॥ श्रीराधास्तोत्रं उद्धवकृतम् ॥

॥ अथ उद्धवकृतं श्रीराधास्तोत्रम्॥

॥ उद्धव उवाच ॥
वन्दे राधापदाम्भोजं ब्रह्मादिसुरवन्दितम् ।
यत्कीर्तिकीर्तनेनैव पुनाति भुवनत्रयम् ॥ १ ॥

नमो गोकुलवासिन्यै राधिकायै नमो नमः ।
शतशृङ्गनिवासिन्यै चन्द्रावत्यै नमो नमः ॥ २ ॥

तुलसीवनवासिन्यै वृन्दारण्यै नमो नमः ।
रासमण्डलवासिन्यै रासेश्वर्यै नमो नमः ॥ ३ ॥

विरजातीरवासिन्यै वृन्दायै च नमो नमः ।
वृन्दावनविलासिन्यै कृष्णायै नमो नमः ॥ ४ ॥

नमः कृष्णप्रियायै च शान्तायै च नमो नमः ।
कृष्णवक्षःस्थितायै च तत्प्रियायै नमो नमः ॥ ५ ॥

नमो वैकुण्ठवासिन्यै महालक्ष्म्यै नमो नमः ।
विद्याधिष्ठातृदेव्यै च सरस्वत्यै नमो नमः ॥ ६ ॥

सर्वैश्वर्याधिदेव्यै च कमलायै नमो नमः ।
पद्मनाभप्रियायै च पद्मायै च नमो नमः ॥ ७ ॥

महाविष्णोश्च मात्रे च पराद्यायै नमो नमः ।
नमः सिन्धुसुतायै च मर्त्यलक्ष्म्यै नमो नमः ॥ ८ ॥

नारायणप्रियायै च नारायण्यै नमो नमः ।
नमोऽस्तु विष्णुमायायै वैष्णव्यै च नमो नमः ॥ ९ ॥

महामायास्वरूपायै सम्पदायै नमो नमः ।
नमः कल्याणरूपिण्यै शुभायै च नमो नमः ॥ १० ॥

मात्रे चतुर्णां वेदानां सावित्र्यै च नमो नमः ।
नमो दुर्गविनाशिन्यै दुर्गादेव्यै नमो नमः ॥ ११ ॥

तेजःसु सर्वदेवानां पुरा कृतयुगे मुदा ।
अधिष्ठानकृतायै च प्रकृत्यै च नमो नमः ॥ १२ ॥

नमस्त्रिपुरहारिण्यै त्रिपुरायै नमो नमः ।
सुन्दरीषु च रम्यायै निर्गुणायै नमो नमः ॥ १३ ॥

नमो निद्रास्वरूपायै निर्गुणायै नमो नमः ।
नमो दक्षसुतायै च सत्यै नमो नमः ॥ १४ ॥

नमः शैलसुतायै च पार्वत्यै च नमो नमः ।
नमो नमस्तपस्विन्यै ह्युमायै च नमो नमः ॥ १५ ॥

निराहारस्वरूपायै ह्यपर्णायै नमो नमः ।
गौरीलोकविलासिन्यै नमो गौर्यै नमो नमः ॥ १६ ॥

नमः कैलासवासिन्यै माहेश्वर्यै नमो नमः ।
निद्रायै च दयायै च श्रद्धायै च नमो नमः ॥ १७ ॥

नमो धृत्यै क्षमायै च लज्जायै च नमो नमः ।
तृष्णायै क्षुत्स्वरूपायै स्थितिकर्त्र्यै नमो नमः ॥ १८ ॥

नमः संहाररूपिण्यै महामार्यै नमो नमः ।
भयायै चाभयायै च मुक्तिदायै नमो नमः ॥ १९ ॥

नमः स्वधायै स्वाहायै शान्त्यै कान्त्यै नमो नमः ।
नमस्तुष्ट्यै च पुष्ट्यै च दयायै च नमो नमः ॥ २० ॥

नमो निद्रास्वरूपायै श्रद्धायै च नमो नमः ।
क्षुत्पिपासास्वरूपायै लज्जायै च नमो नमः ॥ २१ ॥

नमो धृत्यै क्षमायै च चेतनायै च नमो नमः ।
सर्वशक्तिस्वरूपिण्यै सर्वमात्रे नमो नमः ॥ २२ ॥

अग्नौ दाहस्वरूपायै भद्रायै च नमो नमः ।
शोभायै पूर्णचन्द्रे च शरत्पद्मे नमो नमः ॥ २३ ॥

नास्ति भेदो यथा देवि दुग्धधावल्ययोः सदा ।
यथैव गन्धभूम्योश्च यथैव जलशैत्ययोः ॥ २४ ॥

यथैव शब्दनभसोर्ज्योतिःसूर्यकयोर्तथा ।
लोके वेदे पुराणे च राधामाधावयोस्तथा ॥ २५ ॥

चेतनं कुरु कल्याणि देहि मामुत्तरं सति ।
इत्युक्त्वा चोद्धवस्तत्र प्रणनाम पुनः पुनः ॥ २६ ॥

इत्युद्धवकृतं स्तोत्रं यः पठेद् भक्ति पूर्वकम् ।
इह लोके सुखं भुक्त्वा यात्यन्ते हरिमन्दिरम् ॥ २७ ॥
न भवेद् बन्धुविच्छेदो रोगः शोकः सुदारुणः ।
प्रोषिता स्त्री लभेत् कान्तं भार्याभेदी लभेत् प्रियाम् ॥ २८ ॥
अपुत्रो लभते पुत्रान् निर्धनो लभते धनम् ।
निर्भुमिर्लभते भूमिं प्रजाहिनो लभेत् प्रजाम् ॥ २९ ॥
रोगाद् विमुच्यते रोगी बद्धो मुच्येत् बन्धनात् ।
भयान्मुच्येत् भीतस्तु मुच्येतापन्न आपदः ॥ ३० ॥
अस्पष्टकीर्तिः सुयशा मूर्खो भवति पण्डितः ॥ ३१ ॥

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते उद्धवकृतं श्रीराधास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
(श्रीकृष्णजन्मखण्ड ९२ । ६३-९३)

उद्धव ने कहा — मैं श्रीराधा के उन चरणकमलों की वन्दना करता हूँ, जो ब्रह्मा आदि देवता द्वारा वन्दित है तथा जिनकी कीर्ति के कीर्तन से ही तीनों भुवन पवित्र हो जाते हैं । गोकुल में वास करनेवाली राधिका को बारंबार नमस्कार । शतशृङ्ग पर निवास करनेवाली चन्द्रवती को नमस्कार-नमस्कार । तुलसीवन तथा वृन्दावन में बसनेवाली को नमस्कार-नमस्कार । रासमण्डलवासिनी रासेश्वरी को नमस्कार-नमस्कार । विरजा के तट पर वास करनेवाली वृन्दा को नमस्कार-नमस्कार । वृन्दावन-विलासिनी कृष्णा को नमस्कार-नमस्कार । कृष्णप्रिया को नमस्कार । शान्ता को पुनः-पुनः नमस्कार । कृष्ण के वक्षः-स्थल पर स्थित रहनेवाली कृष्णप्रिया को नमस्कार-नमस्कार । वैकुण्ठवासिनी को नमस्कार । महालक्ष्मी को पुनः पुनः नमस्कार । विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती को नमस्कार-नमस्कार । सम्पूर्ण ऐश्वर्यों की अधिदेवी कमला को नमस्कार-नमस्कार । पद्मनाभ की प्रियतमा पद्मा को बारंबार प्रणाम । जो महाविष्णु की माता और पराद्या हैं; उन्हें पुनः-पुनः नमस्कार । सिन्धुसुता को नमस्कार । मर्त्यलक्ष्मी को नमस्कार-नमस्कार । नारायण की प्रिया नारायणी को बारंबार नमस्कार । विष्णुमाया को मेरा नमस्कार प्राप्त हो । वैष्णवी को नमस्कार-नमस्कार । महामायास्वरूपा सम्पदा को पुनः-पुनः नमस्कार । कल्याणरूपिणी को नमस्कार । शुभा को बारंबार नमस्कार । चारों वेदों की माता और सावित्री को पुनः-पुनः नमस्कार । दुर्गविनाशिनी दुर्गादेवी को बारंबार नमस्कार । पहले सत्ययुग में जो सम्पूर्ण देवताओं के तेजों में अधिष्ठित थीं; उन देवी को तथा प्रकृति को नमस्कार-नमस्कार । त्रिपुरहारिणी को नमस्कार । त्रिपुरा को पुनः-पुनः नमस्कार । सुन्दरियों में परम सुन्दरी निर्गुणा को नमस्कार-नमस्कार । निद्रास्वरूपा को नमस्कार और निर्गुणा को बारंबार नमस्कार । दक्षसुता को नमस्कार और सत्या को पुनः-पुनः नमस्कार । शैलसुता को नमस्कार और पार्वती को बार-बार नमस्कार । तपस्विनी को नमस्कार-नमस्कार और उमा को बारंबार नमस्कार । निराहारस्वरूपा अपर्णा को पुनः-पुनः नमस्कार । गौरीलोक में विलास करनेवाली गौरी को बारंबार नमस्कार । कैलासवासिनी को नमस्कार और माहेश्वरी को नमस्कार-नमस्कार । निद्रा, दया और श्रद्धा को पुनः पुनः नमस्कार । धृति, क्षमा और लज्जा को बारंबार नमस्कार । तृष्णा, सुस्वरूपा और स्थितिकर्त्री को नमस्कार-नमस्कार । संहार-रूपिणी को नमस्कार और महामारी को पुनः-पुनः नमस्कार । भया, अभया और मुक्तिदा को नमस्कार-नमस्कार । स्वधा, स्वाहा, शान्ति और कान्ति को बारंबार नमस्कार । तुष्टि, पुष्टि और दया को पुनः-पुनः नमस्कार । निद्रास्वरूपा को नमस्कार-नमस्कार । क्षुत्पिपासास्वरूपा और लज्जा को बारंबार नमस्कार । धृति, चेतना और क्षमा को बारंबार नमस्कार । जो सबकी माता तथा सर्वशक्तिस्वरूपा हैं; उन्हें नमस्कार-नमस्कार । अग्नि में दाहिका-शक्ति के रूप में विद्यमान रहनेवाली देवी और भद्रा को पुनः-पुनः नमस्कार । जो पूर्णिमा के चन्द्रमा में और शरत्कालीन कमल में शोभारूप से वर्तमान रहती हैं; उन शोभा को नमस्कार-नमस्कार । देवि ! जैसे दूध और उसकी धवलता मे, गन्ध और भूमि में, जल और शीतलता में, शब्द और आकाश में तथा सूर्य और प्रकाश में कभी भेद नहीं है, वैसे ही लोक, वेद और पुराण में — कहीं भी राधा और माधव में भेद नहीं है । अतः कल्याणो ! चेत करो । सति ! मुझे उत्तर दो ।

यों कहकर उद्धव वहाँ उनके चरणों में पुनः-पुनः प्रणिपात करने लगे । जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस उद्धवकृत स्तोत्र का पाठ करता है; वह इस लोक में सुख भोगकर अन्त में वैकुण्ठ में जाता है । उसे बन्धु-वियोग तथा अत्यन्त भयंकर रोग और शोक नहीं होते । जिस स्त्री का पति परदेश गया होता है, वह अपने पति से मिल जाती है और भार्यावियोगी अपनी पत्नी को पा जाता है । पुत्रहीन को पुत्र मिल जाते हैं, निर्धन को धन प्राप्त हो जाता है, भूमिहीन को भूमि की प्राप्ति हो जाती है, प्रजाहीन प्रजा-को पा लेता है, रोगी रोग से विमुक्त हो जाता है, बँधा हुआ बन्धन से छूट जाता है, भयभीत मनुष्य भय से मुक्त हो जाता है, आपत्तिग्रस्त आपद् से छुटकारा पा जाता है और अस्पष्ट कीर्तिवाला उत्तम यशस्वी तथा मूर्ख पण्डित हो जाता है ।

 

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