April 7, 2019 | aspundir | Leave a comment श्रीभगवती शतक (पञ्जाब के सिद्ध सन्त पूज्य दौलतराम जी रचित) नमो भगवती ! जागती ज्योति-ज्वाला । तुही रक्ष-पाला कृपाला दयाला ॥ तुही दीन के दुःख-दारिद्र हरती । तुही भक्त को पार संसार करती ॥ १ ॥ तुही भूरि सुख की सदा देन-हारी । सभी छोंड़ि मैं ओट लीन्ही तिहारी ॥ नमो योगिनी ! योग में योग-माया । नमो भारती ! भीर में जो सहाया ॥ २ ॥ तुही हंस – आरूढ़िनी गूढ़ गीता । चरण में परयो मातु ! कीजै अभीता ॥ तुही दोष-अपराध को दूर करनी । तुही विश्व-सामुद्र में मातु ! तरनी ॥ ३ ॥ तुही मोक्ष सुख-सार की देन-हारी । चरण में परयो है शरण ओट भारी ॥ कटो मोह-माया कि अब मातु ! बेरी । अबेरी करी पीर मेरी न हेरी ॥ ४ ॥ नमो वाक-बानी ! अलौकिक कहानी । जपें सिद्ध गन्धर्व मुनि-वृन्द ज्ञानी । तुही भगवती ! भूरि सुख की देवैया । महा ओघ-अघ-झार कलि की कटैया ॥ ५ ॥ परयो है शरण आन तेरी भवानी । नमो हो, नमो हो, नमो राज-रानी ॥ तुही सृष्टि-करनी, सदा कष्ट-हरनी । तुही भौन-भरनी, महा-वेद-वरनी ॥ ६ ॥ नमो शारदा ! पारदा दीन दासै । तुही सब जगत बीच विद्या प्रकासै ॥ महा-तेज तेरो, कहा को बखाने ? सदा शेष औ वेद कह नेति मानै ॥ ७ ॥ करो दुरि मेरे जिते पाप भारे । परयो दारिदी दीन द्वारे तिहारे ॥ सुरक्षा करो मातु ! मेरी सदाई ॥ तुही देश-परदेश में हो सहाई ॥ ८ ॥ गही मैं महा-दीन हो ओट तेरी । न दूजो भरोसो सुनो मातु ! मेरी ॥ नमो शैलपुत्री ! शिवा शम्भू-रानी । उमा अम्बिका विश्व की मातु ! दानी ॥ ९ ॥ रमै तु रमा-रूप ह्वै राज-द्वारे । महा-तामसी घीर योधा पछारे ॥ बसी कोट ते ब्रह्म लौं ज्योति तेरी । सभी जीव में तू सदा मातु ! मेरी ॥ १० ॥ सदा सातहू द्वीप में दीप तेरी । नमो मातु ! मेरी कटो पाप-बेरी ॥ तुही पालनी रूप-संहारनी है । तुही तारनी दोन-उद्धारनी है ॥ ११ ॥ नमो शङ्ख-धारी, नमो चक्र-पानी । नमो वाक-बानी, महा-तेज-सानी ! ॥ नमो ईश्वरी, अन्नपूर्णा विशाला ! तुही काल की काल-रूपा कराला ॥ १२ ॥ तुही चण्डिका, दण्डिका दुष्ट जन की । गहो मातु ! मेरी सदा पैज पन को ॥ तुही भूचरी खेचरी ह्वै विराजै । तुही खण्ड ब्रह्मण्ड के खण्ड साजै ॥ १३ ॥ नमो उग्र-दन्ती, नमो उग्र-केशी । नमो हो महेशी ! नमो उग्र-भेषी !॥ तुही राज को रङ्क करि दुःख डारे । तुही रङ्क के शीश पै छत्र धारै ॥ १४ ॥ लखी ना परे मातु ! लीला तिहारी । सभी जक्त में शक्ति तेरी निहारी ॥ नमो नारसिंही ! शिवा शम्भु-प्यारी । नमो तेज-वन्ती, अवन्ती-कुमारी ! ॥ १५ ॥ महा-रूप में रूप तेरो प्रकासै । तुही योग-माया, महा-तेज भासै ॥ तुहीं ब्रह्म में, ब्रह्म है ब्रह्म-चरणी । महा-मोह-सामुद्र ते पार करनी ॥ १६ ॥ तुही शीतला शाम्भवी भद्र-काली । तुही वैष्णवी, हिङ्गला पैज पाली ॥ महा-स्वर्ग पाताल में वास करनी । तिहुँ लोक में भक्त-भण्डार भरनी ॥ १७ ॥ तुही दुष्ट-दल दैत्य को दूर करनी । तुही अग्नि आकाश त्रैलोक्य धरनी ॥ तुही चण्ड-चामुण्ड क्षण में खपाए । नमो हो चमुण्डा ! सदा योग-माये ! ॥ १८ ॥ तुही धूम्रलोचन कियो नाश अम्बा ! तुही काज में कीजिए क्यों विलम्बा ? ॥ तुही कालिका, काल को रूप धारी । हनो शत्रु मेरे जिते भूमि भारी ॥ १९ ॥ महा-पाप अवगुण क्षमो क्षेम-रूपा । महा-पातकी हौं, परयो पाप-कूपा ॥ तुही कृष्ण ह्वै कंस को शीश काट्यो । तुहीं भूमि में दुष्ट को दीह डाट्यो ॥ २० ॥ तुही राम को रूप धरि लङ्क धाई । हन्सयो जाय रावण सखा पूत भाई ॥ धरयो चक्र तोमर महा-तेजवन्ती । महा-दुष्ट योधा नशावै भवन्ती ॥ २१ ॥ सदा सर्वदा दीन-जन तै बचाए । गऊ विप्र धरणी मुनी देव गाए । सदा सन्त को मोद की देन-हारी । महा-योग-संयोग में तु बिहारी ॥ २२ ॥ करे सेव पूरी, जिन्हें बैठि सेवी । नमो सिद्ध-करनी भगत-काज देवी ॥ नहीं पाठ-पूजा न जप-योग मो में । नमो पातकी-तारणी पैज तो में ॥ २३ ॥ बिना तोहिं मैं पीर काको सुनाऊँ ? दिना-रैनि तेरे चरण ध्यान लाऊँ ॥ तुही तीन गुण में त्रिधा ताप हरती । तुही दानवों से समर-भूमि लरती ॥ २४ ॥ तुही मन्त्र में, यन्त्र में शक्ति-रूपी । तुही वेद-विद्या, तुही भक्ति-रूपी ॥ तुही भूमि-आकाश की ओट धारी । तुही सात पाताल में मातु ! चारी ॥ २५ ॥ तुही ग्रन्थ में, पन्थ में है सहाई । तुही देव-गन्धर्व मुनि-सिद्ध गाई ॥ दिपै राज और तेज में ज्योति तेरी । करो काज पूरे, नमो मातु ! मेरी ॥ २६ ॥ महा-दीन की सार, अब मातु ! लीजै । धरो शीस पै हाथ, निरभै करीजै ॥ महा-पातकी की कटै जो न फाँसी । घटै बिर्द तेरो, जगत होय हाँसी ॥ २७ ॥ कहो, कौन के द्वार पै मैं पुकारों ? बिना कौन तेरे, हितू है हमारो ? ॥ सु-ध्याऊँ, मनाऊँ सदा पाँय तेरे । कहो, को मनोरथ करै सिद्ध मेरे ? ॥ २८ ॥ नमो कुषमाण्डी, नमो घण्ट-चण्डा ! नमो काल-रात्री, नमो हो अखण्डा ! ॥ नमो हो सकन्दी, नमो हो अबन्दी ! नमो हो प्रबन्दी, नमो वेद-छन्दी ! ॥ २९ ॥ तुही जाप में, ताप में, योग में है । तुही कर्म में, धर्म में, भोग में है । सदा शम्भु ध्यावैं, समाधी लगावैं । विधी-विष्णु तेरो नहीं अन्त पावैं ॥ ३० ॥ तुही द्वे भुजा औ प्रगट अठ-भुजारी । भगत हेतु लीला विविध तैं पसारी ॥ नहीं पाव तेरो कोई आदि-अन्ता । अनन्ता भनन्ता सभी साधु-सन्ता ॥ ३१ ॥ महा है मही-मध्य, मेधा तिहारी । अटल ज्योति तेरी, अटल तेज भारी ॥ खड्यो हाथ लै छत्र दिनकर दुवारे । निशाकर लिए चौर दिन-रैन ढारे ॥ ३२ ॥ धरे हाथ वीणा, करैं गान नारद । तुही रूप की राशि, शारद विशारद ! ॥ खड़ी हाथ जोरे जिती देव-नारी । करैं आरती स्वच्छ पूजा तिहारी ॥ ३३ ॥ बजैं शङ्ख वीणा नफीरी नगारे । रहै भीर तोरे सदा ही दुवारे ॥ महा-मन्द हौं, पाप को हौं निवासी । कटो जाल मेरे, महा-मोह फाँसी ॥ ३४ ॥ नमो अम्ब ! आशा करो आस पूरी । नमो मातु ! मनसा करो दुःख दूरी ॥ नमो नैन-देवी ! मुकुन्दी अनन्दी । करो स्वच्छ वाणी भगत-भाव चन्दी ॥ ३५ ॥ नमो जालिपा ! धर्मिनी काँगड़े-सी । कमक्षा कपरदी नमो काल-भेसो ॥ तुही भीम बैराट को रूप शक्ती । सदाऽऽनन्द-कारी तिहारी सु-भक्ती ॥ ३६ ॥ तुही पाप मेटे, सदा शान्ति ऐनी । सदा मोक्ष देनी, प्रयागै त्रिवेनी ॥ तुही सरस्वती गङ्ग सूरज-सुता-सी । तुही तेज में तेज-रासी प्रकासी ॥ ३७ ॥ तुही मोह लीने, महा-योग-योगी । तुही अम्ब ! नव खण्ड के भोग भोगी ॥ तुही राग औ रङ्ग में रूप-रासी । तुम्हारी प्रभा भास्कर में प्रकासी ॥ ३८ ॥ प्रगट आग में, तु दिपै तेजवन्ती । मही में प्रगट, बासना-सी लसन्ती ॥ तुही शाख अरु पात में बीज-रूपा । अधामा अनामा अनूपा स्वरूपा ॥ ३९ ॥ तुही जक्त में, भक्त में, बास-कारी । नमो भैरवी ! दक्ष-कन्या कुमारी ॥ तुही वर्ण में, धर्म में, ध्यान-रूपा । लसै विश्व में, तू प्रतिज्ञा-स्वरूपा ॥ ४० ॥ नमो ईश्वरी ! तू प्रकट ईश-माया । सती शोभ-शोभा, सदा भूमि छाया ॥ दिपै भाल पै बाल-शशि की प्रभासी । अरुण कञ्ज-नैनी नमो कीर-नासी ॥ ४१ ॥ तिरीछी भृकुटि ज्यों धनुष शम्भु-प्यारी ! उपमा अतुल जक्त जमनी तिहारी ॥ सजै अङ्ग में लाल चोला अमोला । गरे फूल-माला सुधा-सान बोला ॥ ४२ ॥ मुकुत-हार लोनो लसे मातु ! नीके । करो सिद्ध पूरे सबै काम जी के ॥ सुरासर असुर हास में फाँस लीने । किए देव निर्भय असुर-वृन्द छीने ॥ ४३ ॥ नमो मोहिनी-रूप अम्बे भवानी ! । जपैं जाप योगी, धरै ध्यान ध्यानी ॥ न नामैं, न रूपैं, न कामी, न धामी । न मोहैं, न लोभैं, न क्षोभैं, अजामी ॥ ४४ ॥ नमो हो अभेदी-अखेदी-अकामा ! नमो सर-गुणी निरगुणी रूप-रामा ! ॥ तुही यन्त्र औ मन्त्र में रूप धारी । तुही शेष को रूप धर भूमि धारी ॥ ४५ ॥ नमो विश्व-विश्वेश्वरी कर्णकारम् । तुही भक्त भै हारिणी भव अधारम् ॥ नमो शक्ति-रूपा, नमो बाण-धारी ! नमो शूल-वारी, नमो चक्र-चारी ! ॥ ४६ ॥ नमो श्याम-काली, कपाली मसानी । नमो सिह-वाही, सभी लोक मानी ॥ नमो दैत्य-खण्डी प्रचण्डी सुचण्डी ! नमो नेम-पाली मही-मध्य मण्डी ॥ ४७ ॥ शिवा, भद्रिका, भद्र-रूपा, अरूपा । दया, शान्ति और तुष्टि-रूपा अनूपा ॥ नमो सच्चिदानन्दिनी, शुद्ध बानी ! नमो वेद-बानी, बखानी सु-ज्ञानी ॥ ४८ ॥ नमो घोर संग्राम-करनी, सु-बरनी । जगत में प्रकट है तिहारी सु-करनी ॥ नमो सुन्दरी ! शुभ शोभा तिहारी । उमा रोहिणी राधिका तू कुमारी ॥ ४९ ॥ नमो दिव्य आकाश में वास वासी । नमो हो विलासी दिपै तेज-रासी ॥ तुही गङ्ग हो, शम्भु के शीस वासी । तुही विष्णु के सङ्ग, रमती रमा-सी ॥ ५० ॥ तुही राम-रानी, रमी जनकजा-सी । तुही कृष्ण-प्यारी, बनी राधिका-सी ॥ तुही शक्ति हो, चार युग में प्रकासी । तुही भोग-भोगी, सँयोगी उदासी ॥ ५१ ॥ तुही ज्ञान-देनी, सदा तुङ्ग नैनी । तुही दीन मालीन की सार लैनी ॥ नमो शुभ्र-श्रेणी, नमो शुभ्र-बैनी । नमो पाप-क्षैनी, नमो मोक्ष-दैनी ॥ ५२ ॥ नमो धूप-छाया, नमो चन्द्र-काया । नमो पौन-पौनी, नमो दीन-दाया ! ॥ नमो हो सवित्री, उपर्ना मृणानी । नमो काम-रूपा, अरूपा भवानी ! ॥ ५३ ॥ नमो डाकिनी-शाकिनी भूत-भामा ! लिए नाम तेरो ललामा सु-श्यामा ॥ नमो अन्तरक्षी, नमो अन्त्र-यामी ! नमो हो अगाधी, नमो हो अधामी ॥ ५४ ॥ नमो हो अजीती, नमो हो हठीली ! नमोऽहं अडोली, नमोऽहं अकेली ! ॥ नमोऽहं अनादी, नमोऽहं अबादी । नमो पद्म-बादी, नमामी अगाधी ॥ ५५ ॥ तुही सिद्धि पर-सिद्ध है अष्ट आदी । तुही प्रकट नव निद्धि है रूप आदी ॥ तुही भक्ति-रूपी मनी-मन-निवासी । तुही विश्व-रमनी, तुही है उदासी ॥ ५६ ॥ तुही योग में, यज्ञ में वेद-वानी । तुही राग में, रङ्ग में है भवानी ॥ तुही यामिनी, कालिका दुष्ट-दमनी । तुही उर्वशी, अप्सरा, देव-रमनी ॥ ५७ ॥ तुही कालिका, रमे दल दुष्ट केते । कहै कौन तेरे चरित मञ्जु जेते ॥ अपर्णा सुपर्णा, सुवर्णा अकामा । सबै सिद्ध ध्यावैं तुम्हैं शम्भु-वामा ॥ ५८ ॥ कहूँ तेजवन्ती कहूँ लाजवन्ती । कहूँ गानवन्ती बजन्ती अनन्ती ॥ कहूँ दुष्ट गञ्जे, कहूँ कोट-भञ्जे । कहूँ सन्त रञ्जे, नमो मातु मञ्जे ॥ ५९ ॥ कहूँ दोष-दाहे, बचन तो निबाहे । सदा शक्ति साची, भगत की पनाहे ॥ क्षमो क्षेम-रूपी, महा-क्षोभ मेरे । क्षमो द्वन्द-क्षेमी, जिते दोष घेरे ॥ ६० ॥ क्षमो राज-राजेश्वरी, पीर तन की । क्षमो दीन-दाया, धरे आश धन की ॥ क्षमो कूर कर्मान के भेद-भेदी । क्षमो जैयन्ती, देव-दानव अखेदी ॥ ६१ ॥ क्षमो छलन-हारी, छली नाहिं माया । क्षमो नेति नारायणी नति गाया ॥ क्षमो दीन को, दीह-दारिद भवानी ! क्षमो दोष-दूषण, करी शुद्ध बानी ॥ ६२ ॥ क्षमो काम अरु क्रोध, कलि-कूर चारी । महा-दीन भारी, गही ओट सारी ॥ नमो निद्धि दीजै, भली सिद्धि आठै । महा-बुद्धि दीजै, सदा शुद्ध पाठे ॥ ६३ ॥ भली लक्ष दीजै, कृपा-दीठि कीजै । महा-तेज दीजै, बली छिद्र छीजै ॥ सदा आपनी भक्ति दीजै, न खीजै । सदा वंश की वृद्धता मातु ! दीजै ॥ ६४ ॥ अरोगी सदा देह दीजे, गती जो । रहे ध्यान तो में, जिते साल जी जो ॥ हनो सींव दुख का, नमो खानि सुख की । कठिन जो कलुष की गती, तीव्र रुख की ॥ ६५ ॥ महा-मन्द-भागी, कुकर्मी अभागी । रहों चर्ण लागी, क्षमो क्षेम-पागी ॥ नमो रूप-राशी, निशाकर-कला-सी । प्रभाकर-प्रभा-सी, छटा-सी रमा-सी ॥ ६६ ॥ नमो चन्द्र-वदनी, नमो दुष्ट-कदनी ! नमो मोद-सदनी, नमो रूप-मदनी ! ॥ नमो हंस-गमनी, नमो विश्व-रमनी ! नमो दैत्य-शमनी, नमो दीह-भवनी ! ॥ ६७ ॥ नमो शुभ्र-केशी, सु-भेषा सु-देशी ! विशेषी महेशी, नमो क्रान्त-धेशी ॥ परे जो तिहारे शरण दीन भारे । कई अम्ब ! तारे विचारे निहारे ॥ ६८ ॥ जहाँ बैठि ध्याई, तहीं पैठि जाई । भई है सहाई, जिते रङ्क-राई ॥ कहा काज छाई, मेरी बेर माई ? इती बेर लाई, न पीरा मिटाई ॥ ६९ ॥ धरी है तिहारी, हिये ओट भारी । सुनो कान दै मातु ! बिनती हमारी ॥ नमो मञ्जु-घोषी, नमो दीन-पोषी । नमो शत्रु-शोषी, नमो हो अदोषी ॥ ७० ॥ नमो चक्रवाली, नमो बक्र-शाली ! नमो हो, नमो भक्त की रक्ष-पाली ! ॥ नमो कण्ठ-गेही, न मोही अछेही ! नमो हो अदेही, नमो दीन-गेही ! ॥ ७१ ॥ नमो हो अदेही, नमो शुद्ध-वानी । ऋषी देव-ज्ञानी, कहानी न जानी ॥ नमो रैनि-काया, नमो मुण्ड-माली ! नमोऽहं त्रिलोकी, नमोऽहं कुशाली ! ॥ ७२ ॥ नमो भावनीयं, नमो रम्य-राशी ! नमोऽहं मृणाली, नमो काल-नाशी ! ॥ नमो ब्रह्म-दुहिता, नमो ब्रह्म-पाली ! नमो सेवकै, तारनी रक्ष-पाली ! ॥ ७३ ॥ नमो देवतानी, महा-आनि मानी । नमो गम्य-ज्ञानी, न जानी महानी ॥ नमो दिव्य सिंहासनी, चन्द्र-चूड़ी ! नमो गूढ़-गूढ़ी, नमो रूढ़-रूढ़ी ! ॥ ७४ ॥ नमो मस्तके, लेख-लेखी विधाता । नमो जीव-दाता, नमो शस्त्र-ज्ञाता ! ॥ नमो कण्ठ-वासा, करो शत्रु-नासा । चरण कञ्ज-युग मञ्जु दासा पियासा ॥ ७५ ॥ सदा भक्ति दीजै, छली क्षोभ छीजै । महा-दीन की मातु ! विनती सुनीजै ॥ लगी आनि तुव चर्ण में आस मेरी । भयो क्षोभ-सागर, करो पार बेरी ॥ ७६ ॥ महा-पातकी द्वार पै, मैं पुकारों । यथा और तारे, तथा मोहिं तारो ॥ नमो हो अकर्मी, नमो शुद्ध-कर्मी ! । नमो धाम-धर्मी, अवर्मी अमर्मी ! ॥ ७७ ॥ नमो श्रेष्ठ-वेष्ठा, नमो रूप-चेष्टा ! सुध्याऊँ मनाऊँ सदा, सिन्धु-श्रेष्ठा ॥ नमो ऊर्द्धनी, मूर्द्धनी, ऊर्द्ध-वासी ! नमो सिर्जनी, सत-गुणी सम-प्रकाशी ! ॥ ७८ ॥ नमो सत-घनी, चित-घनी, मोद-रासी ! नमो विश्व-व्यापी, तिमिर घोर-नाशी ! ॥ नमो तर्जनी, गर्जनी, दुष्ट-दाही ! नमो बेप्र-बाही, नमो शाह-शाही ! ॥ ७९ ॥ नमो मङ्गलीका, नमो हो अलीका ! नमो अर्थ अम्बे ! करो सिद्ध नीका ॥ नमो क्षीर-सैनी, नमो धीर-बैनी । महामोक्ष-क्षैनी, नमो कान्ति-ऐनी ॥ ८० ॥ नमो ज्ञान-तीता, नमो हो अतीता । नमो दीन-माता, भवानी अभीता ! ॥ नमो हंस-वाही, नमो वे अथाही ! । सदा जै, सदा जै, सदा जै अगाही ॥ ८१ ॥ नमो रूप आला, जगत में उजाला । निवासी हिमाला, नमो जोति-ज्वाला ! ॥ नमो फूल-धारी, नमो व्योम-चारी ! नमो हो, नमो जागती ज्योति भारी ॥ ८२ ॥ नमो रागिनी, भागनी, भूरि-दाया ! नमो शक्ति-शोभा, सदा हो सहाया ॥ दिनै-रैनि ‘दौलत’ चरण ध्यान लावे । कृपा-दीठि कीजो, महा-मोद पावे ॥ ८३ ॥ नमो अम्ब, जगदम्ब ! जननी दयाला । नमो भाग-भाली, कला है निराला ॥ नमो हेम-वरणी, नमो चक्र-धरणी ! असुर दूर-करनी, भवन सन्त-भरनी ॥ ८४ ॥ नमो ब्रह्म-श्रोती, नमो ब्रह्म-वेती ! नमो ब्रह्म-रक्षा, नमो ब्रह्म-चेती ! ॥ नमो ब्रह्म-बेटी, गिरा गौरि वरणी ! कृपा-दृष्टि-करणी, विपद-जाल-हरणी ! ॥ ८५ ॥ नमो बुद्धि-दाता, नमो हो विख्याता ! नमो हेम-गाता, नमो विश्व-माता ! ॥ नमो शारदा, सिद्ध-करनी सु-आसा । करो आनि मेरे हिये में निवासा ॥ ८६ ॥ धरे हाथ पुस्तक, सुभग स्वच्छ बीना । करैं गान गौरव, सदा सन्त भीना ॥ नहीं बाहु-बल थोरहु मातु ! मेरे । चरण की शरण मैं गही पास तेरे ॥ ८७ ॥ नमो क्रोधनी कालिका, तेग-धारी ! सुनो कान दै मातु ! विनती हमारी ॥ यथा दुष्ट तैं दैत्य चाबै अछैये । तथा शत्रु मेरे चबैये अघैये ॥ ८८ ॥ नमो अर्ब औ खर्ब की मातु ! दाता । इड़ा आरजा भारती भू विख्याता ॥ नमो पालनी दालनी दीन-दूषा । नमो भक्त-चण्डी, अनन्दी पियूषा ॥ ८९ ॥ नमो सन्त-हिय-मानसर की मराली ! गिरैं सन्त पद-कञ्ज पै भौंर-पाली ॥ सु-दीजो भला भक्त-सौरभ-सुगन्धी । सदा सेवते देवते जय मुकुन्दी ॥ ९० ॥ नमो दीठि-रूपा, नमो हो अदीठा ! नमो दुष्ट-दाही, नमो देव-ईठा ! ॥ नमो काम-चारी, नमो शुभ-अचारी ! । जपैं ब्रह्मचारी, अगति गति तिहारी ॥ ९१ ॥ नमो जालिपा, विश्व मो रूप इच्छा । चहैं देव-दारा, खड़े द्वार भिक्षा ॥ नमो रूप- भावी, नमो हो अभावी ! जोई तोहिं भावो, सोई बात फावी ॥ ९२ ॥ नमो शान्त-वर्मा, सु-कर्मा सु-केशी ! नमो व्यक्त जातीन के वेश भेशी ॥ नमो देव सन्तत, नमो देव-अंशा ! मुनी विप्र योगीश करते प्रशंसा ॥ ९३ ॥ नमो तुङ्ग-ध्वजनी, नमो नग-निवासी ! नमो भानु–भाशी, प्रभा-सी कला-सी ! ॥ नमो सौम्य-रूपा, नमो सत्य-बैनी ! नमो चारु-नैनी, नमो हो विजैनी ! ॥ ९४ ॥ नमो लाल-चीरी, नमो ज्योति-हीरी ! । नमो वीर-वीरी, नमो धीर-धीरी ! ॥ नमो लङ्क-डेसी, अजैसी हमेसी । नमो शक्ति-भेषी, नमो वाकधेशी ! ॥ ९५ ॥ नमो युद्ध-करनी, नमो बुद्धि-धरनी ! नमो काज-करनी, नमो पीर-हरनी ! ॥ नमो भौन-भरनी, नमो ताप-दलनी ! नमो सन्त-शरणी, नमो दुष्ट-भलनी ! ॥ ९६ ॥ नमो तारनी, कारनी मोक्ष-दाता ! आनन्द-स्वरूपा, अनूपा विख्याता ! ॥ चतुर वेद गावैं, चतुर कूट-चारी । प्रकट चन्द्रिका मातु ! कीरति तिहारी ॥ ९७ ॥ कटै मोह-माया औ भव-जाल भारी । कहै दास जो मातु ! कीरति तिहारी ॥ तुही मोक्ष-देनी, सदा ज्ञान-रूपा । सदा सच्चिदानन्दनी, भूप-भूपा ॥ ९८ ॥ प्रकट मन्त्र में मातु ! सत्या प्रकाशी । सदा मोद-कारी, अनन्दी हुलासी ॥ तुही भूमि आकाश की है अधारा । तुही कष्ट आरिष्ट को है निवारा ॥ ९९ ॥ करो दास की आस पूरी, भवानी ! तुही दास अवलम्ब है, अम्ब ! दानी ॥ सदा शरण तेरी, हरो पीर मेरी । कहा कारने मातु ! कीनी अबेरी ? ॥ १०० ॥ ॥ फल- श्रुति ॥ पढे पाठ जोई, नितै नेम प्राता । करैं काज पूरे, सदा सिद्धि-माता ॥ नमो जक्त-अम्बे ! जितै दोष-राशी । नहीं काव्य की रीति, यामे प्रकाशी ॥ १०१ ॥ दोऊ हाथ जोरे, खड़ो दीन द्वारे । महा-पातकी, दास ‘दौलत’ पुकारे ॥ करो सिद्धि कारज, धरे दीन ध्यानम् । सदा त्राहि मानं, सदा त्राहि मानम् ॥ १०२ ॥ Related