April 26, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-पंचम स्कन्धः-अध्याय-28 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-पंचम स्कन्धः-अष्टाविंशोऽध्यायः अट्ठाईसवाँ अध्याय शुम्भ का रक्तबीज को भगवती अम्बिका के पास भेजना और उसका देवी से वार्तालाप देवी के साथ रक्तबीज का युद्ध, विभिन्न शक्तियों के साथ भगवान् शिव का रणस्थल में आना तथा भगवती का उन्हें दूत बनाकर शुम्भ के पास भेजना, भगवान् शिव के सन्देश से दानवों का क्रुद्ध होकर युद्ध के लिये आना रक्तबीजद्वारा देवीसमीपे शुम्भनिशुम्भसंवादवर्णनम् व्यासजी बोले — हे राजन्! तत्पश्चात् वे देवी हँसकर मेघ के समान गम्भीर वाणी में उस रक्तबीज से यह युक्तिसंगत वचन बोलीं — हे मन्दबुद्धि ! तुम क्यों व्यर्थ प्रलाप कर रहे हो ? मैं तो पहले ही दूत के सामने उचित और हितकर बात कह चुकी हूँ कि यदि तीनों लोकों में कोई भी पुरुष रूप, बल और वैभव में मेरे समान हो तो मैं पतिरूप में उसका वरण कर लूँगी। अब तुम शुम्भ-निशुम्भ से कह दो कि मैं पूर्वकाल में ऐसी प्रतिज्ञा कर चुकी हूँ, अतः मेरे साथ युद्ध करो और रण में मुझे जीतकर [ मेरे साथ] विधिवत् विवाह कर लो ॥ १-४ ॥ तुम भी शुम्भ की आज्ञा से उसका कार्य सिद्ध करने के लिये यहाँ आये हो। अतएव यदि चाहो तो मेरे साथ युद्ध करो अथवा अपने स्वामी के साथ पाताललोक चले जाओ ॥ ५ ॥ व्यासजी बोले — देवी की बात सुनकर वह दैत्य क्रोध में भर उठा और बड़े वेग से देवी के सिंह पर भीषण बाण छोड़ने लगा ॥ ६ ॥ सर्पसदृश उन बाणों को देखकर अम्बिका ने दक्षतापूर्वक बड़ी फुर्ती के साथ अपने तीखे बाणों से उन्हें आकाश में ही क्षणभर में काट डाला ॥ ७ ॥ इसके बाद अम्बिका ने कान तक खींचकर धनुष से छोड़े गये तथा पत्थर पर घिसकर तीक्ष्ण बनाये गये अन्य बाणों से महान् असुर रक्तबीज पर प्रहार किया ॥ ८ ॥ भगवती के बाणों से आहत होकर पापी रक्तबीज रथ पर ही मूर्च्छित हो गया। रक्तबीज के गिर जाने पर बड़ा हाहाकार मच गया। उसके सभी सैनिक चीखने-चिल्लाने लगे और ‘हाय ! हम मारे गये — ऐसा कहने लगे ॥ ९१/२ ॥ तब अपने सैनिकों का अत्यन्त भीषण क्रन्दन सुनकर शुम्भ ने सभी दैत्ययोद्धाओं को शस्त्रास्त्र से सुसज्जित होने का आदेश दिया ॥ १०१/२ ॥ शुम्भ बोला — कम्बोजदेश के सभी दानव तथा उनके अतिरिक्त अन्य महाबली वीर विशेष करके कालकेयसंज्ञक पराक्रमी योद्धा भी अपनी-अपनी सेना के साथ निकल पढ़ें ॥ १११/२ ॥ व्यासजी बोले — इस प्रकार शुम्भ के आदेश देने पर उसकी सारी चतुरंगिणी सेना मदमत्त होकर देवी के संग्रामस्थल के लिये निकल पड़ी। समरभूमि में आयी हुई उस दानवी सेना को देखकर भगवती चण्डिका बार-बार भीषण तथा भयदायक घंटानाद करने लगीं। जगदम्बा ने धनुष का टंकार तथा शंखनाद किया। उस नाद के होते ही भगवती काली भी अपना मुख फैलाकर घोर ध्वनि करने लगीं ॥ १२-१४१/२ ॥ उस भयंकर शब्द कों सुनकर भगवती का वाहन बलशाली सिंह भी अद्भुत भय उत्पन्न करता हुआ बड़े जोर का गर्जन करने लगा। वह निनाद सुनकर सभी दैत्य क्रोध के मारे बौखला उठे और वे महाबली दैत्य देवी पर अस्त्र छोड़ने लगे ॥ १५-१६१/२ ॥ उस भयानक तथा रोमांचकारी महासंग्राम में ब्रह्मा आदि देवताओं की विभिन्न शक्तियाँ भी चण्डिका के पास पहुँच गयीं। जिस देवता का जैसा रूप, भूषण तथा वाहन था; ठीक उसी प्रकार के रूप, भूषण तथा वाहन से युक्त होकर सभी देवियाँ रणक्षेत्र में पहुँची थीं ॥ १७-१८१/२ ॥ ब्रह्माजी की शक्ति, जो ब्रह्माणी नाम से प्रख्यात हैं, हाथ में अक्षसूत्र तथा कमण्डलु धारण करके हंस पर आरूढ़ हो वहाँ आयीं। भगवान् विष्णु की शक्ति वैष्णवी गरुड पर सवार होकर रणभूमि में आयीं। वे पीताम्बर से विभूषित थीं तथा उन्होंने हाथों में शंख-चक्र-गदा-पद्म धारण कर रखा था। शंकर की शक्ति भगवती शिवा बैल पर सवार होकर हाथ में उत्तम त्रिशूल लिये मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण किये तथा सर्पों के कंगन पहने वहाँ उपस्थित हुईं ॥ १९-२११/२ ॥ भगवान् कार्तिकिय के समान ही रूप धारण करके सुन्दर मुखवाली भगवती कौमारी युद्ध की इच्छा से हाथ में शक्ति धारण करके मयूर पर आरूढ़ होकर आयीं। सुन्दर मुखवाली इन्द्राणी अतिशय उज्ज्वल हाथी पर सवार होकर हाथ में वज्र लिये उग्र क्रोध से आविष्ट हो समरभूमि में पहुँचीं। इसी प्रकार सूकर का रूप धारण करके एक विशाल प्रेत पर सवार होकर भगवती वाराही, नृसिंह के समान रूप धारण करके भगवती नारसिंही और यमराज के ही समान रूपवाली भयदायिनी शक्ति भगवती याम्या हाथ में दण्ड धारण किये तथा महिष पर आरूढ़ होकर मधुर-मधुर मुसकराती हुई संग्राम में आयीं। उसी प्रकार वरुण की शक्ति वारुणी तथा कुबेर की मदोन्मत्त शक्ति कौबेरी भी समरभूमि में पहुँच गयीं। इसी तरह अन्य देवताओं की शक्तियाँ भी उन्हीं देवों का रूप धारणकर अपनी-अपनी सेनाओं के साथ रणभूमि में उपस्थित हुईं। उन शक्तियों कों वहाँ उपस्थित देखकर भगवती अम्बिका बहुत हर्षित हुईं। इससे देवता निश्चिन्त तथा प्रसन्न हो गये और दैत्य भयभीत हो उठे ॥ २२-२७१/२ ॥ लोककल्याणकारी शिवजी भी उन शक्तियों के साथ वहाँ संग्राम में भगवती चण्डिका के पास आकर उनसे कहने लगे — देवताओं की कार्यसिद्धि के लिये आप शुम्भ-निशुम्भ तथा अन्य जो भी दानव उपस्थित हैं, उन सबका वध कर दीजिये। साथ ही सारी असुर-सेना का संहार करके और इस प्रकार संसार को भयमुक्त करके ये समस्त शक्तियाँ अपने-अपने स्थानों कों चली जायँ। [आप यह कार्य सम्पन्न करें जिससे] देवता यज्ञभाग पाने लगें, ब्राह्मण [निर्भय होकर] यज्ञ आदि करने में तत्पर हो जाये, सभी स्थावर-जंगम प्राणी सन्तुष्ट हो जाये, सब प्रकार के उपद्रव और अकाल आदि आपदाएँ समाप्त हो जायँ, मेघ समय पर वृष्टि करें और कृषि लोगों के लिये अधिक फलदायिनी हो ॥ २८-३२१/२ ॥ व्यासजी बोले — लोक का कल्याण करने वाले देवेश्वर शिव के ऐसा कहने पर भगवती चण्डिका के शरीर से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। वह शक्ति अत्यन्त भयंकर तथा प्रचण्ड थी, वह सैकड़ों सियारिनों के समवेत स्वर के समान ध्वनि कर रही थी और उसका रूप बहुत भयानक था। मन्द-मन्द मुसकानयुक्त मुखमण्डलवाली उस शक्ति ने पंचमुख शिवजी से कहा — हे देवदेव! आप दैत्यराज शुम्भ के पास शीघ्र जाइये। हे कामरिपु ! इस समय आप मेरे दूत का काम कीजिये। हे शंकर! कामपीड़ित शुम्भ तथा मदोन्मत्त निशुम्भ से मेरे शब्दों में कह दीजिये — ‘ तुम सब तत्काल स्वर्ग त्यागककर पाताललोक चले जाओ, जिससे देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में प्रविष्ट हो सकें और इन्द्र को स्वर्गलोक तथा अपना उत्तम इन्द्रासन पुनः प्राप्त हो जाय; साथ ही सभी देवताओं को उनके यज्ञभाग पुनः मिलने लगें। यदि जीवित रहने की तुम लोगों की बलवती इच्छा हो तो तुमलोग बहुत शीघ्र पाताललोक चले जाओ, जहाँ दानवलोग रहते हैं। अथवा अपने बल का आश्रय लेकर यदि तुम सब युद्ध की इच्छा रखते हो, तो मरने के लिये आ जाओ, जिससे मेरी सियारिनें तुमलोगों के कच्चे मांस से तृप्त हो जायँ ॥ ३३—३९१/२ ॥ व्यासजी बोले — चण्डिका का यह वचन सुनकर शिव अपनी सभा में बैठे हुए दैत्यगाज शुम्भ के पास शीघ्र जाकर उससे कहने लगे ॥ ४०१/२ ॥ शिवजी बोले — हे राजन्! मैं त्रिपुरासुर का संहार करने वाला महादेव हूँ। अम्बिका का दूत बनकर मैं इस समय तुम्हारा सम्पूर्ण हित करने के लिये यहाँ तुम्हारे पास आया हूँ। [देवी ने कहलाया है कि] तुमलोग स्वर्ग तथा भूलोक त्यागकर शीघ्र पाताललोक चले जाओ, जहाँ प्रह्माद तथा बलवानों में श्रेष्ठ राजा बलि रहते हैं। अथवा यदि मरने की ही इच्छा हो तो तुरंत सामने आ जाओ; मैं तुम सबको संग्राम में शीघ्र ही मार डालूँगी। तुम लोगों के कल्याण के लिये महारानी अम्बिका ने ऐसा कहा है ॥ ४१-४४ ॥ व्यासजी बोले — भगवती का यह अमृत-तुल्य कल्याणकारी सन्देश उन प्रधान दैत्यों को सुनाकर शूलधारी भगवान् शंकर लौट आये ॥ ४५ ॥ भगवती अम्बिका ने शिवजी को दूत बनाकर दानवों के पास भेजा था, अतः बे सम्पूर्ण त्रिलोकी में ‘शिवदूती’ इस नाम से विख्यात हुईं ॥ ४६ ॥ शंकरजी के मुख से कहे गये भगवती के इस दुष्कर सन्देश कों सुनते ही वे दैत्य भी कवच धारण करके तथा हाथों में शस्त्र लेकर शीघ्र ही युद्ध के लिये निकल पड़े ॥ ४७ ॥ वे दानव बड़े वेग से रणभूमि में चण्डिका के समक्ष आकर कानों तक खींचे गये तथा पत्थर पर सान चढ़े तीखे बाणों से प्रहार करने लगे ॥ ४८ ॥ भगवती कालिका त्रिशूल, गदा और शक्ति से दानवों को विदीर्ण करती हुई और उनका भक्षण करती हुई युद्ध में विचरने लगीं ॥ ४९ ॥ भगवती ब्रह्माणी युद्धभूमि में अपने कमण्डलु के जल के प्रक्षेपमात्र से उन महाबली दानवों को प्राणशून्य कर देती थीं ॥ ५० ॥ वृषभ पर विराजमान भगवती माहेश्वरी अपने त्रिशूल से रण में दानवों पर बड़े वेग से प्रहार करती थीं और उन्हें मारकर धराशायी कर देती थीं ॥ ५१ ॥ भगवती वैष्णवी गदा तथा चक्र के प्रहार से दानवों को निष्प्राण तथा सिरविहीन कर डालती थीं ॥ ५२ ॥ इन्द्र की शक्ति देवी ऐन्द्री ऐरावत हाथी की सूँड़ की चोट से पीड़ित बड़े-बड़े दैत्यों को अपने वज्र के प्रहार से भूतल पर गिरा देती थीं ॥ ५३ ॥ देवी वाराही कुपित होकर अपने तुण्ड तथा भयंकर दाढ़ों के प्रहार से सैकड़ों दैत्यों और दानवों को मार डालती थीं ॥ ५४ ॥ देवी नारसिंही अपने तीक्ष्ण नखों से बड़े-बड़े दैत्यों को फाड़-फाड़कर खाती हुई रणभूमि में विचर रही थीं तथा बार-बार गर्जना कर रही थीं ॥ ५५ ॥ शिवदूती अपने अट्टहास से ही दैत्यों को धराशायी कर देती थीं और चामुण्डा तथा कालिका बड़ी शीघ्रतासे उन्हें खाने लगती थीं ॥ ५६ ॥ मयूर पर विराजमान भगवती कौमारी देवताओं के कल्याण के लिये कानों तक खींचे गये तथा पत्थर पर सान चढ़े तीक्ष्ण बाणों से शत्रुओं का संहार करने लगीं ॥ ५७ ॥ भगवती वारुणी समरांगण में दैत्यों को अपने पाश में बाँधकर उन्हें अचेत करके एक के ऊपर एक के क्रम से गिरा देती थीं और वे निष्प्राण हो जाते थे ॥ ५८ ॥ इस प्रकार उन मातृशक्तियों के प्रयास से दानवों की वह ओजस्विनी तथा पराक्रमी सेना युद्धभूमि में तहस- नहस होकर भाग खड़ी हुई ॥ ५९ ॥ उस सेनारूपी समुद्र में बड़े जोर से रोने-चिल्लाने की ध्वनि होने लगी देवी के गणों के ऊपर देवता पुष्पों की वर्षा करने लगे ॥ ६० ॥ दानवों की भयंकर चीत्कार तथा देवताओं की जयध्वनि सुनकर रक्तबीज बहुत कुपित हुआ। उस समय दैत्यों को पलायित देखकर तथा देवताओं को गरजते हुए देखकर वह महाबली तथा तेजस्वी दैत्य रक्तबीज युद्धभूमि में स्वयं आ डटा। वह आयुधों से सुसज्जित होकर रथ पर सवार था और प्रत्यंचा की अद्भुत टंकार करता हुआ क्रोध के मारे आँखें लाल किये युद्ध के लिये देवी के सम्मुख आ गया ॥ ६१-६३ ॥ ॥ इस प्रकार अठारह हजार श्लोकों वाली श्रीमद्देवीभागवत महापुराण संहिता के अन्तर्गत पंचम स्कन्ध के देवीमाहात्म्य में रक्तबीज के साथ देवी का युद्ध वर्णन नामक अट्ठाईसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ २८ ॥ Content is available only for registered users. 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