October 31, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीगणेशपुराण-क्रीडाखण्ड-अध्याय-089 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ नवासीवाँ अध्याय दसवें मास तथा ग्यारहवें मास की अवस्था में बालक गुणेश द्वारा किये गये आजगरासुर तथा शलभासुर नामक दैत्यों के वध की कथा अथः एकोननवतितमोऽध्यायः शलभासुरवध ब्रह्माजी बोले — [हे व्यासजी !] जब बालक गुणेश का दसवाँ मास चल रहा था। उस समय एक दिन की बात है, जब भगवान् सूर्य का उदय होने के बाद तीन मुहूर्त का समय व्यतीत हो गया था। तब पार्वतीपुत्र गुणेश कभी पेट के बल रैंगते हुए और कभी पैरों से चलते हुए क्रीडा कर रहे थे और कुछ-कुछ अस्पष्ट वाणी में बोल भी रहे थे। कभी वे लुढ़क जाते थे। कभी नाचने लगते थे, तो कभी माता पार्वती को देखकर रोने लगते और उनके पीछे लग जाते और कभी सहसा भगवान् शिव के पीछे चलने लगते। इस प्रकार की आनन्ददायिनी क्रीडा करते हुए अपने बालक को देखकर उस समय पार्वती अत्यन्त हर्षित हो उठीं ॥ १-३ ॥ इसी समय बालक गुणेश ने आजगर नामक एक दैत्य को देखा। वह दैत्य अपने नेत्रों से आग की चिनगारियाँ बरसा रहा था । उसका शरीर वज्रसार के समान कठोर था। वह अपनी जिह्वा लटकाये हुए था। उसका शरीर बहुत विशाल था । वह ऐसा दिखायी पड़ रहा था, मानो महान् पर्वत को निगल रहा हो। वह एक बहुत बड़े वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था और अपनी दोनों जिह्वाओं को बार-बार लपलपा रहा था ॥ ४-५ ॥ बालक गुणेश ने बालस्वभाववश रेंगते हुए जाकर उस अजगर को पकड़ लिया। तब उस अजगर ने सहसा उन्हें शीघ्र ही अपने मुख के अन्दर भर लिया। उनके मुख के अन्दर प्रविष्ट होते ही उस वायुभक्षी अजगर ने अपने दोनों ओठों को मिला लिया ॥ ६१/२ ॥ जब गौरी ने आँगन में बालक गुणेश को नहीं देखा तो उनका मन अत्यन्त व्याकुल हो गया । वे कहने लगीं — मेरा बालक अभी-अभी यहीं पर खेल रहा था, फिर किसने उसका हरण कर लिया और किसी ने मार तो नहीं डाला ? वे अत्यन्त शोक करने लगीं और दुःख से परम आर्त होकर वे अपने सिर को पीटने लगीं ॥ ७-८ ॥ उस समय गणों ने उन्हें ऐसा करने से रोका और कहा — हे माता! आप निराश न हों। उस बालक का प्रभाव सबको विदित ही है, वह सैकड़ों गुना अधिक बलवान् है। ॥ ९ ॥ उस अजगर के उदर में प्रविष्ट हुए वे बालक गुणेश बढ़ने लगे, जिससे उस दैत्य की साँस रुकने लगी। तब वह अजगर अपनी पूँछ के अन्तिम भाग को हिलाने डुलाने लगा। तदनन्तर उस अजगर की प्राणवायु रक्त के साथ दोनों नेत्रों से बाहर निकल गयी। तब अम्बिकापुत्र गुणेश उसकी देह को चीरते हुए बाहर निकल आये ॥ १०-११ ॥ उस दैत्य अजगर के रक्त से सने हुए अंगवाले उन गणेश को देखकर यह लग रहा था कि क्या यह खिला हुआ पलाश का वृक्ष तो नहीं है ? तदनन्तर गणों ने अपनी अंगुलि को चाटते हुए उन बालक गुणेश को देखा और वे जोर-जोर से चिल्लाते हुए पार्वती से कहने लगे कि दुष्ट अजगर दैत्य को मार करके ये बालक गुणेश उसके मुख से बाहर निकल आये हैं ॥ १२-१३ ॥ ब्रह्माजी बोले — उन (गणों) – की बात सुनते ही तत्काल पार्वती ने बालक गुणेश को उठा लिया। जल्दी से स्नान कराया और उन्हें प्यार करते हुए स्तनपान कराया ॥ १४ ॥ अरे वत्स! तुम कहाँ चले गये थे? तुम्हें देखे बिना मुझे तो एक क्षण का समय भी एक वर्ष के समान लगता था। तदनन्तर उन्होंने सौ योजन विस्तार वाले अजगर को देखा । वह बड़ा ही दुष्ट था। उसका मुख बड़ा ही भयानक था। वह बहुत-सा रक्त वमन कर रहा था और अनेक वृक्षसमूहों तथा घरों को गिराते हुए जमीन पर गिरा था ॥ १५-१६ ॥ गौरी बोलीं — इस स्थान पर अभी न जाने कितने दैत्य और राक्षस होंगे। इस बालक के पराक्रम से कितने ही राक्षस मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। तदनन्तर उन सभी गणों ने उस महान् असुर को दूर ले जाकर फेंक दिया ॥ १७१/२ ॥ तदनन्तर ग्यारहवें मास की बात है। देवी पार्वती अपने द्वार पर गयी हुई थीं। वहाँ वे अपनी सखियों के साथ बालक गुणेश की बहुत-सी क्रीडाओं को देख रही थीं। वह बालक किसी सखी का मुख चूम रहा था और किसी से अपना चुम्बन करा भी रहा था ॥ १८-१९ ॥ किसी सखी के पीछे जाकर स्वयं अपने हाथों से उसकी दोनों आँखों को बन्द कर दे रहा था और किसी दूसरे बालक की माता के पास जाकर बलपूर्वक उसके स्तनों का पान कर ले रहा था। अपना मुख वस्त्र से ढककर किन्हीं दूसरी स्त्रियों को डरा दे रहा था। वह गुणेश उनके मुख, केश तथा नासिका और आभूषणों को खींच दे रहा था। वह अपने तथा पराये जनों को देखकर तोतली वाणी में बोल रहा था ॥ २०-२११/२ ॥ इसी समय शलभासुर नामक एक दुष्ट दानव वहाँ आया । वह ब्रह्मा आदि देवताओं के लिये भी अपराजेय था। उसके स्कन्ध पर्वत के समान ऊँचे थे। उसका विशाल सिर आकाश को भी फोड़ देने वाला था। वह बादल की भाँति नीले वर्ण का था। उसके नेत्र जपापुष्प के समान लाल रंग के थे। उसके सींग बादलों को स्पर्श करने में समर्थ थे। वह तीनों लोकों को ग्रसता हुआ-सा उस बालक गुणेश के समीप में आया ॥ २२–२४ ॥ वह जहाँ-जहाँ जाता था, उसे पकड़ने के लिये बालक गुणेश भी वहीं-वहीं जाते थे । इस प्रकार से महान् वेगशाली वे दोनों बहुत समय तक इधर-उधर घूमते रहे । तदनन्तर बालक गुणेश जब थक गये, तब वे बहुत वेग से दौड़ते हुए उस असुर के पास गये और उन्होंने उस महान् बलशाली शलभासुर को एकाएक पकड़ लिया ॥ २५-२६ ॥ वह अपने दोनों पंखों को उसी प्रकार फड़फड़ाने लगा, जैसे कि किसी मनुष्य के द्वारा हाथ में पकड़ा हुआ बाज पक्षी अपने पंख फड़फड़ाने लगता है। वह शलभासुर अपने पैरों के प्रहार से बालक को पीड़ित करने लगा। उस समय वह असुर अपनी विकराल आँखों को फाड़-फाड़कर उस शिशु गुणेश को देखने लगा। वह बालक गुणेश उसको छोड़ दे रहा था, फिर पकड़ ले रहा था ॥ २७-२८ ॥ वह उसे अपनी माता को दिखाता था और फिर धरती पर पटक दे रहा था । उसको देखकर दयाके वशीभूत हो पार्वती उस समय कठोर हुए मनवाले उस अपने बालक गुणेश से बोलीं — हे पुत्र ! किसी भी जीव की हत्या नहीं करनी चाहिये, इस प्राणी को तुम छोड़ दो। तब भी बालक गुणेश ने हठ करके बलपूर्वक उस असुर को पत्थर पर पटक डाला ॥ २९-३० ॥ उस समय उसके सौ टुकड़े हो गये और वह आकाश को गर्जना से गुँजाता और घरों तथा तोरणों को गिराता हुआ भूमि पर गिर पड़ा ॥ ३१ ॥ उसका शरीर दस योजन विस्तार वाला हो गया । उस समय उसके मुख से बहुत सारा रक्त बह चला । वह बहुत-से आश्रमों तथा वृक्षों को चूर-चूर करते हुए गिरा। तब माता अपने पुत्र को पकड़कर वहाँ से ले गयी और उस बालक को गोद में बैठाकर अपना स्तनपान कराया तथा भोजन कराया। उस बालक गुणेश को तथा उस प्रकार के विस्तृत शरीर वाले मरे हुए दैत्य को देखकर उन पर्वतराजपुत्री पार्वती से सखियाँ कहने लगीं — बहुत अच्छा हुआ, बहुत अच्छा हुआ। तदुपरान्त पार्वती ने अपने भवन में प्रवेश किया और वे सखियाँ भी प्रसन्नचित्त होकर अपने-अपने घरों को गयीं। देवी पार्वती की आज्ञा में रहने वाले गणों ने उस दैत्य को दूर ले जाकर फेंक दिया। उस समय देवगणों ने उस बालक गुणेश के ऊपर पुष्पों की वर्षा की ॥ ३२-३५ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीगणेशपुराण के क्रीडाखण्ड में ‘शलभासुर के वध का वर्णन’ नामक नवासीवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ८९ ॥ Content is available only for registered users. 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