सीता, राम ही की थाती है

बोले वशिष्ठ, सुनिये मान्यवर विदेहराज,
याचक प्रतीक्षा करैं, कहाँ मेरे दानी हैं ।
सुतन समेत ठाढ़े द्वारे दशरथ आज,
कैसे विलम्ब होत, अँखियाँ टकटकानी हैं ।।

बिगि बुलवावो उन्हें, आँगन में लावो आप,
करो कन्यादान, मंगल-बेला पहुँची आनी है ।
सीता लहैं राम, लखन उर्मिला, माण्डवी भरत,
शत्रुघ्न को सौंपो, श्रुतकीरति सुख-खानी है ।।

बोले विदेह, होके मगन सनेह-सिन्धु,
सुनि के प्रिय बानी ये, जुड़ानी आज छाती है ।
कौन प्रतिहारी, द्वार रोके राय दशरथ जू को,
अपने घर माँही काकी अनुमति लई जाती है ।।

ये हैं चक्रवतीं, वसुधा के मण्डलीक-मणि,
मेरी तो परम्परा विरागी कहलाती है ।
रमा सौंपूँ राम को तो मेरो एहसान कौन,
भले यहाँ प्रगटीं सीता, राम ही की थाती है ।

– श्रीनारायणदासजी ‘भक्तमाली’

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