सर्व-संकट-हारी-प्रयोग
“सर्वा बाधासु घोरासु, घोरासु, वेदनाभ्यर्दितोऽपि।
स्मरन् ममैच्चरितं, नरो मुच्यते संकटात्।।
ॐ नमः शिवाय।”

उपर्युक्त मन्त्र से ‘सप्त-श्लोकी दुर्गा’ का एकादश (११) ‘सम्पुट-पाठ’ करने से सब प्रकार के संकटों से छुटकारा मिलता है। प्रत्येक ‘पाठ’ करने के बाद उक्त ‘सम्पुट-मन्त्र’ के अन्त में ‘स्वाहा’ जोड़कर एकादश बार निम्न-लिखित वस्तुओं से हवन करे-
१॰ अर्जुन की छाल का चूर्ण, २॰ गाय का घी, ३॰ शुद्ध-शहद, ४॰ मिश्री और ५॰ खीर- यह सब मिलाकर रख लें और उसी से हवन करें। ‘खीर’ बनाने के लिये सायंकाल ‘चावल’ को जल में भिगो दें। प्रातः जल गिराकर भीगे हुए चावलों कों गाय के शुद्ध घी से भुन लें। चावल हल्का लाल भूनने के बाद उसमें आवश्यकतानुसार चीनी, पञ्चमेवा, गाय का दूध डालकर पकावें। जब गाय का दूध पककर सूख जाये, तब ‘खीर’ को उतार लें और ठण्डी कर उपर्युक्त ४ वस्तुओं के साथ मिला कर रखें।

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