श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना

‘कलौ चण्डी-विनायकौ’– कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। ‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी’ साधना को प्रवहमान करने वाली मूल शक्ति है। यहाँ भगवान् गणेश की साधना की एक सरल विधि प्रस्तुत है।

वैदिक-साधनाः

यह साधना ‘श्रीगणेश चतुर्थी’ से प्रारम्भ कर ‘चतुर्दशी’ तक (१० दिन) की जाती है। ‘साधना’ हेतु “ऋद्धि-सिद्धि” को गोद में बैठाए हुए भगवान् गणेश की मूर्ति या चित्र आवश्यक है।

विधिः पहले ‘भगवान् गणेश’ की मूर्ति या चित्र की पूजा करें। फिर अपने हाथ में एक नारियल लें और उसकी भी पूजा करें। तब अपनी मनो-कामना या समस्या को स्मरण करते हुए नारियल को भगवान् गणेश के सामने रखें। इसके बाद, निम्न-लिखित स्तोत्र का १०० बार ‘पाठ’ करें। १० दिनों में स्तोत्र का कुल १००० ‘पाठ’ होना चाहिए। यथा-

स्वानन्देश गणेशान्, विघ्न-राज विनायक !

ऋद्धि-सिद्धि-पते नाथ, संकटान्मां विमोचय।।१

पूर्ण योग-मय स्वामिन्, संयोगातोग-शान्तिद।

ज्येष्ठ-राज गणाधीश, संकटान्मां विमोचय।।२

वैनायकी महा-मायायते ढुंढि गजानन !

लम्बोदर भाल-चन्द्र, संकटान्मां विमोचय।।३

मयूरेश एक-दन्त, भूमि-सवानन्द-दायक।

पञ्चमेश वरद-श्रेष्ठ, संकटान्मां विमोचय।।४

संकट-हर विघ्नेश, शमी-मन्दार-सेवित !

दूर्वापराध-शमन, संकटान्मां विमोचय।।५

उक्त स्तोत्र का पाठ करने से पूर्व अच्छा होगा, यदि निम्न-लिखित मन्त्र का १०८ बार ‘जप’ किया जाए। यथा-

“ॐ श्री वर-वरद-मूर्त्तये वीर-विघ्नेशाय नमः ॐ”

साधना-काल में (१० दिन) साधना करने के बाद दिन भर उक्त मन्त्र का मन-ही-मन स्मरण करते रहें। ११ वें दिन, पहले दिन जो नारियल रखा था, उसे पधारे (फोड़कर) ‘प्रसाद’ स्वरुप अपने परिवार में बाँटे। ‘प्रसाद’ किसी दूसरे को न दें

इस साधना से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। सभी समस्याएँ, बाधाएँ दूर होती है।

ganesh with ridhi sidhi

 

 

 

 

 

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