामनिर्देश्याय शम्भवे ।
भवाय भवसम्भूतदुःखहन्त्रे नमोऽस्तु ते ॥

स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों प्रकार के विभागों से अनिर्द्देश्य भव नाम वाले, किन्तु भवसंभूत क्लेश के विनाशकर्ता शम्भु को हमारा नमस्कार है ॥
तर्कमार्गातिदूराय तपसां फलदायिने ।
चतुर्वर्गवदान्याय सर्वज्ञाय नमो नमः ॥

तर्क मार्ग से सर्वथा अगम्य, तपस्या का फल प्रदान करने वाले तथा धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष रूप चारों पुरुषार्थों के फल देने वाले सर्वज्ञ सदाशिव को हमारा नमस्कार हैं ॥

आदिमध्यान्तशून्याय निरस्ताशेषभीतये ।
योगिध्येयाय महते निर्गुणाय नमो नमः ॥
विश्वात्मनेऽविचिन्त्याय विलसच्चन्द्रमौलिने ।
कन्दर्पदर्पकालाय कालहन्त्रे नमो नमः ॥

आदि, मध्य एवं अन्त से रहित, समस्त भीतियों को विनष्ट करने वाले योगिजनों के एक मात्र ध्येय, महान् एवं निर्गुण रूप सदाशिव को बारम्बार नमस्कार है ॥
समस्त विश्व के आत्मास्वरूप, इयत्ता से रहित, चन्द्रकला को मस्तक में धारण करने वाले, कन्दर्प के दर्प के लिये कालस्वरूप एवं अन्तकान्तक सदाशिव को बारम्बार नमस्कार हैं ॥
विषाशनाय विहरद् वृषस्कन्धमुपेयुषे ।
सरिद्दामसमाबद्धकपर्दाय नमो नमः ॥
शुद्धाय शुद्धभावाय शुद्धानामन्तरात्मने ।
पुरान्तकाय पूर्णाय पुण्यनाम्ने नमो नमः ॥
भक्ताय निजभक्तानां भुक्तिमुक्तिप्रदायिने ।
विवाससे विवासाय विश्वेशाय नमो नमः ॥

कालकूट जैसे महाविष को क्षणभर में पान करने वाले, धर्मरूप बैल के कन्धे पर सवार होकर सर्वत्र विचरण करने वाले, गङ्गा रूपी रस्सी से अपने जटाजूट को बाँधने वाले सदाशिव को हमारा बारम्बार नमस्कार है ॥
विकार रहित होने से सर्वथा शुद्ध, शुद्धभाव वाले, शुद्धों के अन्तरात्मा स्वरूप, त्रिपुर के विनाशकर्ता, पुण्यात्मा एवं पुण्य नाम वाले सदाशिव को हमारा बारम्बार नमस्कार है ॥
अपने भक्तों की स्वयं भक्ति करने वाले, भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले, वस्त्रहीन, अनिकेत, विश्वेश्वर को हमारा बारम्बार नमस्कार है ॥
त्रिमूर्तिमूलभूताय त्रिनेत्राय नमो नमः ।
त्रिधाम्नां धामरूपाय जन्मघ्नाय नमो नमः ॥
देवासुरशिरोरत्नकिरणारुणिताङ्घ्रये ।
कान्ताय निजकान्तायै दत्तार्धाय नमो नमः ॥
स्तोत्रेणाऽनेन पूजायां प्रीणयेज्जगतः पतिम् ।
भुक्तिमुक्तिप्रदं भक्त्या सर्वज्ञ परमेश्वरम् ॥

ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्र रूप तीन मूर्तियों के मूल कारण स्वरूप, त्रिनेत्र, सदाशिव को हमारा बारम्बार नमस्कार है । सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्निस्वरूप तीनों तेजों के धाम स्वरूप, प्राणियों के जन्म के चक्कर को नष्ट करने वाले सदाशिव को हमारा बारम्बार नमस्कार है ॥
देवता एवं असुरों के मुकुटों में लगी हुई मणियों की किरणों से अरुणवर्ण के चरणों से युक्त, सर्वथा मनोहर तथा अपनी प्रियतमा को अर्धाङ्ग समर्पित करने वाले सदाशिव को हमारा बारम्बार नमस्कार है ॥
साधक को भोग एवं मोक्ष प्रदान करने वाले, सर्वज्ञ, जगत्पति परमेश्वर को पूजा काल में इस स्तोत्र से अवश्य प्रसन्न करना चाहिए ॥
 

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