श्रीगणेशपुराण-क्रीडाखण्ड-अध्याय-080
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
अस्सीवाँ अध्याय
पार्वतीजी का लेखनाद्रि पर्वत पर बारह वर्ष तक तपस्या करना, प्रसन्न हुए भगवान् गुणेश का प्रकट होकर दर्शन देना, गौरी का उन्हें पुत्ररूप में प्राप्त करने का वर माँगना और गणेशजी का उन्हें आश्वासन देना, पार्वतीजी द्वारा सिद्धिक्षेत्र में प्रासाद तथा गणेशप्रतिमा की प्रतिष्ठा करना, पुनः त्रिसन्ध्याक्षेत्र में आकर भगवान् शिव को सम्पूर्ण वृत्तान्त निवेदित करना, शिव-पार्वती दोनों का प्रसन्न होना
अथः अशीतितमोऽध्यायः
श्रीगणेशदर्शनं

ब्रह्माजी बोले — वहाँ पहुँचकर देवी पार्वती ने एक अत्यन्त रमणीय वन देखा, जो अनेक प्रकार के पुष्पों तथा [नदियों एवं सरोवरों के ] जलों से युक्त था। देवी पार्वती वहाँ पद्मासन लगाकर बैठ गयीं, उन्होंने अपनी दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर स्थिर कर रखी थी ॥ १ ॥ वे पूर्व की ओर मुख करके गुणेश के ध्यान में निरत हो गयीं और उनके एकाक्षर मन्त्र के जप में उसी प्रकार परायण हो गयीं, जैसे कि शुष्क वृक्ष निश्चल भाव से स्थित रहता है ॥ २ ॥ वे न तो फल, न जल, न मूल, न पत्र, न कन्द और न वायु का ही आहार ले रही थीं। वे निश्चल होकर परम शान्ति की स्थिति को प्राप्त हो गयी थीं ॥ ३ ॥ इसी प्रकार साधना में स्थित रहते हुए उनके बारह वर्ष व्यतीत हो गये। तदनन्तर प्रसन्न होकर कृपा करने के लिये गुणवल्लभ विभु गुणेश साक्षात् प्रकट हुए ॥ ४ ॥

उन्होंने मुकुट तथा कुण्डल धारण कर रखा था, उनकी दस भुजाएँ थीं, उन्होंने त्रिशूल धारण कर रखा था, उनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित हो रहा था, शंख-चक्र तथा मोतियों की माला से वे विभूषित थे ॥ ५ ॥ उन्होंने अक्षमाला तथा कमल को धारण कर रखा था। मस्तक पर कस्तूरी का तिलक लगाया हुआ था। उनके मुख का मध्यभाग नारायण के मुख के समान, दक्षिण भाग शिव के मुख के समान और बायाँ भाग ब्रह्मा मुख के समान था। वे प्रभु शेषनाग के ऊपर पद्मासन लगाकर बैठे हुए थे। शेषनाग के फणों के मण्डल की छाया उन पर हो रही थी, उनका वर्ण कुन्द पुष्प एवं कर्पूर के समान धवल था ॥ ६-७ ॥

वे विनायक उन जगदम्बा पार्वती से बोले — ‘हे वरानने ! आप रात-दिन जिनका ध्यान करती रहती हैं और गुणेश – गुणेश – इस नाम का जप किया करती हैं, वही मैं आपकी निष्ठा, भक्ति और कठिन तपस्या को देखकर आपके समक्ष प्रकट हुआ हूँ। मैं आपके ऊपर प्रसन्न हूँ, [अतः] अपने यथार्थ स्वरूप को बताऊँगा ॥ ८-९ ॥ तैंतीस करोड़ देवताओं में मुझसे अधिक कोई श्रेष्ठ नहीं है। सत्त्वादि तीनों गुणों में विभेद करने के कारण लोग मुझे ‘गुणेश’ इस नाम से जानते हैं ॥ १० ॥ सत्त्वादि तीनों गुणों के कारण मैं [ब्रह्मा-विष्णु- शिवरूप] त्रिविध शरीर वाला हूँ। मैं आपकी तपस्या से अतिसन्तुष्ट हूँ। आपके मन में जो भी कामना हो, उसे मुझसे वर के रूप में आप माँग लें । महेश्वरि ! इस त्रिलोकी में जो कुछ असाध्य भी होगा, उसे मैं प्रदान करूँगा।’ ॥ १११/२

उनके इस प्रकार के वचन को सुनकर अत्यन्त प्रसन्नता के कारण गद्गद वाणी वाली उन गौरी ने अपने नेत्रों को खोला तो सामने स्थित प्रभु विनायक को देखा। उन्होंने उन गुणेश, त्रिगुणेश तथा त्रिविध शरीरवाले प्रभु को प्रणाम किया ॥ १२-१३ ॥

तदनन्तर वे बोलीं — आज मेरा जन्म लेना धन्य हो गया है, मेरी निष्ठा धन्य हो गयी, मेरी तपस्या धन्य हो गयी, मेरा मन्त्र जपना सफल हो गया, मेरे स्वामी शंकर भी आज धन्य हो गये हैं, जो कि आपके चरणकमल का मुझे दर्शन हुआ है ॥ १४ ॥ आज मुझे परम सिद्धि की प्राप्ति हो गयी, जो कि आपका मैंने प्रत्यक्ष दर्शन किया है। अब मैं किसी अन्य वर की कामना नहीं करती हूँ, फिर भी मैं आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूँगी । अतः [हे देव !] आप मेरे पुत्ररूप में उत्पन्न होइये और आप मुझे प्रीति प्रदान करने वाले होवें, मुझे आपका निरन्तर दर्शन प्राप्त होता रहे और मैं आपकी सेवा-पूजा करती रहूँ ॥ १५-१६ ॥

देवी गौरी का ऐसा वचन सुनकर गुणेश विनायक अत्यन्त आनन्दित हुए और वे उन गिरिजा से बोले — ‘मैं आपका पुत्र बनूँगा, मैं आपकी मनोकामना पूर्ण करूँगा और दूसरे लोगों को भी उनका अभीष्ट प्रदान करूँगा ।’ उनसे इस प्रकार कहकर भगवान् गुणेश क्षणभर में ही अन्तर्धान हो गये ॥ १७-१८ ॥

जब देवी पार्वती ने दूसरे ही क्षण वहाँ उन गुणेश को नहीं देखा, तो उन्होंने समझा कि मुझे क्षणभर का जो दर्शन मिला था, वह क्या एक सुखद सपना था ? ॥ १९ ॥ ईश्वर (शिवजी)-के उपदेश से मैंने सम्पूर्ण अर्थों को प्रदान करने वाले देव गुणेश का दर्शन किया था, किंतु अब मैं उनके वियोग को सहन करने में समर्थ नहीं हूँ। ॥ २० ॥

ऐसा कहकर देवी पार्वती ने भगवान् गुणेश की प्रतिमा बनाकर आदरपूर्वक उसकी स्थापना की। उन्होंने एक मन्दिर बनवाया, जिसमें चार दरवाजे थे और वह बड़ा ही सुन्दर था ॥ २१ ॥ देवी पार्वती ने उस प्रतिमा का ‘गिरिजानन्दन’ यह सुन्दर नाम रखकर उसे प्रतिष्ठापित किया और कहा कि यह स्थान ‘सिद्धिक्षेत्र’ इस नाम से विख्यात होगा तथा यहाँ अनुष्ठान करने वाले मनुष्यों को निश्चित ही सिद्धि की प्राप्ति होगी। इसमें संशय नहीं है । ॥ २२१/२

उस स्थान को इस प्रकार का वर प्रदानकर और मन्दिर में उन विनायक की यथाविधि पूजा करके उन्होंने उनकी प्रदक्षिणा की और उन्हें प्रणाम करके ब्राह्मणों का पूजन किया। उन ब्राह्मणों को दान दिया और आचार्य से आशीर्वाद ग्रहणकर वे देवी पार्वती त्रिसन्ध्याक्षेत्र में आयीं और वहाँ उन्होंने ध्यानयोग में निमग्न भगवान् शंकर का दर्शन किया ॥ २३-२४१/२

पार्वतीजी ने उनके चरणकमलों में अपना कमलोपम सिर रखा और अपने साथ घटित हुआ सम्पूर्ण वृत्तान्त उन्हें बतलाया तथा उनसे कहा — ‘हे विभो ! मैंने आपसे आदेश तथा मन्त्रोपदेश प्राप्तकर बारह वर्षों तक तपस्या की। हे स्वामिन्! तपस्या के मध्य मैंने वायु का भी सेवन नहीं किया। तदनन्तर भगवान् गुणेश्वर मुझ पर परम प्रसन्न हुए एवं मेरे विशुद्ध मनोभाव को जानकर मुझसे परम प्रसन्नतापूर्वक बोले — ॥ २५–२७ ॥

‘हे गिरिराजपुत्री ! मैं आपके उदर से अवतार ग्रहण करूँगा और देवताओं को तथा आपको भी जो अभीष्ट होगा, उसे प्रदान करूँगा’ ॥ २८ ॥ ऐसा कहकर वे विभु क्षणभर में ही वहीं पर अन्तर्धान हो गये। तदनन्तर मैंने प्रसन्न होकर उनका मन्दिर तथा मूर्ति बनवायी और उस मन्दिर में उन विनायक की मूर्ति स्थापित करके मैं आपके पास आयी हूँ ‘ ॥ २९१/२

ब्रह्माजी बोले — प्रिया पार्वती के इस प्रकार के वचनों को सुनकर भगवान् शिव को अपने मन में अत्यन्त प्रसन्नता हुई। उनके नेत्र विकसित हो उठे और वे बोले — ‘हे गिरिराजपुत्री! तुम धन्य हो, जिन गुणेश का तुमने साक्षात् दर्शन किया है, वे ही प्रत्यक्ष रूप से तुम्हारे घर में अवतरित होंगे ॥ ३०-३१ ॥ वे महान् दैत्य सिन्धु का वध करेंगे और पृथ्वी के भार को हलका करेंगे, साथ ही वे इन्द्र आदि सभी देवताओं को उनका अपना-अपना पद प्रदान करेंगे। हे देवि ! मेरे इस वचन को तुम भूलना नहीं’ ॥ ३२१/२

ब्रह्माजी बोले — ऐसा कहकर उस समय भगवान् शिव ने देवी पार्वती का आलिंगन किया। उन दोनों के नेत्रों से आनन्द के आँसू प्रवाहित होने लगे और दोनों के शरीर में रोमांच हो आया। तब से वे दोनों भगवान् शिव और देवी शिवा परम आह्लादयुक्त होकर रहने लगे ॥ ३३-३४ ॥

॥ इस प्रकार श्रीगणेशपुराण के क्रीडाखण्ड में ‘गौरी के तपोऽनुष्ठान का वर्णन’ नामक अस्सीवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ८० ॥

Content is available only for registered users. Please login or register

Please follow and like us:
Pin Share

Discover more from Vadicjagat

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.