September 17, 2015 | Leave a comment सीता, राम ही की थाती है बोले वशिष्ठ, सुनिये मान्यवर विदेहराज, याचक प्रतीक्षा करैं, कहाँ मेरे दानी हैं । सुतन समेत ठाढ़े द्वारे दशरथ आज, कैसे विलम्ब होत, अँखियाँ टकटकानी हैं ।। बिगि बुलवावो उन्हें, आँगन में लावो आप, करो कन्यादान, मंगल-बेला पहुँची आनी है । सीता लहैं राम, लखन उर्मिला, माण्डवी भरत, शत्रुघ्न को सौंपो, श्रुतकीरति सुख-खानी है ।। बोले विदेह, होके मगन सनेह-सिन्धु, सुनि के प्रिय बानी ये, जुड़ानी आज छाती है । कौन प्रतिहारी, द्वार रोके राय दशरथ जू को, अपने घर माँही काकी अनुमति लई जाती है ।। ये हैं चक्रवतीं, वसुधा के मण्डलीक-मणि, मेरी तो परम्परा विरागी कहलाती है । रमा सौंपूँ राम को तो मेरो एहसान कौन, भले यहाँ प्रगटीं सीता, राम ही की थाती है । – श्रीनारायणदासजी ‘भक्तमाली’ Related