September 26, 2015 | aspundir | Leave a comment श्री बगला प्राकट्य शिव के सम्मुख पार्वती, धर कर बोली माथ । बगला की उत्पत्ति की, कथा सुनाओ नाथ ! ।। ।। शिव उवाच ।। कृत-युग के पहिले भुतल पर, वात-क्षोभ-हिन्दोल उठा । ध्रुव तारा हिल गया अचानक, जड़-चेतन भू डोल उठा ।। प्रकृति पुरातन की शाखा के, नखत नीड़-सम टूट गए । सूरज-चन्दा की किस्मत को, तम-चर आकर लूट गए ।। प्रलय-काल का दृश्य चतुर्दिक, दीख पड़ा जगती-तल में । डूब गए हिम-गिरि-सम पर्वत, महा-सागरों के जल में ।। महाऽऽकाश के महा-उदर में, तत्त्व सभी लय होते थे । इन्द्रादिक सुर काँप-काँप कर, भय-विह्वल हो रोते थे ।। करुणा से भर गए विष्णु भी, चिन्तन में लव-लीन हुए । तप करते वर्षों तक, नारायण अति क्षीण हुए ।। सौराष्ट्र देश में निकट सरोवर, त्रिपुर-सुन्दरी प्रकट हुईं । मातृ-शक्ति को देख विष्णु की, आँखें श्रद्धा-विनत हुईं ।। ‘मा भैः’ कहकर त्रिपुरा ने, बगला का तब अवतार लिया । करुणा – पूरित नयना ने, जड़ – चेतन का उद्धार किया ।। पीताम्बर-धारिणी माया की, यह विख्यात कहानी है । स्तम्भन-शक्ति-स्वरुपा बगला माता, स्वयं भवानी है ।। मंगलवार चतुर्दशी, ‘वीर-रात्रि’ विख्यात । कुल-नक्षत्र मकार में, प्रकटीं बगला मात ।। Related