श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-एकादशः स्कन्धः-अध्याय-06
॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥
॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥
उत्तरार्ध-एकादशः स्कन्धः-षष्ठोऽध्यायः
छठा अध्याय
रुद्राक्षधारण की महिमा के सन्दर्भ में गुणनिधि का उपाख्यान
रुद्राक्षमाहात्म्ये गुणनिधिमोक्षवर्णनम्

ईश्वर बोले — हे महासेन ! कुश-ग्रन्थि, पुत्रजीव (जियापोती) आदि से निर्मित तथा अन्य वस्तु से बनी हुई मालाओं में से कोई एक भी रुद्राक्ष-माला की सोलहवीं कला के बराबर भी नहीं हो सकती ॥ १ ॥ जैसे पुरुषों में विष्णु, ग्रहों में सूर्य, नदियों में गंगा, मुनियों में कश्यप, घोड़ों में उच्चैःश्रवा, देवताओं में महेश्वर, देवियों में गौरी श्रेष्ठ हैं; उसी प्रकार यह रुद्राक्ष श्रेष्ठ है ॥ २-३ ॥ रुद्राक्ष से बढ़कर न कोई स्तोत्र है और न कोई व्रत है। सभी प्रकार के अक्षय दानों की तुलना में रुद्राक्ष-दान विशेष महिमा वाला है ॥ ४ ॥ जो मनुष्य किसी शान्त स्वभाव वाले शिवभक्त को उत्तम रुद्राक्ष का दान करता है, उसके पुण्यफल की सीमा का वर्णन करने में मैं समर्थ नहीं हूँ ॥ ५ ॥

जो मनुष्य कण्ठ रुद्राक्ष धारण किये हुए किसी व्यक्ति को अन्न प्रदान करता है, वह अपने इक्कीस कुलों का उद्धार करके रुद्रलोक को जाता है ॥ ६ ॥ जो ब्राह्मण अपने मस्तक पर भस्म नहीं लगाता, शरीर पर रुद्राक्ष नहीं धारण करता और शिव-मन्दिर में पूजा नहीं करता, वह चाण्डालों में भी अधम है ॥ ७ ॥ मांस खाने वाला, सुरापान करने वाला तथा अन्त्यजों के सान्निध्य में रहने वाला भी सिर पर रुद्राक्ष धारण करने पर तज्जन्य पापों से मुक्त हो जाता है ॥ ८ ॥ सभी प्रकार के यज्ञ, तप, दान तथा वेदाध्ययन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह फल मात्र रुद्राक्ष- धारण से शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है ॥ ९ ॥ चारों वेदों का स्वाध्याय करने, पुराणों को पढ़ने, तीर्थों का सेवन करने तथा सभी विद्याओं का अध्ययन करने के फलस्वरूप जो पुण्य होता है, वह पुण्य मनुष्य केवल रुद्राक्षधारण से तत्काल प्राप्त कर लेता है ॥ १०१/२

प्रयाणकाल में रुद्राक्ष धारण करके यदि कोई मृत्यु को प्राप्त होता है, तो वह रुद्रत्व को प्राप्त हो जाता है और उसका पुनर्जन्म नहीं होता ॥ १११/२

यदि मनुष्य कण्ठ में या दोनों भुजाओं पर रुद्राक्ष धारण किये हुए मर जाता है तो वह अपनी इक्कीस पीढ़ियों को तारकर अन्त में रुद्रलोक में निवास करता है ॥ १२१/२

जो भस्म तथा रुद्राक्ष धारण करता है; वह महादेव शिव के लोक में पहुँच जाता है, चाहे वह ब्राह्मण हो या चाण्डाल और गुणवान् हो अथवा गुण से रहित । पवित्र हो अथवा अपवित्र तथा चाहे वह अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करने वाला ही क्यों न हो । म्लेच्छ हो अथवा चाण्डाल हो या सभी पातकों से युक्त ही क्यों न हो, वह केवल रुद्राक्षधारण से ही रुद्रस्वरूप हो जाता है, इसमें संशय नहीं है ॥ १३-१५ ॥ सिर पर रुद्राक्ष धारण करने से करोड़ गुना, दोनों कानों में पहनने से दस करोड़ गुना, गले में धारण करने से सौ करोड़ गुना, मस्तक पर धारण करने से हजार करोड़ गुना, यज्ञोपवीत में धारण करने से इससे भी दस हजार गुना तथा दोनों भुजाओं पर धारण करने से लाख करोड़ गुना फल मिलता है और मणिबन्ध में धारण करने पर यह रुद्राक्ष मोक्ष का परम साधन बन जाता है ॥ १६-१७ ॥ कोई ब्राह्मण रुद्राक्ष धारण करके भक्तिपूर्वक जो कुछ भी वैदिक कर्म करता है, उसे उसका महान् फल प्राप्त होता है ॥ १८ ॥

श्रद्धारहित होकर भी यदि कोई गले में रुद्राक्ष धारण कर ले तो नित्य पापकर्म में रत रहने पर भी वह सभी बन्धनों से छूट जाता है॥ १९ ॥ जो अपने मन में रुद्राक्ष धारण करने की भावना रखता है, किंतु उसे धारण नहीं कर पाता, तो भी वह महेश्वर-स्वरूप है और इस लोक में शिवलिंग की भाँति नमस्कार के योग्य है ॥ २० ॥ कोई व्यक्ति चाहे विद्यासम्पन्न हो अथवा विद्यारहित, वह रुद्राक्ष धारण कर लेनेमात्र से ही शिवलोक को प्राप्त हो जाता है, जैसे कीकट नामक स्थान विशेष में एक गर्दभ शिवलोक चला गया था ॥ २१ ॥

स्कन्द बोले — हे देव ! उस गर्दभ ने कीकटदेश में किस कारण से रुद्राक्षों को धारण किया था और किसने उसे रुद्राक्ष दिया था ? हे परमेश्वर ! वह सारा वृत्तान्त आप मुझे बताइये ॥ २२ ॥

श्रीभगवान् बोले — हे पुत्र ! अब तुम एक प्राचीन वृत्तान्त सुनो। एक गर्दभ विन्ध्यपर्वत पर रुद्राक्ष का बोझा ढोया करता था । एक समय पथिक अधिक बोझा लादकर उसे हाँकने लगा, जिससे अत्यधिक थका हुआ वह गर्दभ उस बोझ को ढोने में असमर्थ होकर भूमि पर गिर पड़ा और उसने प्राण त्याग दिये । हे महासेन ! इसके बाद मेरे अनुग्रह से वह हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए तथा त्रिनेत्रधारी होकर महेश्वररूप में मेरे पास आ गया ॥ २३-२४१/२

रुद्राक्ष के मुखों की जितनी दुर्लभ संख्या होती है, उतने हजार युगों तक रुद्राक्ष धारण करने वाला शिवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ॥ २५१/२

अपने शिष्य को ही रुद्राक्ष-माहात्म्य बताना चाहिये, जो शिष्य न हो उसे कभी नहीं बताना चाहिये, साथ ही अभक्तों तथा मूर्खो के समक्ष इसे प्रकट नहीं करना चाहिये ॥ २६१/२

चाहे कोई भक्तिपरायण हो अथवा भक्तिरहित हो, नीच हो अथवा नीच से भी बढ़कर हो, यदि वह रुद्राक्ष धारण कर ले तो सभी पापों से मुक्त हो जाता है ॥ २७१/२

रुद्राक्ष धारण करने से होने वाले पुण्य की तुलना भला किसके साथ की जा सकती है ? तत्त्वदर्शी मुनिगण इस रुद्राक्षधारण को महाव्रत की संज्ञा देते हैं ॥ २८१/२

जिस व्यक्ति ने एक हजार रुद्राक्ष के धारण करने का नियम बना रखा है, सभी देवता उसे नमस्कार करते हैं, जैसे रुद्र हैं वैसे ही वह भी है ॥ २९ ॥ जो मनुष्य एक हजार रुद्राक्ष के अभाव की स्थिति में दोनों भुजाओं पर सोलह-सोलह, शिखा में एक, दोनों हाथों में बारह-बारह, गले में बत्तीस, मस्तक पर चालीस, प्रत्येक कान में छः-छः तथा वक्ष:स्थल पर एक सौ आठ रुद्राक्ष धारण करता है; वह रुद्र के समान पूजित होता है ॥ ३०-३२ ॥ जो व्यक्ति मोती, मूँगा, स्फटिक, रौप्य, वैदूर्य तथा सुवर्ण आदि से जटित रुद्राक्ष धारण करता है; वह साक्षात् शिवस्वरूप हो जाता है ॥ ३३ ॥ जो आलस्यवश केवल रुद्राक्षों को ही धारण करता है, उस व्यक्ति को पाप उसी तरह स्पर्श नहीं कर सकते, जैसे अन्धकार सूर्य को स्पर्श नहीं कर पाता ॥ ३४ ॥ रुद्राक्ष की माला से जपा गया मन्त्र अनन्त फल प्रदान करता है । जिसके शरीर पर अत्यन्त पुण्यदायक एक भी रुद्राक्ष नहीं रहता, उसका जन्म उसी भाँति निरर्थक है, जैसे त्रिपुण्ड्र धारण न करने वाले का जीवन अर्थहीन होता है ॥ ३५१/२

जो अपने मस्तक पर रुद्राक्ष धारण करके शिरः स्नान करता है, उसे गंगास्नान करने का फल प्राप्त होता है; इसमें संशय नहीं है ॥ ३६१/२

एकमुखी, पंचमुखी, ग्यारहमुखी, चौदहमुखी तथा और भी कुछ रुद्राक्षों की लोक में पूजा की जाती है ॥ ३७१/२

साक्षात् शंकर के आत्मस्वरूप इस रुद्राक्ष की यदि नित्य भक्तिपूर्वक पूजा की जाय तो यह दरिद्र व्यक्ति को भी पृथ्वी पर राजा बना देता है ॥ ३८१/२

अब इस सम्बन्ध में मैं तुमसे एक प्राचीन उत्तम आख्यान का वर्णन करूँगा । ऐसा सुना जाता है कि कोसल-देश में गिरिनाथ नामक एक ब्राह्मण रहता था । वह महाधनी, धर्मात्मा, वेद-वेदांग में पारंगत, यज्ञपरायण तथा दीक्षायुक्त था । उसका गुणनिधि नाम से विख्यात एक पुत्र था, जो युवा, मनोहर आकृतिवाला तथा कामदेव के समान सुन्दर था ॥ ३९-४१ ॥ उसने अपने रूप तथा मदयुक्त यौवन से सुधिषण नामक अपने गुरु की मुक्तावली नाम वाली भार्या को मोहित कर लिया ॥ ४२ ॥ कुछ दिनों तक मुक्तावली के साथ उसका सम्पर्क रहा, किंतु बाद में गुरु से भय के कारण उसने उन्हें विष दे दिया और वह निर्भय होकर सहवासपरायण हो गया ॥ ४३ ॥ जब उसके माता-पिता को इस कर्म के विषय में कुछ ज्ञात हुआ, तब उसने माता-पिता को भी उसी क्षण विष देकर मार डाला ॥ ४४ ॥

तत्पश्चात् अनेक प्रकार के भोग-विलासों में सम्पूर्ण धनके व्यय हो जाने पर उस दुष्ट ने ब्राह्मणों के घर में चोरी करना आरम्भ कर दिया ॥ ४५ ॥ सुरापान से निरन्तर मदोन्मत्त रहने के कारण वह जाति से बहिष्कृत कर दिया गया तथा सभी लोगों ने उसे गाँव से बाहर निकाल दिया। तब वह वन में विचरण करने लगा ॥ ४६ ॥ उस मुक्तावली को साथ में लेकर वह घने जंगल में चला गया। वहाँ मार्ग में स्थित होकर उसने [आने-जानेवाले] अनेक ब्राह्मणों को धन के लोभ से मार डाला ॥ ४७ ॥ इस प्रकार बहुत समय बीत जाने के बाद वह नीच प्राणी मृत्यु को प्राप्त हुआ और उसे लेने के लिये हजारों यमदूत आये ॥ ४८ ॥ उसी समय शिव के गण शिवलोक से वहाँ आ पहुँचे और फिर हे गिरिजानन्दन ! उन दोनों (यमदूतों तथा शिवदूतों) – में परस्पर विवाद होने लगा ॥ ४९ ॥

तब यमदूतों ने कहा — हे शम्भु के सेवको! आप लोग बतायें कि इसका कौन-सा पुण्य है, जो आप लोग इसे शिवलोक ले जाना चाहते हैं ? ॥ ५० ॥

इस पर शिवदूत कहने लगे कि यह जिस स्थान पर मृत्यु को प्राप्त हुआ है, उस भूमि के दस हाथ नीचे रुद्राक्ष विद्यमान है । हे यमदूतो ! उसी रुद्राक्ष के प्रभाव से इसे हम लोग शिव के पास ले जायँगे ॥ ५११/२

तत्पश्चात् वह गुणनिधि नामक ब्राह्मण दिव्य रूप धारण करके विमान पर आरूढ़ होकर शिवदूतों के साथ शिवलोक चला गया । हे सुव्रत ! मैंने तुमसे रुद्राक्ष का यह माहात्म्य कह दिया । इस प्रकार मेरे द्वारा संक्षेप में वर्णित यह रुद्राक्षमाहात्म्य सभी पापों का नाश करने वाला तथा महान् पुण्यफल प्रदान करने वाला है ॥ ५२–५४ ॥

॥ इस प्रकार अठारह हजार श्लोकों वाली श्रीमद्देवीभागवत महापुराण संहिता के अन्तर्गत ग्यारहवें स्कन्ध का ‘रुद्राक्ष- माहात्म्य में गुणनिधिमोक्षवर्णन’ नामक छठा अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ६ ॥

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