September 16, 2015 | aspundir | Leave a comment श्री कृष्ण शलाका प्रश्नावली Shri_Krishan_Shalaka_questionnaire मि भ म ह हो अ त वि कि क का मि लि ा न रि इ स न धि ये ह म ल ह गि अ इ ह फ म वि सु ध न त हि तु नु च्छा हु ल न धा कृ र्म हो न तु म्हा कू ह स हो क न त ज इ शा म रि ल रि फ इ र क ब जे अ न्ति हि न स स ल नि अं र हु हि स कु वि जा दा न स र ह उ पा प म स ज य हो न दा ा में ल व र भ गं य ब इ हिं स श ल ट त त व ति र ख ज पू ब न न न न व को म न ा ा छ ठ ह हो ह ा दा ई ा म नी ई ा ा ो ई ा हीं या स हो ा ध वि हो हीं ई ब रा व स नि ा हीं न्य धि इ न स न न ह ह ह त जी न वि ह हीं फ त हीं ग ज स न ति को धा हु त ल न स ति हिं क व न उ न अ नि ह क म द सु र ब्या स तु मं व क ो ा र्थ ी ल इ धि क म ह शि सं त ज को न भ ल ग्र त स य म श सं क उ अ वि ह स इ म ह नो य श ह य ा ज इ त न्द्र ज न र य य त हि जु य फ न हू ग हिं थ हि न स सं तो य ल र च प्र भ छू म हि ब स हिं दु स क ा ा ा छ ा को को ा का रा े ा ही नी ई ा हीं ई ई रा हीं या ई हीं अभीष्ट प्रश्न का उत्तर जानने के लिये पहले श्रीकृष्णचन्द्र का ध्यान करें। फिर श्रद्धापूर्वक किसी भी कोष्ठक में उंगली या शलाका रखें और उस अक्षर तथा उससे क्रमशः बारहवें अक्षर को लिख लें। तदनुसार चौपाई बनेगी, जो अभीष्ट प्रश्न का उत्तर होगी। १॰ तन मन कर जहं मेल न होई। बनत काज कहत सब कोई।। फलः- भारतकाण्ड में गांधारी अपने पुत्र को समझा रही है। फल उत्तम नहीं है। कार्य में पूर्ण रुप से मन नहीं लग रहा है। इससे अभीष्ट कार् के सिद्ध होने में संदेह है। २॰ मन अनुकूल सदा होइ जाई। विधि विधान में यह नहीं भाई।। फलः- द्वारकाकाण्ड में जरासन्ध शिशुपाल को रुकमणी स्वयंवर के समय हार जाने पर समझा रहा है। इसका फल मध्यम है। किसी अभीष्ट की आशंका तो नहीं है, परन्तु अभीष्ट कार्य की सिद्धि भी नहीं होगी। ३॰ हरि इच्छा हरिसन नहीं पूछा। होइहहु अवसि मनोरथ छूछा।। फलः- स्वर्गारोहण काण्ड में बिना भगवान् कृष्ण से पूछे ऋषियों का शाप से साम्ब के पेट से निकले मूसल को चूर्ण करके समुद्र में फेंक दिया था। इसका फल खराब है। अभीष्ट कार्य की सिद्धि कभी भी नहीं होगी। ४॰ होइहहु सफल सदा सब ठांही। नहीं तनिक संशय यहि माहीं।। फलः- यह चौपाई भीष्म जी के राजनीतिक उपदेश के ज्ञान-काण्ड में है। प्रश्न-फल उत्तम है। अभीष्ट कार्य की सिद्धि अवश्य होगी। ५॰ असफल होइ निराश न होई। सफल होत संशय नहीं कोई।। फलः- यह चौपाई उस समय की है, जब श्रीकृष्ण ने अपने सखाओं को समझाकर ब्रजकाण्ड में भोजन हेतु द्विज-पत्नियों के पास भेजा था। फल सामान्य है। निरन्तर प्रयत्न करने से ही फल मिलना सम्भव है। ६॰ भागि तुम्हारि न जाय बखानी। धन्य न कोउ तुम सम जग प्रानी।। फलः- भारत-काण्ड में इसको सूर्य-ग्रहण के अवसर पर एकत्रित हुए राजा-महाराजा उग्रसेन से कहते हैं। यह फल उत्तम है। अभीष्ट कार्य की सिद्धि होगी। ७॰ विधि विधान कर उलटन हारा। नहीं समर्थ कोउ यहि संसारा।। फलः- मथुरा काण्ड में अक्रूरजी के समझाने पर धृतराष्ट्र का कथन है। प्रश्न-फल सामान्यतया उत्तम नहीं है, अभीष्ट कार्य की सिद्धि पाना सन्देहास्पद जान पड़ता है। ८॰ किये सुकृत बहु पावत नाहीं। वह गति दीन आजु तेहि काहीं।। फलः- स्वर्गारोहण काण्ड में भगवान् कृष्ण अपने पैर के तलवे में बाण मारने वाले व्याध को शुभ गति दे रहे हैं। प्रश्न-फल अतीव श्रेष्ठ है। अभीष्ट कार्य की शीघ्र सिद्धि ही मिलेगी। ९॰ कह धर्मज जेहि पर तव दाया। सहजहीं सुलभ विजय यदुराया।। फलः- भरतकाण्ड में भीष्म पितामह के रथ से गिर जाने पर युधिष्ठिर भगवान् श्रीकृष्ण से कह रहे हैं। प्रश्नफल श्रेष्ठ है। अभीष्ट कार्य की सिद्धि होगी। १०॰ काम न होई असंभव कोई। साहस करइ लहइ फल सोई।। फलः- ब्रजकाण्ड में भगवान् कृष्ण ब्रजवासियों से वृषभासुर द्वारा भयभीत होने पर कह रहे हैं। प्रश्नफल सामान्यतया उत्तम है। साहस पूर्वक निरन्तर प्रयत्न करने पर ही अभीष्ट कार्य की सिद्धि होगी। ११॰ मिलत न शांति कुसंगति माहीं। नित नव व्याधि ग्रसत नर काहीं।। फलः- भरतकाण्ड में धृतराष्ट्र के दरबार में जाकर भगवान् श्रीकृष्ण दुर्योधन को संधि के लिए समझा रहे हैं। प्रश्नफल अत्यन्त नेष्ट है। अभीष्ट कार्य के अतिरिक्त अनिष्ट होने की संभावना भी है। १२॰ मिलहहिं तुमहि विजय रन माहीं। जीत न सकत इन्द्रहू चाहीं।। फलः- युद्ध के लिए तैयार अर्जुन ने जब भगवती दुर्गा देवी की स्तुति की तो भगवती दुर्गा ने उन्हें आशिर्वाद दिया। यह उसी समय की चौपाई है। प्रश्न-फल अतीव श्रेष्ठ है। अभीष्ट कार्य की शीघ्र सिद्धि ही मिलेगी। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe