April 13, 2019 | Leave a comment श्रीमद्भागवतमहापुराण – नवम स्कन्ध – अध्याय १२ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय बारहवाँ अध्याय इक्ष्वाकुवंश के शेष राजाओं का वर्णन श्रीशुकदेवजी कहते हैं — परीक्षित् ! कुश का पुत्र हुआ अतिथि, उसका निषध, निषध के नभ, नभ का पुण्डरीक और पुण्डरीक का क्षेमधन्वा ॥ १ ॥ क्षेमधन्वा का देवानीक, देवानीक का अनीह, अनीह का पारियात्र, पारियात्र का बलस्थल और बलस्थल का पुत्र हुआ वज्रनाभ । यह सूर्य का अंश था ॥ २ ॥ वज्रनाभ से खगण, खगण से विधृति और विधृति से हिरण्यनाभ की उत्पत्ति हुई । वह जैमिनि का शिष्य और योगाचार्य था ॥ ३ ॥ कोसलदेशवासी याज्ञवल्क्य ऋषि ने उसकी शिष्यता स्वीकार करके उससे अध्यात्मयोग की शिक्षा ग्रहण की थी । वह योग हृदय की गाँठ काट देनेवाला तथा परम सिद्धि देनेवाला है ॥ ४ ॥ हिरण्यनाभ का पुष्य, पुष्य का ध्रुवसन्धि, ध्रुवसन्धि का सुदर्शन, सुदर्शन का अग्निवर्ण, अग्निवर्ण का शीघ्र और शीघ्र का पुत्र हुआ मरु ॥ ५ ॥ मरु ने योगसाधना से सिद्धि प्राप्त कर ली और वह इस समय भी कलाप नामक ग्राम में रहता है । कलियुग के अन्त में सूर्यवंश के नष्ट हो जाने पर वह उसे फिर से चलायेगा ॥ ६ ॥ मरु से प्रसुश्रुत, उससे सन्धि और सन्धि से अमर्षण का जन्म हुआ । अमर्षण का महस्वान् और महस्वान् का विश्वसाह्न ॥ ७ ॥ विश्वसाह्न का प्रसेनजित्, प्रसेनजित् का तक्षक और तक्षक का पुत्र बृहद्वल हुआ । परीक्षित् ! इसी बृहद्वल को तुम्हारे पिता अभिमन्यु ने युद्ध में मार डाला था ॥ ८ ॥ परीक्षित् ! इक्ष्वाकुवंश के इतने नरपति हो चुके हैं । अब आनेवालों के विषय में सुनो । बृहद्वल का पुत्र होगा बृहद्रण ॥ ९ ॥ बृहद्रण का उरुक्रिय, उसका वत्सवृद्ध, वत्सवृद्ध का प्रतिव्योम, प्रतिव्योम का भानु और भानु का पुत्र होगा सेनापति दिवाक ॥ १० ॥ दिवाक का वीर सहदेव, सहदेव का बृहदश्व, बृहदश्व का भानुमान्, भानुमान् का प्रतीकाश्व और प्रतीकाश्व का पुत्र होगा सुप्रतीक ॥ ११ ॥ सुप्रतीक का मरुदेव, मरुदेव का सुनक्षत्र, सुनक्षत्र का पुष्कर, पुष्कर का अन्तरिक्ष, अन्तरिक्ष का सुतपा और उसका पुत्र होगा अमित्रजित् ॥ १२ ॥ अमित्रजित् से बृहद्राज, बृहद्राज से बर्हि, बर्हि से कृतञ्जय, कृतञ्जय से रणञ्जय और उससे सञ्जय होगा ॥ १३ ॥ सञ्जय का शाक्य, उसका शुद्धोद और शुद्धोद का लाङ्गल, लाङ्गल का प्रसेनजित् और प्रसेनजित् का पुत्र क्षुद्रक होगा ॥ १४ ॥ क्षुद्रक से रणक, रणक से सुरथ और सुरथ से इस वंश के अन्तिम राजा सुमित्र का जन्म होगा । ये सब बृहद्वल के वंशधर होंगे ॥ १५ ॥ इक्ष्वाकु का यह वंश सुमित्र तक ही रहेगा । क्योंकि सुमित्र के राजा होने पर कलियुग में यह वंश समाप्त हो जायगा ॥ १६ ॥ ॥ श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां नवमस्कन्धे द्वादशोऽध्यायः ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Related