February 9, 2019 | Leave a comment श्रीपञ्चमी-वसन्तपञ्चमी वसन्तपञ्चमी पूजा माघ शुक्ल पूर्वविद्धा पञ्चमी को उत्तम वेदी पर वस्त्र बिछाकर अक्षतों का अष्टदल कमल बनाये। उसके अग्रभाग में गणेशजी और पृष्ठभाग में ‘वसन्त’-जौ, गेहूँ की बाल का पूञ्ज (जो जलपूर्ण कलश में ड़ठल सहित रखकर बनाया जाता है) स्थापित करके सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन करे और पीछे उक्त पुञ्ज में “रति” और “कामदेव” का पूजन करे तथा उनपर अबीर आदि के पुष्पोपम छींटे लगाकर वसन्तसदृश बनाये। तत्पश्चात् – ‘शुभा रतिः प्रकर्तव्या वसन्तोज्ज्वलभूषणा । नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता ।। वीणावादनशीला च मदकर्पूरचर्चिता ।’ से रति का और ‘कामदेवस्तु कर्तव्यो रुपेणाप्रतिमो भुवि। अष्टबाहुः स कर्तव्यः शंखपद्मविभूषणः।। चापबाणकरश्चैव मदादञ्चितलोचनः। रतिः प्रीतिस्तथा शक्तिर्मदशक्तिस्तथोज्ज्वला ।। चतस्त्रस्तस्य कर्तव्याः पत्न्यो रुपमनोहराः। चत्वारश्च करास्तस्य कार्या भार्यास्तनोपगाः।। केतुश्च मकरः कार्यः पञ्चबाणमुखो महान्।’ से कामदेव का ध्यान करके विविध प्रकार के फल, पुष्प और पत्रादि समर्पण करे तो गार्हस्थ्यजीवन सुखमय होकर प्रत्येक कार्य में उत्साह प्राप्त होता है। अष्टाक्षर कामदेव मन्त्रः- “क्लीं काम-देवाय नमः” पञ्चाक्षर रति मन्त्रः- “ह्रीं रत्यै नमः” काम-गायत्रीः- “ॐ काम-देवाय विद्महे पुष्प-बाणाय धीमही, तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात्” भगवती सरस्वती अमित तेजस्विनी और अनन्त गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना के लिये माघमास ले शुक्लपक्ष की पञ्चमी तिथि ही निर्धारित की गयी है। वसन्त-पञ्चमी को इनका ‘आविर्भाव-दिवस’ माना जाता है। अतः “वागीश्वरी-जयन्ती” एवं “श्री-पञ्चमी” के नाम से भी इस तिथि की प्रसिद्धि है। सरस्वती-देवी की इस वार्षिक पूजा के साथ ही बालकों के अक्षरारम्भ एवं विद्यारम्भ की तिथियों तथा दिपावली पर भी सरस्वती-पूजन का विधान किया गया है। सरस्वतीरहस्योपनिषद्, प्रपञ्चसार तथा शारदातिलक आदि ग्रन्थों में भगवती सरस्वती के दिव्य-स्वरुप तथा उनकी उपासना का वर्णन हुआ है और उनके व्रतोपवास-सम्बन्धी अनेक मन्त्र, यन्त्र, स्तोत्र, पटल तथा पद्धतियाँ भी वहाँ प्राप्त है। संवत्सर-प्रदीप, श्रीमद्देवीभागवत, श्रीदुर्गासप्तशती तथा ब्रह्मवैवर्तादि पुराण आदि में भी तत्सम्बन्धी साहित्य विद्यमान है। भगवती सरस्वती के मन्त्रः- १॰ एकाक्षरः- “ऐ”। २॰ द्वय्क्षरः- (क) “आं लृं”, (ख) “ऐं लृं”। ३॰ त्र्यक्षरः- “ऐं रुं स्वों”। ४॰ नवाक्षरः- “ॐ ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः”। ५॰ दशाक्षरः- (क) “वद वद वाग्-वादिनि स्वाहा”, (ख) “ह्रीं ॐ ह्सौः ॐ सरस्वत्यै नमः”। ६॰ एकादशाक्षरः- (क) “ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”, (ख) “ऐं वाचस्पते अमृते प्लुवः प्लुः”, (ग) “ऐं वाचस्पतेऽमृते प्लवः प्लवः”। ७॰ एकादशाक्षर-चिन्तामणि-सरस्वतीः- “ॐ ह्रीं ह्स्त्रैं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”। ८॰ एकादशाक्षर-पारिजात-सरस्वतीः- (क) “ॐ ह्रीं ह्सौं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”, (ख) “ॐ ऐं ह्स्त्रैं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”। ९॰ द्वादशाक्षरः- (क) “ह्रीं वद वद वाग्-वादिनि स्वाहा ह्रीं”, (ख) अन्तरिक्ष-सरस्वतीः “ऐं ह्रीं अन्तरिक्ष-सरस्वती स्वाहा”। १०॰ षोडशाक्षरः- “ऐं नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा”। ११॰ द्वा-त्रिंशदक्षर महा-सरस्वतीः- “ऐंह्रींश्रींक्लींसौं क्लींह्रींऐंब्लूंस्त्रीं नील-तारे सरस्वति द्रांह्रींक्लींब्लूंसःऐं ह्रींश्रींक्लीं सौंःसौंःह्रीं स्वाहा”। १२॰ एकोन-चत्वारिंशाक्षरः- “ॐ ह्रीं श्रीं ऐं वाग्वादिनि भगवती अर्हन्मुख-निवासिनि सरस्वति ममास्ये प्रकाशं कुरु कुरु स्वाहा ऐं नमः”। १३॰ ब्रह्मवैवर्तपुराण में एक मन्त्र इस प्रकार हैः-“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा”। भगवती सरस्वति का ध्यान श्लोकः- वैसे तो आगमों में बहुत से ध्यान श्लोक दिये हैं उनमें से एक इस प्रकार है। “सरस्वतीं शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम् ।। कोटिचन्द्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम् । वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकधारिणीम् ।। रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम् । सुपूजितां सुरगणैर्ब्रह्मविष्णुशिवादिभिः ।। वन्दे भक्त्या वन्दितां च मुनीन्द्रमनुमानवैः ।” (देवीभागवत ९।४।४५-४८) एक अन्य स्तोत्र इस प्रकार है श्री सरस्वती स्तोत्रम् या कुन्देन्दुतुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वंदिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।1।। शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमा माद्या जगद्व्यापिनीं वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां वंदे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।। पुस्तक और लेखनी- में भी देवी सरस्वति का निवास स्थान माना जाता है तथा उसकी पूजा की जाती है। भगवती सरस्वति की उत्पत्ति सत्त्वगुण से हुई है। इनकी आराधना एवं पूजा में प्रयुक्त होनेवाली उपचार-सामग्रियों में अधिकांश श्वेतवर्ण की होती है। यथा- दूध-दही-मक्खन, धान का लावा, सफेद तिल का लड्डू, गन्ना एवं गन्ने का रस, पका हुआ गुड़, मधु, श्वेत-चन्दन, श्वेत-पुष्प, श्वेत परिधान, श्वेत अलंकार, खोये का मिष्ठान्न, अदरक, मूली, शर्करा, श्वेत धान्य के अक्षत, तण्डुल, घृत, यवचूर्ण, नारियल, श्रीफल आदि। देवी सरस्वती की निम्नलिखित द्वादश नामावली सुविख्यात है। “प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती। तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी।। पञ्चमं जगती ख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा। सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमं ब्रह्मचारिणी।। नवमं बुद्धिदात्री च दशमं वरदायिनी। एकादशं चन्द्रकान्तिर्द्वादशं भुवनेश्वरी।। द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः। जिह्वाग्रे वसते नित्यं ब्रह्मरुपा सरस्वती।।” श्रीसरस्वती स्तुति या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना । या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ १॥ दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापरेण । भासा कुन्देन्दु- शंखस्फटिकमणिनिभा भासमानाऽसमाना सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥ २॥ आशासु राशी भवदंगवल्लि भासैव दासीकृत- दुग्धसिन्धुम् । मन्दस्मितैर्निन्दित- शारदेन्दुं वन्देऽरविन्दासन- सुन्दरि त्वाम् ॥ ३॥ शारदा शारदाम्बोजवदना वदनाम्बुजे । सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥ ४॥ सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृ- देवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ॥ ५॥ पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती । प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ॥ ६॥ शुद्धां ब्रह्मविचारसारपरमा- माद्यां जगद्व्यापिनीं वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् । हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥ ७॥ वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये । कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ॥ ८॥ श्वेताब्जपूर्ण- विमलासन- संस्थिते हे श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे । उद्यन्मनोज्ञ- सितपंकजमंजुलास्ये विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ॥ ९॥ मातस्त्वदीय- पदपंकज- भक्तियुक्ता ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय । ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण भूवह्नि- वायु- गगनाम्बु- विनिर्मितेन ॥ १०॥ मोहान्धकार- भरिते हृदये मदीये मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे । स्वीयाखिलावयव- निर्मलसुप्रभाभिः शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् ॥ ११॥ ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः । न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे न स्युः कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षाः ॥ १२॥ लक्ष्मिर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तृष्टिः प्रभा धृतिः । एताभिः पाहि तनुभिरष्टभिर्मां सरस्वती ॥ १३॥ सरसवत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः वेद- वेदान्त- वेदांग- विद्यास्थानेभ्य एव च ॥ १४॥ सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने । विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तु ते ॥ १५॥ यदक्षर- पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् । तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥ १६॥ ॥ इति श्रीसरस्वती स्तोत्रं संपूर्णं॥ *************************************** ॥ सरस्वती अष्टोत्तर नामावलि ॥ ॐ सरस्वत्यै नमः । ॐ महाभद्रायै नमः । ॐ महामायायै नमः । ॐ वरप्रदायै नमः । ॐ श्रीप्रदायै नमः । ॐ पद्मनिलयायै नमः । ॐ पद्माक्ष्यै नमः । ॐ पद्मवक्त्रकायै नमः । ॐ शिवानुजायै नमः । ॐ पुस्तकभृते नमः । ॐ ज्ञानमुद्रायै नमः । ॐ रमायै नमः । ॐ परायै नमः । ॐ कामरूपायै नमः । ॐ महाविद्यायै नमः । ॐ महापातक नाशिन्यै नमः । ॐ महाश्रयायै नमः । ॐ मालिन्यै नमः । ॐ महाभोगायै नमः । ॐ महाभुजायै नमः । ॐ महाभागायै नमः । ॐ महोत्साहायै नमः । ॐ दिव्याङ्गायै नमः । ॐ सुरवन्दितायै नमः । ॐ महाकाल्यै नमः । ॐ महापाशायै नमः । ॐ महाकारायै नमः । ॐ महांकुशायै नमः । ॐ पीतायै नमः । ॐ विमलायै नमः । ॐ विश्वायै नमः । ॐ विद्युन्मालायै नमः । ॐ वैष्णव्यै नमः । ॐ चन्द्रिकायै नमः । ॐ चन्द्रवदनायै नमः । ॐ चन्द्रलेखाविभूषितायै नमः । ॐ सावित्यै नमः । ॐ सुरसायै नमः । ॐ देव्यै नमः । ॐ दिव्यालंकारभूषितायै नमः । ॐ वाग्देव्यै नमः । ॐ वसुदायै नमः । ॐ तीव्रायै नमः । ॐ महाभद्रायै नमः । ॐ महाबलायै नमः । ॐ भोगदायै नमः । ॐ भारत्यै नमः । ॐ भामायै नमः । ॐ गोविन्दायै नमः । ॐ गोमत्यै नमः । ॐ शिवायै नमः । ॐ जटिलायै नमः । ॐ विन्ध्यावासायै नमः । ॐ विन्ध्याचलविराजितायै नमः । ॐ चण्डिकायै नमः । ॐ वैष्णव्यै नमः । ॐ ब्राह्मयै नमः । ॐ ब्रह्मज्ञानैकसाधनायै नमः । ॐ सौदामन्यै नमः । ॐ सुधामूर्त्यै नमः । ॐ सुभद्रायै नमः । ॐ सुरपूजितायै नमः । ॐ सुवासिन्यै नमः । ॐ सुनासायै नमः । ॐ विनिद्रायै नमः । ॐ पद्मलोचनायै नमः । ॐ विद्यारूपायै नमः । ॐ विशालाक्ष्यै नमः । ॐ ब्रह्मजायायै नमः । ॐ महाफलायै नमः । ॐ त्रयीमूर्तये नमः । ॐ त्रिकालज्ञायै नमः । ॐ त्रिगुणायै नमः । ॐ शास्त्ररूपिण्यै नमः । ॐ शंभासुरप्रमथिन्यै नमः । ॐ शुभदायै नमः । ॐ स्वरात्मिकायै नमः । ॐ रक्तबीजनिहन्त्र्यै नमः । ॐ चामुण्डायै नमः । ॐ अम्बिकायै नमः । ॐ मुण्डकायप्रहरणायै नमः । ॐ धूम्रलोचनमदनायै नमः । ॐ सर्वदेवस्तुतायै नमः । ॐ सौम्यायै नमः । ॐ सुरासुर नमस्कृतायै नमः । ॐ कालरात्र्यै नमः । ॐ कलाधरायै नमः । ॐ रूपसौभाग्यदायिन्यै नमः । ॐ वाग्देव्यै नमः । ॐ वरारोहायै नमः । ॐ वाराह्यै नमः । ॐ वारिजासनायै नमः । ॐ चित्रांबरायै नमः । ॐ चित्रगन्धायै नमः । ॐ चित्रमाल्यविभूषितायै नमः । ॐ कान्तायै नमः । ॐ कामप्रदायै नमः । ॐ वन्द्यायै नमः । ॐ विद्याधरसुपूजितायै नमः । ॐ श्वेताननायै नमः । ॐ नीलभुजायै नमः । ॐ चतुर्वर्गफलप्रदायै नमः । ॐ चतुरानन साम्राज्यायै नमः । ॐ रक्तमध्यायै नमः । ॐ निरंजनायै नमः । ॐ हंसासनायै नमः । ॐ नीलजङ्घायै नमः । ॐ ब्रह्मविष्णुशिवात्मिकायै नमः । ॥ इति श्री सरस्वति अष्टोत्तरशत नामावलिः ॥ श्रीकामदेव का शाबर-मन्त्र (मोहन करने का अमोघ शस्त्र) “ॐ नमो भगवते काम-देवाय श्रीं सर्व-जन-प्रियाय सर्व-जन-सम्मोहनाय ज्वल-ज्वल, प्रज्वल-प्रज्वल, हन-हन, वद-वद, तप-तप, सम्मोहय-सम्मोहय, सर्व-जनं मे वशं कुरु-कुरु स्वाहा।” विधि- उक्त मन्त्र का २१,००० जप करने से मन्त्र सिद्ध होता है। तद्दशांश हवन-तर्पण-मार्जन-ब्रह्मभोज करे। बाद में नित्य कम-से-कम एक माला जप करे। इससे मन्त्र में चैतन्यता होगी और शुभ परिणाम मिलेंगे। प्रयोग हेतु फल, फूल, पान कोई भी खाने-पीने की चीज उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर साध्य को दे। उक्त मन्त्र द्वारा साधक का बैरी भी मोहित होता है। यदि साधक शत्रु को लक्ष्य में रखकर नित्य ७ दिनों तक ३००० बार जप करे, तो उसका मोहन अवश्य होता है। वशीकरण हेतु कामदेव मन्त्र “ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन स्वाहा।” विधि- कामदेव के उक्त मन्त्र को तीनों काल, एक-एक माला, एक मास तक जपे, तो सिद्ध हो जायेगा। प्रयोग करते समय जिसे देखकर जप करेंगे, वही वश में होगा। यहाँ ध्यातव्य है कि वसन्त-पञ्चमी के अवसर पर शान्ति कर्म, पौष्टिक कर्म, शाबर-मन्त्र / वशीकरण / मोहन / आकर्षण आदि के मन्त्र सरलता से सिद्ध किये जा सकते हैं। Related