September 26, 2015 | aspundir | Leave a comment श्री पीताम्बरा आरती (सतत स्मरीय श्रीस्वामी जी द्वारा संस्थापित ‘श्रीपीताम्बरा-पीठ’ दतिया (म॰प्र॰) शक्ति-उपासना का आदर्श संस्थान है । वहाँ प्रति-दिन प्रातः और सायं पूर्ण विधि-विधान के साथ श्रीजगदम्बा का अर्चनादि सम्पन्न होता है । उस अवसर पर श्री-पीताम्बरा के आरार्तिक-क्रम में जो स्तुति भक्त-जनों द्वारा स-स्वर पढ़ी जाती है, वही यहाँ उद्धृत है) जय पीताम्बर-धारिणि जय सुखदे वरदे, मातर्जय सुखदे वरदे ! भक्त-जनानां क्लेशं, भक्त-जनानां क्लेशं सततं दूर करे ।। जय देवि, जय देवि ! ।। १ असुरैः पीडित-देवस्तव शरणं प्राप्ताः, मातस्तव शरणं प्राप्ताः । धृत्वा कौर्म-शरीरं, धृत्वा कौर्म-शरीरं दूरी-कृत-दुःखम् ।। जय देवि, जय देवि ! ।। २ मुनि-जन-वन्दित-चरणे, जय विमले बगले, मातर्जय विमले बगले ! संसारार्णव-भीतिं, संसारार्णव-भीतिं नित्यं शान्ति-करे ।। जय देवि, जय देवि ! ।। ३ नारद-सनक-मुनीन्द्रैर्ध्यातं पद-कमलं, मातर्ध्यातं पद-कमलं । हरि-हर-द्रुहिण-सुरेन्द्रैः, हरि-हर-द्रुहिण-सुरेन्द्रै सेवित-पद-युगलम् ।। जय देवि, जय देवि ! ।। ४ काञ्चन-पीठ-निविष्टे मुद्गर-पाश-युते, मातमुद्गर-पाश-युते ! जिह्वा-वज्र-सुशोभित, जिह्वा-वज्र-सुशोभित पीतांशुक-लसिते ! ।। जय देवि, जय देवि ! ।। ५ विन्दु-त्रिकोण-षडस्रैरष्ट-दलोपरि ते, मातरष्ट-दलोपरि ते । षोडश-दल-गत-पीठं, षोडश-दल-गत-पीठं भूपुर-वृत्त-युतम् ।। जय देवि, जय देवि ! ।। ६ इत्थं साधक-वृन्दश्चिन्तयते रुपं, मातश्चिन्तयते रुपम् । शत्रु-विनाशक-बीजं, शत्रु-विनाशक-बीजं धृत्वा हृत्-कमले ।। जय देवि, जय देवि ! ।। ७ अणिमादिक-बहु-सिद्धिं लभते सौख्य-युतां, मातर्लभते सौख्य-युतां । भोगान् भुक्त्वा सर्वान्, भोगान् भुक्त्वा सर्वान् गच्छति विष्णु-पदम् ।। जय देवि, जय देवि ! ।। ८ पूजा-काले कोऽपि आर्तिक्यं पठते, मातरार्तिक्यं पठते । धन-धान्यादि-समृद्धो, धन-धान्यादि-समृद्धः सान्निध्यं लभते ।। जय देवि, जय देवि ! ।। ९ Related