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॥ श्रीराधाप्रार्थना उद्धवकृता ॥

॥ उद्धव उवाच ॥

चेतनं कुरु कल्याणि जगन्मातर्नमोऽस्तु ते ।
त्वमेव प्राक्तनं सर्वं कृष्णं द्रक्ष्यसि साम्प्रतम् ॥ १ ॥

त्वत्तो विश्वं पवित्रं च त्वत्पादरजसा मही ।
सुपवित्रं त्वद्वदनं पुण्यवत्यश्च गोपिकाः ॥ २ ॥

लोकास्त्वामेव गायन्ति गीतैर्मङ्गलसंस्तवैः ।
त्वत्सुकीर्तिं च वेदाश्च सनकाद्याश्च संततम् ॥ ३ ॥

कृतपापहरां पुण्यां तीर्थपुजां च निर्मलाम् ।
हरिभक्तिप्रदां भद्रां सर्वविघ्नविनाशिनीम् ॥ ४ ॥

त्वमेव राधा त्वं कृष्णस्त्वं पुमान् प्रकृतिः परा ।
राधामाधवयोर्भेदो न पुराणे श्रुतौ तथा ॥ ५ ॥

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते उद्धवकृता श्रीराधाप्रार्थना सम्पूर्णम् ॥
( श्रीकृष्णजन्मखण्ड ९४ । ३-७)

उद्धव ने कहा — कल्याणि ! होश में आ जाओ । | जगन्मातः ! तुम्हें नमस्कार है । तुम्हीं पूर्वजन्मकृत समस्त कर्म हो । अब तुम्हें श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त होंगे । तुम्हारे दर्शन से विश्व पवित्र हो गया और तुम्हारी चरणरज से पृथ्वी पावन हो गयी । तुम्हारा मुख परम पवित्र है और (तुम्हारे स्पर्श से) गोपिकाएँ पुण्यवती हो गयीं । लोग गीत तथा मङ्गल-स्तोत्रों द्वारा तुम्हारा ही गान करते हैं । वेद तथा सनक आदि गहर्षि तुम्हारी उत्तम कीर्ति का — जो किये हुए पाप को नष्ट करनेवाली, पुण्यमयी, तीर्थपूजास्वरूपा, निर्मल, हरिभक्तिप्रदायिनी, कल्याणकारिणी और सम्पूर्ण विघ्नों का विनाश करनेवाली है — सदा बखान करते हैं । तुम्हीं राधा हो; तुम्हीं श्रीकृष्ण हो । तुम्हीं पुरुष हो; तुम्हीं परा प्रकृति हो । पुराणों तथा श्रुतियों में कहीं भी राधा और माधव में भिन्नता नहीं पायी जाती ।

 

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