June 6, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ श्रीकृष्ण के विभिन्न मन्त्र ॥ * द्वादशाक्षर मन्त्र- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।” (जप-संख्या–१२ लाख) * बालगोपाल अष्टाक्षर मन्त्र- “ॐ गोकुलनाथाय नमः ।” * बालगोपालमन्त्र – (१) ‘ॐ क्लीं कृष्ण क्लीं नमः ।’ (२) ‘ॐ क्लीं कृष्ण क्लीं ।’ * बालगोपाल के अट्ठारह प्रसिद्ध मन्त्र – बालगोपाल के अठारह मन्त्र बहुत ही प्रसिद्ध हैं । किसी एक के द्वारा भगवान् की आराधना करने से साधक का अभीष्ट सिद्ध होता है । यहाँ उन मन्त्रों का संक्षेप में स्वरूपनिर्देश किया जाता है – (१) ॐ कृः । (एकाक्षर) (२) ॐ कृष्ण । (द्व्यक्षर) (३) ॐ क्लीं कृष्ण । (त्र्यक्षर) (४) ॐ क्लीं कृष्णाय । (चतुरक्षर) (५) ॐ कृष्णाय नमः । (पञ्चाक्षर) (६) ॐ क्लीं कृष्णाय क्लीं । (पञ्चाक्षर) (७) ॐ गोपालाय स्वाहा । (षडक्षर) (८) ॐ क्लीं कृष्णाय स्वाहा । (षडक्षर) (९) ॐ क्लीं कृष्णाय नमः । (षडक्षर) (१०) ॐ कृष्णाय गोविन्दाय । (सप्ताक्षर) (११) ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय क्लीं । (सप्ताक्षर) (१२) ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय । (अष्टाक्षर) (१३) ॐ दधिभक्षणाय स्वाहा । (अष्टाक्षर) (१४) ॐ सुप्रसन्नात्मने नमः । (अष्टाक्षर) (१५) ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय क्लीं । (नवाक्षर) (१६) ॐ क्लीं ग्लौं श्यामलाङ्गाय नमः । (नवाक्षर) (१७) ॐ बालवपुषे कृष्णाय स्वाहा । (दशाक्षर) (१८) ॐ बालवपुषे क्लीं कृष्णाय स्वाहा । (एकादशाक्षर) प्रातःकाल के सारे नित्यकृत्य समाप्त होने के पश्चात् इनमें से किसी एक का जप करना चाहिये । इन सब मन्त्रों के ऋषि नारद हैं, गायत्री छन्द है और श्रीकृष्ण देवता हैं । पौराणिक मन्त्र- “तासामाविरभूच्छौरिः स्मयमान मुखाम्बुजः । पीताम्बरधरः स्रग्वी साक्षान्मन्मथमन्मथः ॥” (श्रीमद्भागवत १० । ३२ । २) -इस मन्त्र की एक माला जप करके ‘ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा ।’ इस मन्त्र को कम-से-कम ११ माला का जप प्रतिदिन शुद्ध होकर करे । ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है । * कल्पवृक्षस्वरूप अष्टाक्षर कृष्ण-मन्त्र – “श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय नमः ।” (देवीभागवत ९ । ४८ । १५-१६) * षडक्षर कृष्ण-मन्त्र – “ॐ क्लीं कृष्णाय नमः ।” * पुराणोक्त कृष्ण-मन्त्र – ‘जय कृष्ण नमस्तुभ्यम्’ फाल्गुन के शुक्लपक्ष में ‘सुगतिद्वादशी’ का व्रत करनेवाला ‘जय कृष्ण नमस्तुभ्यम्’ मन्त्र से एक वर्ष तक श्रीकृष्ण की पूजा करे । ऐसा करने से मनुष्य भोग और मोक्ष-दोनों प्राप्त कर लेता है । (अग्निपुराण १८८ । १४) * श्रीवल्लभाचार्य द्वारा प्रकटित शुद्धाद्वैत सम्प्रदाय का अष्टाक्षर भगवन्नाम-महामन्त्र – ‘श्रीकृष्णः शरणं मम ।’ * गोपाल-गायत्री – ‘ॐ कृष्णाय विद्महे दामोदराय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ।’ * पुत्रप्रद चार कृष्ण-मन्त्र – (१) पुत्रप्रद कृष्ण-मन्त्र (१) – “ॐ नमो भगवते जगदात्मसूतये नमः ।” (जप-सं.-३ लाख; फल-पुत्र-प्राप्ति) (२) पुत्रप्रद कृष्ण-मन्त्र (२) – ‘देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥’ (जप-सं.-१ लाख; फल-पुत्र-प्राप्ति) प्रौढ़ावस्था में भी पुत्र न हो तो यज्ञोपवीत धारण करके श्रीकृष्ण या गणेश के मन्दिर में अथवा गोशाला या पीपल, गूलर या कदम्ब-वृक्ष के नीचे बैठकर कमल, कदम्ब या तुलसी की माला पर इस मन्त्र का प्रतिदिन पाँच हजार, ढाई हजार या एक सहस्र जप करे । इस प्रकार एक लाख जप पूरा हो जाने पर दशांश हवन, तर्पण, मार्जन कर ब्राह्मणों को खीर, मालपुआ, पूड़ी का भोजन कराये । ऐसा करने से श्रीकृष्ण की कृपा से पुत्र प्राप्त होता है । (३) पुत्रप्रद कृष्ण-मन्त्र (३) – “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥’ (जप-सं.-३ लाख; फल-पुत्र-प्राप्ति) (४) सनत्कुमारोक्त सन्तानगोपालमन्त्र – ‘ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥’ (जप-सं.-३ लाख; फल-पुत्र-प्राप्ति) ॥ राधाकृष्ण युगल मन्त्र ॥ [युगलस्वरूपकी प्राप्तिके लिये मन्त्र] * एकादशाक्षर मन्त्र – ‘ॐ क्लीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा ।’ (जप-संख्या-१० लाख) * त्रिविध त्रयोदशाक्षर मन्त्र – (१) ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा । (जप-संख्या-५ लाख) (२) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा । (जप-संख्या-५ लाख) (३) ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा । (जप-संख्या-५ लाख) * अष्टादशाक्षर मन्त्र- (१) ‘क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा ।’ (२) ‘ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजन-वल्लभाय स्वाहा ।’ (जप-संख्या-५ लाख) (गोपालतापनी उपनिषद्) * दशाक्षर मन्त्र- “ॐ गोपीजनवल्लभाय नमः ।” * पंचपदीय ‘मन्त्र-चिन्तामणि’ नामक दो युगल-मन्त्र – (१) षोडशाक्षर मन्त्र – ‘गोपीजनवल्लभचरणान् शरणं प्रपद्ये।’ (२) दशाक्षर मन्त्र – ‘नमो गोपीजनवल्लभाभ्याम् ।’ जो मनुष्य श्रद्धा या अश्रद्धा से भी इस पंचपदीय का जप कर लेता है, उसे निश्चय ही श्रीकृष्ण के प्यारे भक्तों का सान्निध्य प्राप्त होता है । इस मन्त्र को सिद्ध करने के लिये न तो पुरश्चरण की अपेक्षा पड़ती है और न न्यास-विधान का क्रम ही अपेक्षित है । देश-काल का भी कोई नियम नहीं है । अरि और मित्र आदि के शोधन की भी आवश्यकता नहीं है । सभी मनुष्य इस मन्त्र के अधिकारी हैं । इस मन्त्र के ऋषि शिव हैं, बल्लवी-वल्लभ श्रीकृष्ण इसके देवता हैं तथा प्रियासहित भगवान् गोविन्द के दास्यभाव की प्राप्ति के लिये इसका विनियोग किया जाता है । यह मन्त्र एक बार के ही उच्चारण से कृतकृत्य कर देता है । (पद्मपुराण, पातालखण्ड) * अष्टाक्षर मन्त्र – (१) ‘क्ली राधाकृष्णाभ्यां नमः ।’ (२) ‘ॐ क्लीं राधाकृष्णाभ्यां नमः ।’ * बीजात्मक मन्त्र – ‘ॐ ह्रीं श्रीं ।’ ॥ राधा-मन्त्र ॥ * षडक्षर राधामन्त्र – ‘श्रीं राधायै स्वाहा ।’ ‘श्रीराधायै स्वाहा ।’ यह मन्त्र धर्म, अर्थ आदि को प्रकाशित करने वाला है । * सप्ताक्षर राधामन्त्र – (१) ॐ ह्रीं राधिकायै नमः । (२) ॐ ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा । (३) ‘ॐ रां राधायै नमः ।’ * अष्टाक्षर राधामन्त्र – (१) ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै नमः । (जप-सं.-१६ लाख; फल-सर्वार्थ-सिद्धि) (२) ॐ ह्रीं श्रीं राधिकायै नमः । (जप-सं.-१६ लाख; फल-सर्वार्थ-सिद्धि) (३) ‘क्लीं ऐं राधिकायै क्लीं ऐं ।’ (जप-सं.-१६ लाख; फल-सर्वार्थ-सिद्धि) (४) ‘रां ह्रीम क्लीं राधायै स्वाहा ।’ * दशाक्षर मन्त्र – ‘ॐ हूं हूं राधिकायै ॐ हूं हूं ।’ * द्वादशाक्षरी मन्त्र – (१) ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं रां रासेश्वर्यै स्वाहा । (२) ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं रां राधिकायै स्वाहा । (३) ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं रां रासेश्वरी स्वाहा । * षोडशाक्षरी मन्त्र – (१) ‘क्लीं क्लीं ऐं ऐं ह्रीं ह्रीं राधिकायै क्लीं क्लीं ऐं ऐं ह्रीं ह्रीं ।’ (२) ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं रां रासेशवरी राधिकायै स्वाहा ।’ * विंशोक्षर मन्त्र – ह्रीं श्रीं क्लीं क्लीं ऐं ऐं ह्रीं ह्रीं राधिकायै क्लीं क्लीं ऐं ऐं ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं ।’ * श्रीराधा वाञ्छाचिन्तामणि महामन्त्र- (१) ‘ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा। (२) ‘ॐ ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा।’ (देवीभागवत ९।५०। ९-१२) * श्रीराधा षडक्षरी महाविद्याका बीजमन्त्र- ‘रां ओं आं यं स्वाहा।’ (नारदपंचरात्र) * प्रेमभक्तिप्रदायक राधामन्त्र- ‘ॐ प्रेमधनरूपिण्यै प्रेमप्रदायिन्यै श्रीराधायै स्वाहा ।’ * श्रीराधा-गायत्री- (१) ॐ ह्रीं राधिकायै विद्महे गान्धर्विकायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात् । (२) वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमही तन्नो राधिका प्रचोदयात् । Related