सर्व-सिद्धि-प्रद श्रीगणेश-कवच
भगवान् गणेश का ध्यान कर, मानसोपचारों से उनका पूजन करे। तब निम्न ‘कवच-स्तोत्र’ का पाठ करे॰॰॰॰॰
श्रृणु वक्ष्यामि कवचं, सर्व-सिद्धि-करं प्रिये !
पठित्वा धारयित्वा च, मुच्यते सर्व-सङ्कटात्।।
आमोदश्च शिरः पातु, प्रमोदश्च शिखोपरि।
सम्मोदो भ्रू-युगे पातु, भ्रू-मध्ये तु गणाधिपः।।
गण-क्रीडो नेत्र-युग्मे, नासायां गण-नायकः।
गण-क्रीडान्वितः पातु, वदने सर्व-सिद्धये।।
जिह्वायां सुमुखः पातु, ग्रीवायां दुर्मुखः सदा।
विघ्नेशो हृदयं पातु, विघ्न-नाशश्च वक्षसि।।
गणानां नायकः पातु, बाहु-युग्मे सदा मम।
विघ्न-कर्त्ता च उदरे, विघ्न-भर्त्ता चमे योनौ।।
गज-वक्त्रः कटी-देशे, एक-सन्तो नितम्बके।
लम्बोदरः सदा पातु, गुह्य-देशे ममारुणः।।
व्याल-यज्ञोपवीती मां, पातु पाद-युगे तथा।
जापकः सर्वदा पातु, जानु-जङ्घे गणाधिपः।।
हरिद्रः सर्वदा पातु, सर्वाङ्गे गण-नायकः।
य इदं प्रपठेन्नित्यं, गणेशस्य महात्मनः।।
कवचं सर्व-सिद्धाख्यं, सर्व-विघ्न-विनाशनं।
सर्व-सिद्धि-करं साक्षात्, सर्व-पाप-प्रमोचनम्।।
सर्व-सम्पत्-प्रदं साक्षात्, सर्व-शत्रु-क्षय-करं।
ग्रह-पीडा ज्वरो रोगो, ये चान्ये गुह्यकादयः।।
पठनात् श्रवणादेव, नाशमायान्ति तत्क्षणात्।
धन-धान्यं-करं देवि, कवचं सुर-पूजितम्।।
उक्त ‘कवच-स्तोत्र’ का नित्य प्रातःकाल पाठ करने वाला सभी संकटों से रक्षा पाता है। उसके सभी विघ्नों का नाश होता है और उसकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती है। सभी पापों से छुटकारा मिलता है, शत्रुओं का नाश होता है। ग्रह-बाधा, ज्वर आदि रोगों का निवारण होता है और सभी प्रकार की सम्पत्ति, धन-धान्यादि की प्राप्ति होती है। भोज-पत्रादि में इस कवच को विधिवत् लिखकर मन्त्र-बद्ध कर धारण करने से भी यही सब फल धारण करनेवाले को मिलते हैं।

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