April 14, 2019 | aspundir | Leave a comment श्रीमद्भागवतमहापुराण – नवम स्कन्ध – अध्याय १७ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय सत्रहवाँ अध्याय क्षत्रवृद्ध, रजि आदि राजाओं के वंश का वर्णन श्रीशुकदेवजी कहते हैं — परीक्षित् ! राजेन्द्र पुरूरवा का एक पुत्र था आयु । उसके पाँच लड़के हुए — नहुष, क्षत्रवृद्ध, रजि, शक्तिशाली रम्भ और अनेना । अब क्षत्रवृद्ध का वंश सुनो । क्षत्रवृद्ध के पुत्र थे सुहोत्र । सुहोत्र के तीन पुत्र हुए — काश्य, कुश और गृत्समद् । गृत्समद का पुत्र हुआ शुनक । इसी शुनक के पुत्र ऋग्वेदियों में श्रेष्ठ मुनिवर शौनकजी हुए ॥ १-३ ॥ काश्य का पुत्र काशि, काशि का राष्ट्र, राष्ट्र का दीर्घतमा और दीर्घतमा के धन्वन्तरि । यही आयुर्वेद के प्रवर्तक हैं ॥ ४ ॥ ये यज्ञभाग के भोक्ता और भगवान् वासुदेव के अंश हैं । इनके स्मरणमात्र से ही सब प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं । धन्वन्तरि का पुत्र हुआ केतुमान् और केतुमान् का भीमरथ ॥ ५ ॥ भीमरथ का दिवोदास और दिवोदास का द्युमान् — जिसका एक नाम प्रतर्दन भी है । यही द्युमान् शत्रुजित्, वत्स, ऋतध्वज और कुवलयाश्व के नाम से भी प्रसिद्ध है । द्युमान् के ही पुत्र अलर्क आदि हुए ॥ ६ ॥ परीक्षित् ! अलर्क के सिवा और किसी राजा ने छाछठ हजार (६६०००) वर्ष तक युवा रहकर पृथ्वी का राज्य नहीं भोगा ॥ ७ ॥ अलर्क का पुत्र हुआ सन्तति, सन्तति को सुनीथ, सुनीथ का सुकेतन, सुकेतन का धर्मकेतु और धर्मकेतु का सत्यकेतु ॥ ८ ॥ सत्यकेतु से धृष्टकेतु, धृष्टकेतु से राजा सुकुमार, सुकुमार से वीतिहोत्र, वीतिहोत्र से भर्ग और भर्ग से राजा भार्गभूमि का जन्म हुआ ॥ ९ ॥ ये सब-के-सब क्षत्रवृद्ध के वंश में काशि से उत्पन्न नरपति हुए । रम्भ के पुत्र का नाम था रभस, उससे गम्भीर और गम्भीर से अक्रिय का जन्म हुआ ॥ १० ॥ अक्रिय की पत्नी से ब्राह्मणवंश चला । अब अनेना का वंश सुनो । अनेना का पुत्र था शुद्ध, शुद्ध का शुचि, शुचि का त्रिककुद् और त्रिककुद् का धर्मसारथि ॥ ११ ॥ धर्मसारथि के पुत्र थे शान्तरय । शान्तरय आत्मज्ञानी होने के कारण कृतकृत्य थे, उन्हें सन्तान की आवश्यकता न थी । परीक्षित् ! आयु के पुत्र रजि के अत्यन्त तेजस्वी पाँच सौ पुत्र थे ॥ १२ ॥ देवताओं की प्रार्थना से रजि ने दैत्यों का वध करके इन्द्र को स्वर्ग का राज्य दिया । परन्तु वे अपने प्रह्लाद आदि शत्रुओं से भयभीत रहते थे, इसलिये उन्होंने वह स्वर्ग फिर रजि को लौटा दिया और उनके चरण पकड़कर उन्हीं को अपनी रक्षा का भार भी सौंप दिया । जब रजि की मृत्यु हो गयी, तब इन्द्र के माँगने पर भी रजि के पुत्रों ने स्वर्ग नहीं लौटाया । वे स्वयं ही यज्ञों का भाग भी ग्रहण करने लगे । तब गुरु बृहस्पतिजी ने इन्द्र की प्रार्थना से अभिचारविधि से हवन किया । इससे वे धर्म के मार्ग से भ्रष्ट हो गये । तब इन्द्र ने अनायास ही उन सब रजि के पुत्रों को मार डाला । उनमें से कोई भी न बचा । क्षत्रवृद्ध के पौत्र कुश से प्रति, प्रति से सञ्जय और सञ्जय से जय का जन्म हुआ ॥ १३-१६ ॥ जय से कृत, कृत से राजा हर्यवन, हर्यवन से सहदेव, सहदेव से हीन और हीन से जयसेन नामक पुत्र हुआ ॥ १७ ॥ जयसेन का सङ्कृति, सड्कृति का पुत्र हुआ महारथी वीरशिरोमणि जय । क्षत्रवृद्ध की वंश-परम्परा में इतने ही नरपति हुए । अब नहुषवंश का वर्णन सुनो ॥ १८ ॥ ॥ श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां नवमस्कन्धे सप्तदशोऽध्यायः ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe