श्रीबगला-प्रातः-स्मरण

प्रातः स्मरामि बगलां कमलायताक्षी-
मिन्दु-प्रसन्न-वदनां परि-पीत-वर्णाम् ।
पाणि-द्वयेन दधतीं च शिलां गिरीन्द्रे,
द्वेष्याञ्छवासन-गतां मद-मत्त-चित्ताम् ।। १

baglamukhiविकसित कमल-दल के समान विशाल-लोचन तथा चन्द्रमा के समान हास्य-छटा से सुशोभित, प्रसन्न-मुखवाली पीत-वर्णा बगलामुखी देवी का मैं प्रातः-काल चिन्तन करता हूँ, जो भक्त-जनों के शत्रुओं को चूर्ण करने के लिए गिरि-राज हिमालय पर शिला-खण्ड लिए विराजमान हैं । वे देवी मद-मत्त चित्त होकर, यदा-कदा शिव-रुप शवासन पर आरुढ़ होती हैं ।
प्रातर्नमामि बगला-मुखीं धर्म-मूर्त्तिम्,
कारुण्य-पूर्ण-नयनां मुख-मन्द-हासाम् ।
इन्दु-प्रसन्न-वदनां परि-पीत-वर्णाम्,
पीताम्बरां रुचिर-कञ्चुक-शोभमानाम् ।। २

हे देवि बगला-मुखि ! मैं तुम्हारी उस धर्म-मयी मूर्त्ति को प्रणाम करता हूँ, जिसके नेत्र करुणा से भरे हैं । मुख पर मन्द-हास की शोभा छा रही है । वदन-मण्डल चन्द्रमा से भी अधिक आह्लाद-पूर्ण है । अंग-कान्ति पीत है तथा वस्त्र भी पीले रंग के हैं । देवी सुन्दर कञ्चुकी से सुशोभित हैं ।
प्रातर्भजामि यजमान-सु-सौख्य-दात्रीम्,
कामेश्वरीं कनक-भूषण-भूषितांगीम् ।
गम्भीर-धीर-हृदयां रिपु-बुद्धि-हन्त्रीम्,
सम्पत्-प्रदां जगति पाद-जुषां नराणाम् ।। ३

जो भक्त-जनों को उत्तम सुख प्रदान करती हैं तथा सम्पूर्ण कामनाओं की अधीश्वरी है, जिनके अंग सुवर्ण-निर्मित आभूषणों से विभूषित हैं, जिनका हृदय सागर के सदृश गम्भीर और धीर है, जो साधकों के शत्रुओं की बुद्धि का नाश कर देती है तथा जो अपने चरणों की सेवा में संलग्न मनुष्यों को जगत् में सब प्रकार की सम्पत्ति प्रदान करती हैं, उन बगला मुखी देवी का मैं प्रातः-काल चिन्तन करता हूँ ।
श्लोक-त्रयमिदं पुण्यं, बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिपु-बाधा-विनिर्मुक्तो, लक्ष्मी-स्थैर्यमवाप्नुयात् ।।

जो बगला देवी की स्तुति से सम्बद्ध उपर्युक्त तीन श्लोकों का पाठ करता है, वह शत्रुओं की बाधा से मुक्त होकर सु-स्थिर लक्ष्मी का भागी होता है ।

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