May 28, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-दशम स्कन्धः-अध्याय-10 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ उत्तरार्ध-दशम स्कन्धः-दशमोऽध्यायः दसवाँ अध्याय वैवस्वत मनु का भगवती की कृपा से मन्वन्तराधिप होना, सावर्णि मनु के पूर्वजन्म की कथा सुरथनृपतिवृमत्तवर्णनम् श्रीनारायण बोले — [ हे नारद!] राजा वैवस्वत सातवें मनु कहे गये हैं । समस्त राजाओं में मान्य तथा दिव्य आनन्द का भोग करने वाले वे श्राद्धदेव भी कहे जाते हैं । ॥ १ ॥ वे वैवस्वत मनु पराम्बा भगवती की तपस्या करके उनके अनुग्रह से मन्वन्तर के अधिपति बन गये ॥ २ ॥ आठवें मनु भूलोक में सावर्णि नाम से विख्यात हुए। पूर्वजन्म में देवी की आराधना करके तथा उनसे वरदान प्राप्तकर वे मन्वन्तर के अधिपति हो गये। वे सभी राजाओं से पूजित, धीर, महापराक्रमी तथा देवीभक्तिपरायण थे ॥ ३-४ ॥ नारदजी बोले — उन सावर्णि मनु ने पूर्वजन्म में भगवती की पार्थिव मूर्ति की किस प्रकार आराधना की थी; इसे मुझे बताने की कृपा करें ॥ ५ ॥ श्रीनारायण बोले — स्वारोचिष मन्वन्तर में चैत्रवंश में उत्पन्न सुरथ नाम से विख्यात एक राजा हुए। वे महान् बल तथा पराक्रम से सम्पन्न, गुणग्राही, धनुर्धर, माननीय, श्रेष्ठ, कवि, कुशल, धनसंग्रह करने वाले तथा याचकों को दान देने वाले, शत्रुओं का दमन करनेवाले, मानी, सभी अस्त्रों के संचालन में परम दक्ष तथा बलवान् थे ॥ ६-७१/२ ॥ एक बार कोलाविध्वंसी 1 नामक क्षत्रिय राजा उनके शत्रु हो गये । महान् बलशाली शत्रुओं ने सेना के साथ चढ़ाई करके सम्मान के धनी उन राजा सुरथ की नगरी को घेर लिया ॥ ८-९ ॥ तत्पश्चात् शत्रुओं का विनाश करने वाले वे राजा सुरथ सेना से सुसज्जित होकर अपने नगर से निकल पड़े ॥ १० ॥ वे राजा सुरथ युद्ध में शत्रुओं के द्वारा जीत लिये गये। उनके अमात्यों तथा मन्त्रियों ने अवसर पाकर उनके कोष में स्थित सम्पूर्ण धन का पूरी तरह से हरण कर लिया। इससे राजा को महान् सन्ताप हुआ। वे परम तेजस्वी राजा सुरथ नगर से निष्कासित कर दिये गये ॥ ११-१२ ॥ तत्पश्चात् वे एक अश्व पर चढ़कर आखेट करने के बहाने वन में गये और भ्रमित चित्तवाले वे उस निर्जन वन में अकेले घूमने लगे ॥ १३ ॥ पुनः शान्त स्वभाव वाले पशुओं से युक्त तथा मुनि-शिष्यों से परिपूर्ण [सुमेधा ] मुनि के आश्रम में पहुँच जाने पर उनके चित्त को शान्ति मिली ॥ १४ ॥ उन राजा ने दूरदृष्टि वाले मुनिवर सुमेधाऋषि के परम रमणीक आश्रम में कुछ काल तक निवास किया ॥ १५ ॥ एक दिन राजा सुरथ मुनि के पूजनकृत्य की समाप्ति पर शीघ्र उनके पास पहुँचकर प्रणाम करके विनम्रतापूर्वक उनसे पूछने लगे — ॥ १६ ॥ हे मुने! मेरा मन अत्यधिक मानसिक कष्ट के कारण सदा सन्तप्त रहता है । हे भूदेव ! इस दुःख ने सभी तत्त्वों के ज्ञाता होने पर भी मुझे अज्ञानी-सा बना दिया है। मैं शत्रुओं से पराजित कर दिया गया हूँ तथा राज्यच्युत हो गया हूँ, फिर भी उनके प्रति मेरे मन में बार-बार ममता उत्पन्न हो रही है ॥ १७-१८ ॥ हे मुने! मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊँ तथा किस प्रकार शान्ति प्राप्त करूँ ? हे वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ ! अब तो मैं एकमात्र आपसे ही अनुग्रह की आशा करता हूँ । इस कष्ट के निवारण का कोई उपाय बताइये ॥ १९ ॥ मुनि बोले — हे राजन् ! आप अत्यन्त विस्मयकारी, अनुपम तथा सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले श्रेष्ठ देवी-माहात्म्य का श्रवण कीजिये ॥ २० ॥ वे विश्वमयी महामाया ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश को भी उत्पन्न करने वाली हैं। वे ही प्राणियों के मन को बलपूर्वक आकृष्ट करके मोहित कर देती हैं; हे राजन् ! इस रहस्य को आप भलीभाँति जान लीजिये। हे पृथ्वीपते! वे ही समग्र विश्व का सृजन करती हैं, सर्वदा पालन करती हैं तथा अन्त में रुद्ररूप से संहार करती हैं। वे महामाया सभी मनोरथ पूर्ण करने वाली, विश्व का संहार करने वाली तथा दुर्धर्ष कालरात्रिरूपा साक्षात् काली हैं और वे ही कमल-निवासिनी महालक्ष्मी हैं । यह जगत् उन्हीं से उत्पन्न हुआ है, उन्हीं में स्थित भी है और अन्त में उन्हीं में विलीन भी हो जायगा, अतएव वे भगवती परात्परा हैं। हे राजन्! उन भगवती की कृपा जिसके ऊपर हो जाती है, वही इस मोहजाल से मुक्त होता है; हे भूपते ! इसमें सन्देह नहीं है ॥ २१–२५ ॥ ॥ इस प्रकार अठारह हजार श्लोकों वाली श्रीमद्देवीभागवत महापुराण संहिता के अन्तर्गत दसवें स्कन्ध का ‘सुरथनृपतिवृत्तवर्णन’ नामक दसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १० ॥ 1. ‘कोलाविध्वंसी’ यह किसी विशेष कुल के क्षत्रियों की संज्ञा है । दक्षिण में ‘कोला’ नगरी प्रसिद्ध है, वह प्राचीन काल में राजधानी थी। जिन क्षत्रियों ने उस पर आक्रमण करके उसका विध्वंस किया, वे ‘कोलाविध्वंसी’ कहलाये । Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe