April 16, 2019 | aspundir | Leave a comment श्रीमद्भागवतमहापुराण – नवम स्कन्ध – अध्याय २२ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय बाईसवाँ अध्याय पाञ्चाल, कौरव और मगधदेशीय राजाओं के वंश का वर्णन श्रीशुकदेवजी कहते हैं — परीक्षित् ! दिवोदास का पुत्र था मित्रेयु । मित्रेयु के चार पुत्र हुए — च्यवन, सुदास, सहदेव और सोमक । सोमक के सौ पुत्र थे, उनमें सबसे बड़ा जन्तु और सबसे छोटा पृषत था । पृषत के पुत्र द्रुपद थे, द्रुपद के द्रौपदी नाम की पुत्री और धृष्टद्युम्न आदि पुत्र हुए ॥ १-२ ॥ धृष्टद्युम्न का पुत्र था धृष्टकेतु । भर्म्याश्व के वंश में उत्पन्न हुए ये नरपति ‘पाञ्चाल’ कहलाये । अजमीढ का दूसरा पुत्र था ऋक्ष । उनके पुत्र हुए संवरण ॥ ३ ॥ संवरण का विवाह सूर्य की कन्या तपती से हुआ । उन्हीं के गर्भ से कुरुक्षेत्र के स्वामी कुरु का जन्म हुआ । कुरु के चार पुत्र हुए — परीक्षित्, सुधन्वा, जहू और निषधाश्च ॥ ४ ॥ सुधन्वा से सुहोत्र, सुहोत्र से च्यवन, च्यवन से कृती, कृती से उपरिचरवसु और उपरिचरवसु से बृहद्रथ आदि कई पुत्र उत्पन्न हुए ॥ ५ ॥ उनमें बृहद्रथ, कुशाम्ब, मत्स्य, प्रत्यग्न और चेदिप आदि चेदिदेश के राजा हुए। बृहद्रथ का पुत्र था कुशाग्र, कुशाग्र का ऋषभ, ऋषभ का सत्यहित, सत्यहित का पुष्पवान् और पुष्पवान् के जहु नामक पुत्र हुआ । बृहद्रथ की दूसरी पत्नी के गर्भ से एक शरीर के दो टुकड़े उत्पन्न हुए ॥ ६-७ ॥ उन्हें माता ने बाहर फेंकवा दिया । तब ‘जरा’ नाम की राक्षसी ने ‘जियो, जियो’ इस प्रकार कहकर खेल-खेल में उन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया । उसी जोड़े हुए बालक का नाम हुआ जरासन्ध ॥ ८ ॥ जरासन्ध का सहदेव, सहदेव का सोमापि और सोमापि का पुत्र हुआ श्रुतश्रवा । कुरु के ज्येष्ठ पुत्र परीक्षित् के कोई सन्तान न हुई । जहु का पुत्र था सुरथ ॥ ९ ॥ सुरथ का विदूरथ, विदूरथ को सार्वभौम, सार्वभौम का जयसेन, जयसेन का राधिक और राधिक का पुत्र हुआ अयुत ॥ १० ॥ अयुत का क्रोधन, क्रोधन का देवातिथि, देवातिथि का ऋष्य, ऋष्य का दिलीप और दिलीप का पुत्र प्रतीप हुआ ॥ ११ ॥ प्रतीप के तीन पुत्र थे — देवापि, शन्तनु और बाह्लीक । देवापि अपना पैतृक राज्य छोड़कर वन में चला गया ॥ १२ ॥ इसलिये उसके छोटे भाई शन्तनु राजा हुए । पूर्वजन्म में शन्तनु का नाम महाभिष था । इस जन्म में भी वे अपने हाथों से जिसे छू देते थे, वह बुढे से जवान हो जाता था ॥ १३ ॥ उसे परम शान्ति मिल जाती थी । इसी करामात के कारण उनका नाम ‘शन्त्तनु’ हुआ । एक बार शन्तनु के राज्य में बारह वर्ष तक इन्द्र ने वर्षा नहीं की । इस पर ब्राह्मणों ने शन्तनु से कहा कि “तुमने अपने बड़े भाई देवापि से पहले ही विवाह, अग्निहोत्र और राजपद को स्वीकार कर लिया, अतः तुम परिवेत्ता (दाराग्निहोत्रसंयोगं कुरुते योऽग्रजे स्थिते । परिवेत्ता स विज्ञेयः परिवित्तिस्तु पूर्वजः ॥ अर्थात् जो पुरुष अपने बड़े भाई के रहते हुए उससे पहले ही विवाह और अग्निहोत्र का संयोग करता है । उसे परिवेत्ता जानना चाहिये और उसका बड़ा भाई परिवित्ति कहलाता है।) हो; इससे तुम्हारे राज्य में वर्षा नहीं होती । अब यदि तुम अपने नगर और राष्ट्र की उन्नति चाहते हो, तो शीघ्र-से-शीघ्र अपने बड़े भाई को राज्य लौटा दो’ ॥ १४-१५ ॥ जब ब्राह्मणों ने शन्तनु से इस प्रकार कहा, तब उन्होंने वन में जाकर अपने बड़े भाई देवापि से राज्य स्वीकार करने का अनुरोध किया । परन्तु शन्तनु के मन्त्री अश्मरात ने पहले से ही उनके पास कुछ ऐसे ब्राह्मण भेज दिये थे, जो वेद को दूषित करनेवाले वचनों से देवापि को वेदमार्ग से विचलित कर चुके थे । इसका फल यह हुआ कि देवापि वेदों के अनुसार गृहस्थाश्रम स्वीकार करने की जगह उनकी निन्दा करने लगे । इसलिये वे राज्य के अधिकार से वञ्चित हो गये और तब शन्तनु के राज्य में वर्षा हुई । देवापि इस समय भी योगसाधना कर रहे हैं और योगियों के प्रसिद्ध निवासस्थान कलापग्राम में रहते हैं ॥ १६-१७ ॥ जब कलियुग में चन्द्रवंश का नाश हो जायगा, तब सत्ययुग के प्रारम्भ में वे फिर उसकी स्थापना करेंगे । शन्तनु के छोटे भाई बाह्लीक का पुत्र हुआ सोमदत्त । सोमदत्त के तीन पुत्र हुए — भूरि, भूरिश्रवा और शल । शन्तनु के द्वारा गङ्गाजी के गर्भ से नैष्ठिक ब्रह्मचारी भीष्म का जन्म हुआ । वे समस्त धर्मज्ञों के सिरमौर, भगवान् के परम प्रेमी भक्त और परम ज्ञानी थे ॥ १८-१९ ॥ वे संसार के समस्त वीरों के अग्रगण्य नेता थे । औरों की तो बात ही क्या, उन्होंने अपने गुरु भगवान् परशुराम को भी युद्ध में सन्तुष्ट कर दिया था । शन्तनु के द्वारा दाशराज की कन्या (यज कन्या वास्तव में उपरिचरवसु के वीर्य से मछली के गर्भ से उत्पन्न हुई थी किन्तु दाशों (केवटों) -के द्वारा पालित होने से वह केवटों की कन्या कहलायी।) के गर्भ से दो पुत्र हुए — चित्राङ्गद और विचित्रवीर्य । चित्राङ्गद को चित्राङ्गद नामक गन्धर्व ने मार डाला । इसी दाशराज की कन्या सत्यवती से पराशरजी के द्वारा मेरे पिता, भगवान् के कलावतार स्वयं भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायन व्यासजी अवतीर्ण हुए थे । उन्होंने वेदों की रक्षा की । परीक्षित् ! मैंने उन्हीं से इस श्रीमद्भागवत-पुराण का अध्ययन किया था । यह पुराण परम गोपनीय-अत्यन्त रहस्यमय है । इसी से मेरे पिता भगवान् व्यासजी ने अपने पैल आदि शिष्यों को इसका अध्ययन नहीं कराया, मुझे ही इसके योग्य अधिकारी समझा । एक तो में उनका पुत्र था और दूसरे शान्ति आदि गुण भी मुझमें विशेषरूप से थे । शन्तनु के दूसरे पुत्र विचित्रवीर्य ने काशिराज की कन्या अम्बिका और अम्बालिका से विवाह किया । उन दोनों को भीष्मजी स्वयंवर से बलपूर्वक ले आये थे । विचित्रवीर्य अपनी दोनों पत्नियों में इतना आसक्त हो गया कि उसे राजयक्ष्मा रोग हो गया और उसकी मृत्यु हो गयी ॥ २०-२४ ॥ माता सत्यवती के कहने से भगवान् व्यासजी ने अपने सन्तानहीन भाई की स्त्रियों से धृतराष्ट्र और पाण्डु दो पुत्र उत्पन्न किये । उनकी दासी से तीसरे पुत्र विदुरजी हुए ॥ २५ ॥ परीक्षित् ! धृतराष्ट्र की पत्नी थी गान्धारी । उसके गर्भ से सौ पुत्र हुए, उनमें सबसे बड़ा था दुर्योधन । कन्या का नाम था दुःशला ॥ २६ ॥ पाण्डु की पत्नी थी कुन्ती । शापवश पाण्डु स्त्री-सहवास नहीं कर सकते थे । इसलिये उनकी पत्नी कुन्ती के गर्भ से धर्म, वायु और इन्द्र द्वारा क्रमशः युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन नाम के तीन पुत्र उत्पन्न हुए । ये तीनों-के-तीनों महारथी थे ॥ २७ ॥ पाण्डु की दूसरी पत्नी का नाम था माद्री । दोनों अश्विनीकुमारों के द्वारा उसके गर्भ से नकुल और सहदेव का जन्म हुआ । परीक्षित् ! इन पाँच पाण्डवों के द्वारा द्रौपदी के गर्भ से तुम्हारे पाँच चाचा उत्पन्न हुए ॥ २८ ॥ इनमें से युधिष्ठिर के पुत्र का नाम था प्रतिविन्ध्य, भीमसेन का पुत्र था श्रुतसेन, अर्जुन का श्रुतकीर्ति, नकुल का शतानीक और सहदेव का श्रुतकर्मा । इनके सिवा युधिष्ठिर के पौरवी नाम की पत्नी से देवक और भीमसेन के हिडिम्बा से घटोत्कच और काली से सर्वगत नाम के पुत्र हुए । सहदेव के पर्वतकुमारी विजया से सुहोत्र और नकुल के करेणुमती से नरमित्र हुआ । अर्जुन द्वारा नागकन्या उलूपी के गर्भ से इरावान् और मणिपूर नरेश की कन्या से बभ्रुवाहन का जन्म हुआ । बभ्रुवाहन अपने नाना का ही पुत्र माना गया । क्योंकि पहले ही यह बात तय हो चुकी थी ॥ २९-३२ ॥ अर्जुन की सुभद्रा नाम की पत्नी से तुम्हारे पिता अभिमन्यु का जन्म हुआ । वीर अभिमन्यु ने सभी अतिरथियों को जीत लिया था । अभिमन्यु के द्वारा उत्तरा के गर्भ से तुम्हारा जन्म हुआ ॥ ३३ ॥ परीक्षित् ! उस समय कुरुवंश का नाश हो चुका था । अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से तुम भी जल ही चुके थे, परन्तु भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने प्रभाव से तुम्हें उस मृत्यु से जीता-जागता बचा लिया ॥ ३४ ॥ परीक्षित् ! तुम्हारे पुत्र तो सामने ही बैठे हुए हैं-इनके नाम हैं — जनमेजय, श्रुतसेन, भीमसेन और उग्रसेन । ये सब-के-सब बड़े पराक्रमी हैं ॥ ३५ ॥ जब तक्षक के काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जायगी, तब इस बात को जानकर जनमेजय बहुत क्रोधित होगा और यह सर्प-यज्ञ की आग में सर्पों का हवन करेगा ॥ ३६ ॥ यह कावषेय तुर को पुरोहित बनाकर अश्वमेध यज्ञ करेगा और सब ओर से सारी पृथ्वी पर विजय प्राप्त करके यज्ञों के द्वारा भगवान् की आराधना करेगा ॥ ३७ ॥ जनमेजय का पुत्र होगा शतानीक | वह् याज्ञवल्क्य ऋषि से तीनों वेद और कर्मकाण्ड की तथा कृपाचार्य से अस्त्रविद्या की शिक्षा प्राप्त करेगा एवं शौनकजी से आत्मज्ञान का सम्पादन करके परमात्मा को प्राप्त होगा ॥ ३८ ॥ शतानीक का सहस्रानीक, सहस्रानीक का अश्वमेधज्ञ, अश्वमेधज्ञ का असीमकृष्ण और असीमकृष्ण का पुत्र होगा नेमिचक्र ॥ ३९ ॥ जब हस्तिनापुर गङ्गाजी में बह जायगा, तब वह कौशाम्बीपुरी में सुखपूर्वक निवास करेगा । नेमिचक्र का पुत्र होगा चित्ररथ, चित्ररथ का कविरथ, कविरथ का वृष्टिमान्, वृष्टिमान् का राजा सुषेण, सुषेण का सुनीथ, सुनीथ का नृचक्षु, नृचक्षु का सुखीनल, सुखीनल का परिप्लव, परिप्लव का सुनय, सुनय का मेधावी, मेधावी का नृपञ्जय, नृपञ्जय का दूर्व और दूर्व का पुत्र तिमि होगा ॥ ४०-४२ ॥ तिमि से बृहद्रथ, बृहद्रथ से सुदास, सुदास से शतानीक, शतानीक से दुर्दमन, दुर्दमन से वहीनर, वहीनर से दण्डपाणि, दण्डपाणि से निमि और निमि से राजा क्षेमक का जन्म होगा । इस प्रकार मैंने तुम्हें ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों के उत्पत्तिस्थान सोमवंश का वर्णन सुनाया । बड़े-बड़े देवता और ऋषि इस वंश का सत्कार करते हैं ॥ ४३-४४ ॥ यह वंश कलियुग में राजा क्षेमक के साथ ही समाप्त हो जायगा । अब मैं भविष्य में होनेवाले मगध देश के राजाओं का वर्णन सुनाता हूँ ॥ ४५ ॥ जरासन्ध के पुत्र सहदेव से मार्जारि, मार्जारि से श्रुतश्रवा, श्रुतश्रवा से अयुतायु और अयुतायु से निरमित्र नामक पुत्र होगा ॥ ४६ ॥ निरमित्र के सुनक्षत्र, सुनक्षत्र के बृहत्सेन, बृहसेन के कर्मजित्, कर्मजित् के सृतञ्जय, सृतञ्जय के विप्र और विप्र के पुत्र का नाम होगा शुचि ॥ ४० ॥ शुचि से क्षेम, क्षेम से सुव्रत, सुव्रत से धर्मसूत्र, धर्मसूत्र से शम, शम से घुमसेन, घुमसेन से सुमति और सुमति से सुबल का जन्म होगा ॥ ४८ ॥ सुबल का सुनीथ, सुनीथ का सत्यजित्, सत्यजित् का विश्वजित् और विश्वजित् का पुत्र रिपुञ्जय होगा । ये सब बृहद्रथ वंश के राजा होगे । इनका शासनकाल एक हजार वर्ष के भीतर ही होगा ॥ ४९ ॥ ॥ श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां नवमस्कन्धे द्वाविंशोऽध्यायः ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. 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