सप्त-दिवसीय श्रीदुर्गा-सप्तशती-पाठ का परिचय एवं विधि
१॰ सप्त-दिवसीय श्रीदुर्गा-सप्तशती-पाठ के अन्तर्गत श्रीदुर्गा-सप्तशती के १३ अध्यायों का पाठ सात दिनों में किया जाता है।
२॰ “पा – ठोऽ – यं – व – र – का – रः” – सूत्र के अनुसार पहले दिन एक अध्याय (प), दूसरे दिन दो अध्याय (ठ), तीसरे दिन एक अध्याय (य), चौथे दिन चार अध्याय (व), पाँचवे दिन दो अध्याय (र), छठवें दिन एक अध्याय (क) तथा सातवें दिन दो अध्याय (र) का पाठ कर सात दिनों में श्रीदुर्गा-सप्तशती के तीनो चरितों का पाठ कर सकते हैं।Durga-Puja
३॰ सप्त-दिवसीय श्रीदुर्गा-सप्तशती-पाठ की विधि भी अत्यन्त सरल है। यथा-
क॰ सबसे पहले अपने सम्मुख ‘गुरु’ एवं गणपति आदि को मन-ही-मन प्रणाम करते हुए दीपक को जलाकर, उसे किसी आधार पर स्थापित करना चाहिए। फिर उस दीपक की ज्योति में भगवती दुर्गा का ध्यान करना चाहिए। यथा-
ॐ विद्युद्दाम-सम-प्रभां मृग-पति-स्कन्ध-स्थितां भीषणाम्।
कन्याभिः करवाल-खेट-विलसद्-हस्ताभिरासेविताम् ।।
हस्तैश्चक्र-गदाऽसि-खेट-विशिखांश्चापं गुणं तर्जनीम्।
विभ्राणामनलात्मिकां शशि-धरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ।।

ख॰ उक्त प्रकार से भगवती दुर्गा का ध्यान करने के बाद पञ्चोपचारों (रक्त-चन्दन, मिश्रित-अक्षत, रक्त-पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य) से उनका पूजन करना चाहिए।
ग॰ पूजा करने के बाद ‘सप्तशती’ के अध्यायों का पाठ सात दिनों के क्रम से करना चाहिए। पाठ के अन्त में ‘क्षमा-प्रार्थना’ करनी चाहिए। यथा-
“ॐ यदक्षरं-परि-भ्रष्टं, मात्रा-हीनं तु यद् भवेत्।
तत् सर्वं क्षम्यतां देवि ! प्रसीद परमेश्वरि ! ।।”

सप्त-दिवसीय श्रीदुर्गा-सप्तशती-पाठ का माहात्म्य
१॰ इस ‘पाठ-क्रम’ के द्वारा सात दिनों में सात सौ मन्त्रों का पाठ अल्प समय में होता है।
२॰ नित्य पाठ होने से भक्ति – प्रज्वलित होती है और सभी कार्य स्वतः पूरे होते हैं। साथ ही विभिन्न कामनाओं की पूर्ति हेतु ‘सप्तशती’ के विभिन्न मन्त्रों को जपने का अधिकार भी प्राप्त होता है।
३॰ यहाँ यह उल्लेखनीय है कि श्रीदुर्गा-सप्तशती के तेरह अध्यायों का सात दिनों में ‘पाठ’ करने का प्रस्तुत क्रम जितना अधिक सरल है, उतना ही कल्याणकारी एवं श्रेष्ठ भी है, क्योंकि इसके द्वारा ‘ज्ञान’ की सातों भूमिकाओं – १ शुभेच्छा, २ विचारणा, ३ तनु-मानसा, ४ सत्त्वापति, ५ असंसक्ति, ६ पदार्थाभाविनी एवं ७ तुर्यगा – सहज रुप से परिष्कृत एवं संवर्धित होती है।
४॰ ग्रह-शान्ति हेतु ५ बार, महा-भय-निवारण हेतु ७ बार, सम्पत्ति-प्राप्ति हेतु ११ बार, पुत्र-पौत्र-प्राप्ति हेतु १६ बार, राज-भय-निवारणशत्रु-स्तम्भन हेतु १७ या १८ बार, भीषण संकट, असाध्य रोग, वंश-नाश, मृत्यु, धन-नाशादि उपद्रवों की शान्ति के लिए १०० बार उक्त क्रम से सप्तशती का पाठ कर लाभ उठाया जा सकता है।

दिन अध्याय
प्रथम अध्याय १
द्वितीय अध्याय २ – ३
तृतीय अध्याय ४
चतुर्थ अध्याय ५ – ६ – ७ – ८
पँचम अध्याय ९ -१०
षष्ठ अध्याय ११
सप्तम अध्याय १२ – १३
Please follow and like us:
Pin Share

Discover more from Vadicjagat

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.