॥ श्रीकृष्ण एकाक्षरी मन्त्र  ॥
॥ क्लीं ॥
॥ ग्लौं ॥
॥ कृः ॥
॥ कृं ॥

1. श्रीकृष्ण के एकाक्षर मन्त्र (वृहद तन्त्रसार) ‘क्लीं’ का जप करके साधक तीनों लोकों को मुग्ध कर सकता है ।
पूजा – सामान्य पूजा पद्धति से प्रातःकृत्यादि करके विष्णुमन्त्रोक्त पीठन्यास करे । उसके ऊपर ‘पक्षिराजाय स्वाहा’ पीठमन्त्र का न्यास करे।

तब इस प्रकार ऋष्यादि न्यास करे –  सम्मोहनऋषये नम: शिरसि । गायत्री छन्दसे नमः मुखे । त्रैलोक्यसम्मोहनाय विष्णवे नमः हृदये ।

करन्यास – क्लां अंगुष्ठाभ्यां नम: । क्लीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । क्लूं मध्यमाभ्यां वषट् । क्लैं अनामिकाभ्यां हुं । क्लौं कनिष्ठाभ्यां वौषट् । क्लः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट ।

अंगन्यास – क्लां हृदयाय नमः । क्लीं शिरसे स्वाहा । क्लूं शिखायै वषट् । क्लैं कवचाय हुं । क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट् । क्लः अस्त्राय फट ।

वाणन्यास – अंगुष्ठे द्रां शोषणवाणाय नमः । तर्जन्योः द्रीं मोहनवाणाय नमः । मध्यमयोः क्लीं सन्दीपनवाणाय नमः । ब्लूं तापनवाणाय नम: अनामिकयोः । कनिष्ठयोः स: मादनवाणाय नमः ।

निम्नवत् ध्यान करे –
भग्नविद्रुमसङ्काशं सर्वतेजोमयं वपुः ।
किरीटिनं कुण्डलिनं केयूरवलयान्वितम् ॥
मुक्तासद्ररत्नसनद्धतुलाकोटिसमुज्ज्वलम् ।
नानालङ्कारसुभगं पीताम्बरयुगान्वितम् ॥
गरुड़ोपरि सन्नद्धं रक्तपङ्कजमध्यगम् ।
उत्तप्तहेमसङ्काशां लक्ष्मी वामोरुसंस्थिताम् ॥
सर्वालङ्कारसुभगां शुक्लवासो युगावृताम् ।
सकामां लीलया देवं मोहयन्तं पुनः पुनः ॥
शंखचक्रगदापद्मपाशाङ्कुशधनुःशरान् ।
धारयन्त्रं जगत्राथं रक्तपद्मारुणेक्षणम् ॥

भगवान् जगन्नाथ का शरीर सभी प्रकार के तेजों से युक्त है । टूटे हुए मूंगे के समान उसकी कान्ति है । मस्तक पर मुकुट, कानों में कुण्डल, भुजाओं में केयूर और कंगन हैं । दोनों पैर मोतियों और विविध रत्नों वाले नूपुर से शोभित हैं । विविध आभूषणों से सुशोभित दो पीले वस्त्र धारण किए हुए हैं । गरुड़ के ऊपर लाल कमल पर विराजमान हैं । तपे हुए सोने जैसी आभावाली लक्ष्मी देवी उनकी बाँयी जंघा पर आसीन हैं । लक्ष्मी सभी आभूषणों और दो श्वेत वस्त्रों से भूषित हैं । वे सकामा देवी अपनी लीला से भगवान् को निरन्तर मुग्ध किए रहती हैं । भगवान् अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म, पाश, अंकुश, धनुष और वाण लिए हुए हैं । उनके नेत्र लाल कमल के समान रक्ताभ हैं ।

ध्यान के बाद मानसोपचारों से पूजा करके शंखस्थापन करे । तब पीठन्यास के क्रम से पीठपूजा करे । तब ध्यान-आवाहनादि से पञ्च पुष्पाञ्जलिदान तक की सभी क्रियायें करे ।
षडंग पूजन करे – ॐ क्लां हृदयाय नमः । ॐ क्लीं शिरसे स्वाहा । क्यूँ शिखायै वषट् । क्लैं कवचाय हूं । क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट् । क्लः अस्त्राय फट् ।
इसके बाद देवशरीर में पञ्च वाणों की पूजा करे ।
मस्तके द्रां शोषणवाणाय नमः । मुखे द्रीं मोहनवाणाय नमः। हृदि क्लीं सन्दीपनवाणाय नमः । गुह्ये ब्लूँ तापनवाणाय नमः । पादे सः मादनवाणाय नमः । इसके बाद आवरण पूजन करे ।
यन्त्र के मध्य बिन्दु में स्थित देव के शरीर में निम्न मन्त्रों से पूजन करे – ॐ किरीटाय नमः । ॐ कुण्डलाय नमः । ॐ शंखाय नमः । ॐ चक्राय नमः । ॐ गदाय नमः ।
ॐ पद्माय नमः । ॐ पाशाय नमः । ॐ अंकुशाय नमः । ॐ धनुषाय नमः । ॐ शराय नमः । स्तन के उर्ध्वभाग में – ॐ श्रीवत्साय नमः । ॐ श्रीकौस्तुभाय नमः । गले में – ॐ वनमालायै नमः । नितम्ब में – ॐ पीतवसनाय नमः । वामांग में – श्री लक्ष्म्यै नमः ।
केशरों में अग्न्यादि कोणों, मध्य और चारो दिशाओं में क्लां हृदयाय नमः इत्यादि से षडंग पूजन करे । तब पूर्वादि चारो दिशाओं में द्रां शोषणवाणाय नमः इत्यादि से चार वाणों का पूजन चार कोणों में करे । सः मादनवाणाय नमः से पञ्चम वाण की पूजा करे ।
अष्टदल में पूर्वादि क्रम से – ॐ लक्ष्म्यै नमः । ॐ सरस्वत्यै नमः । ॐ रत्यै नमः । ॐ प्रीत्यै नमः । ॐ कीर्त्यै नमः । ॐ कान्त्यै नमः । ॐ तुष्टयै नमः । ॐ पुष्टयै नमः ।
भूपुर में इन्द्रादि दश लोकपालों का पूजन करे । वज्रादि के पूजन का विधान यहाँ नहीं है ।
धूपादि से विसर्जन तक के सारे कर्म करके पूजन का समापन करे ।
इस यन्त्र के पुरश्चरण में बारह लाख जप और त्रिमधुराक्त खीर से एक लाख बीस हजार हवन करे । यदि अशक्त हो तो बारह हजार हवन और बारह हजार तर्पण करे ।

मेरु-तन्त्र में उद्धार भिन्न शब्दों में दिया गया है – ‘काम बीजात्मको मन्त्रो’ ‘क्लीं’ । ऋषि का नाम ‘मोहन नारद’ छन्द ‘गायत्री’ देवता ‘सम्मोहन कृष्ण’ बताया गया है ध्यान इस प्रकार है –
वृन्दारक-द्रुमौघेन विलसत्-कल्प शाखिनः ।
मूले लसत्-स्थली-राजद्-रत्न-सिंहासनोपरि ॥
वाम-स्कन्धे पक्षि-पत्रे स्थितं बम्धूक-सन्निभम् ।
अरि-शङ्ख-सृणीन्-पाशं पुष्प-बाणेक्षु-कार्मुकम् ॥
पद्मं गदां च हस्ताजैरष्टाभिर्दधतं निजैः ।
घूर्ण-नेत्रं कुण्डलिनं हारिणं-सु-किरीटिनम् ॥
किङ्किणी-नूपुराद्यैश्च मुद्रिका-रत्न-माल्यकैः ।
पीताम्बरै रक्त-लेपैर्युक्तं वामोरुगां रमाम् ॥
आलिङ्गन्तं वाम-बाहु-धृत-पद्मावलिं विभुम् ।
जगत्-सम्मोहन कृष्णं ध्याये पूर्ण-समाहितः ॥

स्रोत अज्ञात ‘क्लीं’
विनियोगः- ब्रह्मा ऋषिः –
निचृत् गायत्री छन्दः – श्रीकृष्णो देवता – श्रीकृष्णप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥
हृदयादिन्याद –
ॐ पूर्णज्ञानात्मने हृदयाय नमः । ॐ पूणैश्वर्यात्मने शिरसे स्वाहा । ॐ पूर्णपरमात्मने शिखायै वषट् । ॐ पूर्णानन्दात्मने कवचाय हुं । ॐ पूर्णतेजात्मने नेत्राभ्यां वौषट् । ॐ पूर्णशक्त्यात्मने अस्त्राय फट् ।
ध्यानम्
ध्यायेद्धरिं मणिनिभं जगदेकवन्द्यं
सौन्दर्यसारमरिशङ्खवराभयानि ।
दोर्भिर्दधानमजितं सरसं सभैष्मी-
सत्यासमेतमखिलप्रदमिन्दिरेशम् ॥

2. ग्लौमित्येकाक्षरो मन्त्रो – “ग्लौं”
‘मेर-तन्त्र’ । ऋषि नारद, छन्द जगती, देवता श्रीकृष्ण, वीज ‘ग’, शक्ति ‘ॐ’ ‘गा गी’ इत्यादि से पडङ्ग-न्यास ।
ध्यान –
कदम्बमूले क्रीडन्तं वृदावननिवासिनम् ।
पद्मोपरि स्थितं वन्दे वेणुं गायन्तमीश्वरम् ॥
पीताम्बरधरं देवं वनमालाविभूषितम् ।
गोपीभिर्गोपवृन्दैश्च सेवितं कृष्णमर्चयेत् ॥

पुरश्चरण में एक लाख जप कर घृत से दशाश होम ।

3. बाल-गोपाल-मन्त्र:- चक्री वसु-स्वर-युतः सर्ग्येकार्णो ! मनुर्मतः – “कृः”
वृहद तन्त्रसार ।
ऋष्यादि न्यास – शिरसि नारदऋषये नमः । मुखे गायत्रीछन्दसे नमः । हृदि गोपालदेवतायै नमः ।
करन्यास – क्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः । क्लीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । क्लूं मध्यमाभ्यां वषट् । क्लैं अनामिकाभ्यां हुं । क्लौं कनिष्ठाभ्यां वौषट् । क्लः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।
हृदयादि षडंगन्यास – क्लां हदयाय नमः । क्लीं शिरसे स्वाहा । क्लूं शिखायै वषट् । क्लैं कवचाय हुं । क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट् । क्लः अस्त्राय फट् ।
मुद्रादि प्रदर्शन करके निम्नवत् ध्यान करे –
अव्याद्व्याकोषनीलाम्बुजरुचिररुणाम्भोजनेत्रोऽम्बुजस्थां
बालो जङ्घाकटीरस्थलकलितरणत्किङ्किणीको मुकुन्दः ।
दोर्भ्यां हैयङ्गवीनं दधदतिविमलं पायसं विश्ववन्द्यो
गोगोपीगोपवीतोरुरुनखविलसत्कण्ठभषश्चिरं वः ॥

गोपाल के शरीर की आभा विकसित नीलकमल के समान है । दोनों आँखें लाल कमल के समान सुन्दर है । वे बाल वेष में कमल के ऊपर नर्तनरत है । पैरों और कमर में नूपुर और करधनी गूंजनरत हैं । एक हाथ में मक्खन और दूसरे हाथ में खीर लिए हुए हैं । जगत् पूज्य बाल गोपाल गायों, ग्वालों और गोपियों से घिरे हुए हैं । गले में बघनखा है । ऐसे बाल गोपाल हमारी रक्षा सदैव करें ।
इसके बाद मानस पूजन करे । शंखस्थापन करे । विष्णुमन्त्रोक्त पीठन्यास, पीठपूजा करके पुनः ध्यान करे । आवाहनादि से पञ्च पुष्पाञ्जलिदान तक की सभी क्रियायें करे । तब आवरण पूजा करे । पद्मकेशर के अग्नि. नैर्ऋत्य, वायव्य और ईशान कोणों में, मध्य में और चतुर्दिक उपर्युक्त षडंग न्यास मन्त्रों से षडंग पूजन करे । अष्टदल में नारदादि का पूजन करे – ॐ नारदाय नमः । ॐ पर्वताय नमः । ॐ जिष्णवे नमः । ॐ निशठाय नमः । ॐ उद्धवाय नमः । ॐ विष्वक्सेनाय नमः । ॐ शौनेयाय नमः । भूपुर में इन्द्रादि दश दिक्पालों और वज्रादि आयधों का पूजन करे । तब धूपादि विसर्जन तक की क्रिया करे । पुरश्चरण में एक लाख जप और घी-मिश्रीयुक्त खीर से दश हजार हवन करे ।

4. बाल-गोपाल :- कृमित्येकाक्षरो मन्त्र सर्व-काम-समृद्धिद – “कृं”
‘मेरु-तन्त्र’ । ऋपि नारद, छन्द गायत्री, देवता बाल-गोपाल । ‘क्लीं क्लीं’ इत्यादि से षडङ्गन्यास । ध्यान –
कृष्णं पद्मासन गुञ्जत्-किङ्किणी-लसत्-कटिं,
हस्ताभ्या नवनीत च पायसं चापि विभ्रतम् ।
कण्ठ-देशे व्याघ्र-नखं स्वर्ण-पट्ट विराजित,
मेघ-श्याम च परितो गोप गोपी-जनावृतम् ॥

पुरश्चरण मे एक लाख जप कर पायस और घृत से दशाश होम ।

 

 

 

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