September 24, 2015 | Leave a comment सर्व-सौभाग्य-दायक त्रिलौह मुद्रिका (अंगुठी) निर्माण विधिः ‘त्रिलौह-मुद्रिका’ का निर्माण स्वर्ण, रजत एवं ताम्र तारों को परस्पर लपेट कर और उन्हें रज्जु-वत् ऐंठ कर करना चाहिए। स्वर्ण, रजत और ताम्र का अनुपात 25:16:10 रखें। सामान्यतः सवा छः रत्ती स्वर्ण, चार रत्ती रजत तथा ढाई रत्ती ताम्र-तार समान लम्बाई में लेकर शुभ मुहूर्त में निर्माण करना चाहिए। शुभ मुहूर्तः शुक्ल-पक्ष के रवि-पुष्य या गुरु-पुष्य योग में दिन के समय मुद्रा का निर्माण कराएँ। कृष्ण पक्ष की पञ्चमी तक दीन के रवि-पुष्य या गुरु-पुष्य योग ग्राह्य हैं। अथवा श्रीगुरु के बताए समयानुसार बनवाएँ। धारण विधिः सामान्य या विशेष पूजार्चन के पश्चात् होम आदि करके ‘मुद्रिका’ को सूर्य, चन्द्र एवं अग्नि स्वरुप समझते हुए धारण करें। जिसके घर में कोई बड़ा न हो, वह तर्जनी में तथा अन्य ‘कनिष्ठिका’ या ‘अनामिका’ में धारण करें। Related