August 22, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ श्रीकृष्ण – अष्टाक्षर मन्त्र ॥ 1. मन्त्रः- क्लीं हृषीकेशाय नमः । हृषिकेश-पद डेऽन्त नमोऽन्त काम-पूर्वक अष्टाक्षरो मनु प्रोक्त समस्त पुरुषार्थद – (बृहद् तन्त्रसार, मन्त्र महोदधि) विनियोग- अस्य श्रीगोविन्दमन्त्रस्य त्रैलोक्यमोहनाख्य ऋषिर्गायत्री छन्दः त्रैलोक्यमोहनो देवताऽभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः- श्रीगोविन्दमन्त्रस्य त्रैलोक्यमोहनाख्य ऋषये नमः शिरसि । गायत्री छन्दसे नमः मुखे । त्रैलोक्यमोहनो देवताय नमः हृदि । विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे । करन्यासः- ॐ क्लां अंगुष्ठाभयां नमः । ॐ क्लीं तर्जनीभ्या नमः । ॐ क्लूँ मध्यमाभ्यां नमः । ॐ क्लैं अनामिकाभ्यां नमः । ॐ क्लौं कनिष्ठीकाभ्या नमः । ॐ क्लः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । षडङ्गन्यास – ॐ क्लां हृदयाय नमः । ॐ क्लीं शिरसे स्वाहा । ॐ क्लूँ शिखायै वौषट् । ॐ क्लैं कवचाय हुम् । ॐ क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ क्लः अस्त्राय फट् ॥ ध्यानम् कल्पानोकहमूलसंस्थितवयो राजोन्नता सस्थितं पौष्पं बाणमथेक्षुचापकमले पाशांकुशे बिभ्रतम् । चक्रं शङ्ख गदे करैरुदधिजा संश्लिष्टदेहं हरि नानाभूषणरक्तलेपकुसुमं पीताम्बरं संस्मरेत् ॥ कल्पवृक्ष के नीचे गरुड के ऊंचे कन्धे पर विराजमान, अपने आठों हाथों में क्रमशः पुष्पबाण, इक्षुचाप, कमल, पाश, अंकुश, चक्र, शंख, और गदा धारण किए हुये, लक्ष्मी से आलिङ्गत शरीर वाले, अनेकानेक आभूषणों से विभूषित, रक्त चन्दन, पुष्प एवं पीताम्बरालंकृत श्री गोविन्दगोपाल का ध्यान करना चाहिए ॥ इस प्रकार ध्यान कर उक्त मन्त्र का १२ लाख जप करना चाहिए । तदननतर, मधु, घी, शर्करा मिश्रित पलाश पुष्पों से १२ हजार की संख्या में अग्नि में आहुतियाँ देनी चाहिए ॥ फिर जल से १२ हजार तर्पण करना चाहिए । विमलादि पीठ पर प’क्षिराजाय स्वाहा’ मन्त्र से गरुड का पूजन करना चाहिए । फिर गरुड पर श्रीगोविन्द का आवाहनादि उपचारों से लेकर पुष्पाञ्जलि समर्पण पर्यन्त विधिवत् पूजन कर पुनः पुष्पाञ्जलि प्रदान कर उनसे आवरण पूजा की आज्ञा ले आवरण पूजा प्रारम्भ करे ॥ आवरण पूजा के लिए वृत्ताकार कर्णिका अष्टदलं एवं भूपुर सहित यन्त्र लिखकर पूर्वोक्त विमलादि शक्तियों से युक्त पीठ पर भगवान् के आसनभूत गरुड को ‘पक्षिराजाय नमः’ इस मन्त्र से आवाहन तथा पूजन कर, गोविन्द के मूल मन्त्र से श्रीगोविन्द के विग्रह की भावना कर पूजा करनी चाहिए । फिर उनके शिर आदि अङ्गों में स्थित मुकुटादि का इस प्रकार पूजन करे । यथा – ॐ मुकुटाय नमः, शिरसि, ॐ कुण्डलाभ्यां नमः, कर्णयोः, ॐ शंखया नमः, ॐ चक्राय नमः, ॐ गदायै नमः, ॐ पद्माय नमः, ॐ पाशाय नमः, ॐ अंकुशाय नमः, ॐ इक्षुधनुषे नमः, ॐ पुष्पशरेभ्यो नमः, अष्टभुजासु । श्रीवत्साय नमः, कौस्तुभाय नमः, हृदि, वनमालायै नमः, कण्ठे, पीताम्बराय नमः, कटिप्रदेशे, श्रियै नमः, वामाङ्गे । इसके पश्चात् आग्नेयादि कोणों में मध्य में तथा चतुर्दिक् में षडङ्गपूजा करे । यथा – क्लां हृदयाय नमः आग्नेये । क्लीं शिरसे स्वाहा नैऋत्ये । क्लूं शिखायै वषट् वायव्ये । क्लैं कवचाय हुम् ऐशान्ये । क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट् मध्ये । क्लः अस्त्राय फट् चतुर्दिक्षु । तदनन्तर पूर्वोदि चारों दिशाओं तथा कोणों में पञ्चवाणों की यथा – द्रां शोषणबाणाय नमः, पूर्वे । द्रीं मोहनबाणाय नमः, दक्षिणे । क्लीं सन्दीपनबाणाय नमः, पश्चिमे । ब्लूं तापनबाणाय नमः उत्तरे । सः मादनबाणाय नमः, कोणेषु । फिर अष्टदल में पूर्वादि अनुलोम क्रम से लक्ष्मी आदि शक्तियों की यथा – ॐ लक्ष्म्यै नमः पूर्वदले । ॐ सरस्वत्यै नमः आग्नेयदले । ॐ रत्यै नमः दक्षिणदले । ॐ प्रीत्यै नमः नैऋत्यदले । ॐ कीर्त्यै नमः पश्चिमदले। ॐ कान्त्यै नमः वायव्यदले । ॐ तुष्टयै नमः उत्तरदले । ॐ पुष्टयै नमः ऐशान्यदले । इसके बाद भूपुर में इन्द्रादि दश दिक्पालों की तथा उसके बाहर उनके वज्रादि आयुधों की पूर्ववत् पूजा करनी चाहिए । इस प्रकार आवरण पूजा करने के पश्चात पुनः त्रैलोक्यमोहन श्रीगोविन्द का धूप दीपादि उपचारों से पूजन करना चाहिए । काम्य प्रयोग – साधक प्रतिदिन प्रातः काल में विजयापुष्प मिश्रित जल से १०८ बार एक महीना पर्यन्त तर्पण करता है, उसे वाञ्छित फल की प्राप्ति होती है ॥ विधिवत् स्थापित अग्नि में इस मन्त्र द्वारा १० हजार आहुतियाँ देवे तथा हुत शेष घृत को प्रोक्षणी पात्र में छोडता रहे, पुनः उस संस्रव घृत को १० हजार बार इस मन्त्र से अभिमन्त्रित कर, पत्नी उस घृत को अपने पति को खिला दे, तो ऐसा करने से उसका पति वश में हो जाता है ॥ ‘क्लीं’ इस एकाक्षर मन्त्र के पूजन आदि की विधि उक्त मन्त्रों के समान है । यह मन्त्र विशेष रुप से स्त्री समुदाय को मोहित करने वाला है ॥ 2. श्रीकृष्ण का अन्य अष्टाक्षर मन्त्र है – श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय स्वाहा । बृहद् तन्त्रसार । यह मन्त्र कल्पवृक्ष के समान है । इस मन्त्र की साधना से साधक की सभी कामनायें पूरी होती हैं । ऋष्यादि न्यास – शिरसि नारदऋषये नमः। मुखे अनुष्टुप्छन्दसे नमः। हृदि कृष्णाय देवतायै नमः । कर-षडङ्गन्यासादि उपरोक्तानुसार ध्यान कलापकुसुमश्यामं वृन्दावनगतं हरिम् । गोपगोपीगवावीतं पीतवस्त्रयुगावृतम् ॥ नानालङ्कारसुभगं कौस्तुभोद्भासिवक्षसम् । सनकादिमुनिश्रेष्ठैः संस्तुतं परया मुदा । शंखचक्रलसद् बाहुं वेणुहस्तद्वयेरितम् ॥ कलापपुष्प के समान श्याम वर्ण हैं । वृन्दावनवासी गोप, गोपी और बछड़ों से वेष्टित हैं । दो पीताम्बर धारण किए हुए हैं । विविध आभूषणों से अलंकृत भगवान् का ध्यान करे । वक्षःस्थल कौस्तुभ मणि से प्रकाशित है । सनकादि श्रेष्ठ मुनि अतीव आनन्द से उनकी स्तुति कर रहे हैं । उनके एक हाथ में शंख, दूसरे हाथ में चक्र और अन्य दो हाथों से वे मुरली बजा रहे हैं । 3. उत्तिष्ठ श्रीकृष्ण स्वाहा मनुरष्टाक्षरो मतः – उत्तिष्ठ श्रीकृष्ण स्वाहा ‘मेर-तन्त्र’ । ऋषि वामदेव, छन्द पंक्ति, देवता विष्णु । ‘१ भीषय भीषय हुं, २ त्रासय त्रासय हुं, ३ प्रमर्दय प्रमर्दय हुं, ४ प्रध्वंसय प्रध्वंसय हुं, ५ रक्षय रक्षय हुं’ से क्रमशः पञ्चाङ्ग-न्यास कर मूल मन्त्र के अन्त में ‘हुं’ जोडकर छठा न्यास कर षडङ्ग-न्यास पूर्ण करे । ध्यान दुग्धाम्भोधौ सित-द्वीप नाना-मणिगणैर्युतम्, वनं सचिन्तयेत् त्तत्र सकलर्तु-समन्वितम् । न्यासोक्ताभरणैः शस्त्रैरुपेतं दीप्त-तेजसम्, सुरासुरर्षि-प्रमुखैः सेवितं चाप्सरो-गणैः । पुरश्चरण मे आठ लाख जप कर दुग्धाक्त विल्व समिधा से दशांश होम । 4. मन्त्रस्तु- श्रीकृष्ण शरणं मम ‘मेरु तन्त्र’ । मन्त्र के चार पदो और सम्पूर्ण मन्त्र से पञ्चाङ्ग न्यास । शेप विधि दशाक्षरमन्त्र-वत् । 5. मन्त्रस्तु- क्लीं गोवल्लभाय स्वाहा । (मन्त्र महोदधि) इस मन्त्र के ब्रह्मा ऋषि हैं, गायत्री छन्द है तथा कृष्ण देवता है मन्त्र के दो दो वर्णो से तथा समस्त मन्त्र से पञ्चाङ्गन्यास करना चाहिए । ध्यान हरिं पञ्चवर्ष व्रजे धावमानं स्वसौन्दर्यसम्मोहित स्वर्गयोषम् । यशोदासुतं स्त्रीगणैर्दृष्टकेलिं भजे भूषितं भूषणैर्नूपुराद्यैः ॥ पाँच वर्ष की आयु वाले, ब्रज में क्रीडा करते हुये अपने सौन्दर्य से अप्सराओं को मोहित करते हुये, तथा ब्रजाङ्गनाओं से देखी जाने वाले क्रीडा वाले, नूपुर आदि आभूषणों से अलंकृत यशोदानन्दन श्रीकृष्ण का ध्यान करना चाहिए ॥ बाल-गोपाल मन्त्र – (बृहद् तन्त्रसार) 6. कृष्णगोविन्दको ङेऽन्तौ कामाद्यश्चाष्टवर्णकः ॥ – क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय । 7. दधिभक्षणाय वह्निवल्लमान्तोऽष्टवर्णकः ॥ – दधि-भक्षणाय स्वाहा । 8. सुप्रसन्नात्मने प्रोक्तो नमः इत्यपरोऽष्टकः ॥ – सुप्रसन्नात्मने नमः । उक्त मन्त्रों के नारद ऋषि, गायत्री छन्द तथा गोपाल देवता हैं एवं ध्यान – अव्याद्व्याकोषनीलाम्बुजरुचिररुणाम्भोजनेत्रोऽम्बुजस्थो बालो जङ्घाकटीरस्थलकलितरणत्किङ्किणीको मुकुन्दः । दोर्भ्यां हैयङ्गवीनं दधदतिविमलं पायसं विश्ववन्धो गोगोपीगोपवीतोरुरुनखविलसत्कण्ठभषश्चिरं वः ॥ गोपाल के शरीर की आभा विकसित नीलकमल के समान है । दोनों आँखें लाल कमल के समान सुन्दर है । वे बाल वेष में कमल के ऊपर नर्तनरत है । पैरों और कमर में नूपुर और करधनी गूंजनरत हैं । एक हाथ में मक्खन और दूसरे हाथ में खीर लिए हुए हैं । जगत् पूज्य बाल गोपाल गायों, ग्वालों और गोपियों से घिरे हुए हैं । गले में बघनखा है । ऐसे बाल गोपाल हमारी रक्षा सदैव करें । 9- ऊर्ध्वदन्तयुतः शार्ङ्गी चक्री दक्षिणकर्णयुक् । मांसं नाथाय नत्यन्तो मूलमन्त्रोऽष्टवर्णकः ॥ – गोकुलनाथाय नमः ऋष्यादि न्यास – ब्रह्मणे ऋषये नमः शिरसि । गायत्रीछन्दसे नम: मुखे । कृष्णाय देवतायै नमः हृदये । करन्यास – गोकु अंगुष्ठाभ्यां नमः । लना तर्जनीभ्यां स्वाहा । थाय मध्यमाभ्यां वषट् । नमः अनामिकाभ्यां हुं । गोकुलनाथाय नम: कनिष्ठाभ्यां फट् । पञ्चाङ्ग न्यास – गोकु हृदयाय नमः । लना शिरसे स्वाहा । थाय शिखायै वषट् । नमः कवचाय हुं । गोकुलनाथाय नमः अस्त्राय फट । ध्यान पञ्चवर्षमतिदृप्तमङ्गने धावमानमतिचञ्चलेक्षणम् । किङ्किणीवलयहारनूपुरैरञ्चितं नमत गोपबालकम् ॥ बाल गोपाल पाँच वर्ष के बालक हैं । चञ्चल स्वभाव है। आंगन में दौड़ रहे हैं । आँखें चंचल हैं । करधनी, कंगन, हार, नूपुर आदि आभूषणों से विभूषित हैं । ऐसे बाल गोपाल भगवान को नमस्कार है। उक्त प्रकार से ध्यान करके पूजन करे । पुरश्चरण में आठ लाख जप कर पलाश की समिधा या खीर से आठ हजार हवन करे । घर में उक्त मूर्ति की स्थापना करके इस मन्त्र से नित्य पूजा करे । आवरण पूजा इस प्रकार का है यन्त्र के मध्य बिन्दु में ॐ हरये नम: से पूजा करे । चारो दिशाओं और मध्य में पञ्चाङ्ग न्यास के मन्त्रों से पञ्चाङ्गों का पूजन करे । अष्टदल में पूर्वादि क्रम से ॐ वासुदेवाय नमः । ॐ सङ्कर्षणाय नमः । ॐ प्रद्युम्नाय नमः । ॐ अनिरुद्धाय नमः । ॐ रुक्मिण्यै नमः । ॐ सत्यभामाय नमः । ॐ लक्ष्मणायै नमः । ॐ जाम्बवत्यै नम: से पूजन करे । भूपुर में इन्द्रादि दश दिक्पालों और वज्रादि आयुधों की पूजा करे । प्रतिदिन इस मन्त्र के जप से सभी सम्पत्ति का लाभ होता है और अन्त में ब्रह्मपद की प्राप्ति होती है । Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. 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