May 10, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-सप्तमः स्कन्धः-अध्याय-21 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ उत्तरार्ध-सप्तमः स्कन्धः-एकविंशोऽध्यायः इक्कीसवाँ अध्याय विश्वामित्र का राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा माँगना और रानी का अपने को विक्रय हेतु प्रस्तुत करना हरिश्चन्द्रोपाख्यानवर्णनम् सूतजी बोले — इतने में यमराज के समान क्रोधयुक्त महान् तपस्वी विश्वामित्र मन में संकल्पित अपना दक्षिणा-सम्बन्धी धन माँगने के लिये वहाँ आ पहुँचे ॥ १ ॥ उन्हें देखते ही हरिश्चन्द्र मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। विश्वामित्र ने जल के छींटे देकर राजा से यह वचन कहा — हे राजेन्द्र ! उठिये, उठिये और अपनी अभीष्ट दक्षिणा दीजिये । ऋण धारण करने वालों का दुःख दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही रहता है ॥ २-३ ॥ तत्पश्चात् बर्फतुल्य शीतल जल के छींटे से आप्यायित होकर राजा चेतना में आ गये, किंतु विश्वामित्र को देखते ही वे पुनः मूर्च्छित हो गये। इससे मुनि कुपित हो उठे और राजा हरिश्चन्द्र को आश्वासन देते हुए द्विजश्रेष्ठ विश्वामित्र कहने लगे — ॥ ४-५ ॥ विश्वामित्र बोले — यदि आपको धैर्य अभीष्ट है तो मेरी वह दक्षिणा दे दीजिये । सत्य से ही सूर्य तपता है और सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। परमधर्म को भी सत्य में स्थित कहा गया है और स्वर्ग की प्रतिष्ठा भी सत्य से ही है । यदि एक हजार अश्वमेधयज्ञ और सत्य तुला पर रखे जायँ तो सत्य उन हजार अश्वमेधयज्ञों से बढ़ जायगा । मेरे यह सब क्या प्रयोजन ? हे राजन् ! यदि आप मेरी कहने से दक्षिणा नहीं दे देते तो सूर्यास्त होते ही मैं आपको निश्चितरूप से शाप दे दूँगा ॥ ६-९ ॥ ऐसा कहकर वे विप्र विश्वामित्र चले गये। इधर राजा हरिश्चन्द्र भय से व्याकुल हो उठे और उन नृशंस मुनि द्वारा पीड़ित वे निर्धन राजा दुःखित होकर पृथ्वी पर बैठ गये ॥ १० ॥ सूतजी बोले — इसी बीच एक वेदपारंगत विद्वान् ब्राह्मण अनेक ब्राह्मणों के साथ अपने घर से बाहर निकले । तत्पश्चात् वहाँ आकर रुके हुए उन तपस्वी ब्राह्मण को देखकर रानी ने राजा से धर्म और अर्थ से युक्त वचन कहा — ब्राह्मण तीनों वर्णों का पिता कहा जाता है। पुत्र के द्वारा पिता से धन लिया जा सकता है, इसमें सन्देह नहीं है । अतः मेरी तो यह सम्मति है कि इस ब्राह्मण से धन के लिये प्रार्थना की जाय ॥ ११–१३१/२ ॥ राजा बोले — हे सुमध्यमे ! मैं क्षत्रिय हूँ, इसलिये किसी से दान लेने की इच्छा नहीं कर सकता। याचना करना ब्राह्मणों का कार्य है, क्षत्रियों का नहीं। ब्राह्मण चारों वर्णों का गुरु है और सर्वदा पूजनीय है। इसलिये गुरु से याचना नहीं करनी चाहिये और क्षत्रियों को विशेषरूप से इसका पालन करना चाहिये ॥ १४-१५१/२ ॥ यज्ञ करना, अध्ययन करना, दान देना, शरण में आये हुए लोगों को अभय देना और प्रजाओं का पालन करना — ये ही कर्म क्षत्रियों के लिये विहित हैं । ‘मुझे कुछ दीजिये ‘ – ऐसा दीन वचन क्षत्रिय को नहीं बोलना चाहिये। हे देवि ! ‘ देता हूँ’ – ऐसा वचन मेरे हृदय में सदा विद्यमान रहता है । अतः कहीं से भी धन अर्जित करके उस ब्राह्मण को मैं दूँगा ॥ १६-१८ ॥ पत्नी ने कहा — काल के प्रभाव से सम और विषम परिस्थितियाँ आया ही करती हैं। काल ही मनुष्य को सम्मान तथा अपमान प्रदान करता है । यह काल ही मनुष्य को दाता तथा याचक बना देता है ॥ १९ ॥ एक विद्वान्, शक्तिशाली तथा कुपित ब्राह्मण ने राजा को सौख्य तथा राज्य से च्युत कर दिया, काल की यह विचित्र गति तो देखिये ॥ २० ॥ राजा बोले — तीक्ष्ण धार वाली तलवार से जीभ के दो टुकड़े हो जाना ठीक है, किंतु सम्मान का त्याग करके ‘दीजिये – दीजिये ‘ – ऐसा कहना ठीक नहीं है ॥ २१ ॥ हे महाभागे ! मैं क्षत्रिय हूँ, अतः किसी से कुछ भी माँग नहीं सकता, अपितु अपने बाहुबल से अर्जित धन का नित्य दान करता हूँ ॥ २२ ॥ पत्नी ने कहा — हे महाराज ! यदि आपका मन याचना करने में समर्थ नहीं है तो इन्द्रसहित सभी देवताओं ने न्यायपूर्वक मुझे आपको सौंपा है और आपने स्वामी बनकर मुझ आज्ञाकारिणी पत्नी की सदा रक्षा की है । अतएव हे महाद्युते ! आप मेरा मूल्य लेकर गुरु विश्वामित्र की दक्षिणा चुका दीजिये ॥ २३-२४ ॥ पत्नी की यह बात सुनकर राजा हरिश्चन्द्र ‘महान् कष्ट है, महान् कष्ट है’ – ऐसा कहकर अत्यन्त दुःखित हो विलाप करने लगे ॥ २५ ॥ तब उनकी धर्मपत्नी ने पुनः कहा — ‘आप मेरी यह बात मान लीजिये । अन्यथा विप्र के शापरूपी अग्नि से दग्ध हो जाने पर आपको नीचयोनि में पहुँचना पड़ेगा। न तो द्यूतक्रीडा के लिये, न मदिरापान के लिये, न राज्य के निमित्त और न तो भोग-विलास के लिये ही आप ऐसा करेंगे । अतः मेरे मूल्य से गुरु की दक्षिणा चुका दीजिये और अपने सत्यरूपी व्रत को सफल बनाइये॥ २६-२७ ॥ ॥ इस प्रकार अठारह हजार श्लोकों वाली श्रीमद्देवीभागवत महापुराण संहिता के अन्तर्गत सातवें स्कन्ध का ‘हरिश्चन्द्रोपाख्यानवर्णन’ नामक इक्कीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ २१ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe