शिशु-रोग-निवारक ‘श्रीराम-रक्षा झारा’
मन्त्र :- ‘ॐ रोम-रोम की रक्षा राम जी करें । हाडन की रक्षा हर जी करें । टकान की रक्षा टीकम जी करें । पिण्डरी की रक्षा मोहन जी करें । गोड़न की रक्षा गोवर्धन जी करें । जाँघन की रक्षा जनार्दन जी करें । इन्द्री की रक्षा इन्द्र जी करें । कमर की रक्षा केशव जी करें । पेट की रक्षा पुरुषोत्तम जी करें । खंवान की रक्षा गरुड जी करें । कण्ठ की रक्षा कृष्ण जी करें । ओडन की रक्षा हनुमन्त जी करें । जिहवा की रक्षा पार्वती जी करें । नाक की रक्षा नरसिंह जी करें । नेत्र की रक्षा नारायण जी करें । ब्रहमाण्ड की रक्षा श्री सकलदेव शास्त्र सहाय करें । चोटी की रक्षा चतुर्भुज जी करें । आकाश की रक्षा ज्योति-स्वरूप जी करें । रैन की रक्षा चन्द्रमा जी करें । दिन की रक्षा श्रीसूर्यनारायण जी करें । धरती माता सदा रक्षा करवो करें । अनहद नाद बाजे, धन तृण माल जञ्जाल-भय व्यापै न पीरा । अण्डे सो ब्रहण्ड परख डोलै । खण्डे – खण्डे झल होय, तो झल को मारूँ । घाव होय, तो घाव कूँ मारूँ । छल – छिद्र होय, तो छल – छिद्र को मारूँ । जल में, थल में, फूल में, दठकर बाँधो । पाल बीज जमानन दे गया । श्रीब्रह्मा-विष्णू-मुरार तल झडै, पिण्डवा पडै । जहाँ बैठे, बाबा हनमून्त हुँकार करे । हाट हौड़ काया, जामें शब्द समाया । राख – राख हो निरञ्जना सरनाई तेरी । आल जञ्जाल भय व्यापैं न पीडा । चौकी फिर गए बावना बीरा । इत के राम – रक्षा सत्य करे । भाषी सत्य – नाम सत्य-वीर सत्य-नाम आदेश गुरु का । शब्द साँचा, पिण्ड काचा । फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा ।’

विधि : पर्व-काल या ग्रहण-काल में उक्त मन्त्र का १०८ बार ‘जप’ करके सिद्ध करे । बाद में उक्त मन्त्र को २१ बार पढ़ते हुए किसी रोग-युक्त शिशु या बालक को मोर-पंख से झारे । इससे बालक के सभी रोग शान्त हो जाते हैं और वह नीरोग होता है । यथा-शक्ति परमार्थ करे ।
विशेष : अन्यत्र उक्त मन्त्र में निम्न प्रकार से पाठ-भेद मिलते हैं : १ ‘ब्रहण्ड’ के स्थान पर ‘बह्माण्ड’ । २ ‘परख-मरख’ । ३ ‘घातकूं-घातकों’ । ४ ‘व्यापैं’- ‘व्यायैं ।

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