हनुमान जी का वीर-साधन-प्रयोग
ब्राह्म-मुहूर्त में उठकर, ‘सन्ध्या-वन्दनादि’ नित्य क्रिया करने के उपरान्त साधक नदी किनारे जाए। नदी में स्नान करके, ‘तीर्थ-आवाहन’ कर आठ बार मूल-मन्त्र का जप करे। फिर मूल-मन्त्र जपते हुए बारह बार अपने मस्तक पर जल के द्वारा ‘अभिषेक’ करे। अभिषेक करने के बाद वस्त्र धारण कर नदी के किनारे बैठ- ‘ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः, ह्रां हृदयाय नमः’ इस प्रकार ‘करांग-न्यास’ करे। इसके बाद प्राणायाम करे।

अकारादि १६ स्वर-वर्णों का उच्चारण करके बाँए नासा-पुट को वायु से पूर्ण करे। ककारादि से मकार-पर्यन्त २५ व्यञ्जन वर्णों का उच्चारण कर कुम्भक करे। फिर, यकारादि वर्णों का उच्चारण कर दाएँ नासा-पुट से रेचन करे। इस प्रकार तीन बार प्राणायाम करे।
प्राणायाम करने के बाद मूल-मन्त्र के अक्षरों से ‘अंग-न्यास’ कर हनुमानजी का ध्यान करे-
हनुमान जी संग्राम के बीच में असंख्य वानरों से युक्त हैं। रावण की पराजय के निमित्त धावित हो रहे हैं। महावीरजी को देखकर रावण कम्पायमान हो रहा है। लक्ष्मणजी रण-भूमि में गिरे पड़े हैं। लक्ष्मणजी को गिरा हुआ देखकर हनुमानजी क्रोध के साथ महा-पर्वत उखाड़ते हैं और ब्रह्माण्ड-व्यापी भीम कलेवर को धारण कर तीनों लोकों को हाहाकार-ध्वनि से कम्पित कर रहे हैं।
उक्त प्रकार ध्यान करने के बाद “हं पवन-नन्दनाय स्वाहा”– इस दशाक्षर मन्त्र का हजार जप करे। इस प्रकार छः दिनों तक जप करे। सातवें दिन, दिन-रात जप करे। सिद्धि प्राप्त होने पर हनुमानजी का जो साधक माया का परित्याग करने में समर्थ होता है, वह अभिलषित वर प्राप्त कर सकता है।

5 comments on “हनुमान जी का वीर-साधन-प्रयोग

  • Namaskar
    Sir, What is the Viniyog of this mantra ? Sir, Please tell us complete knowledge regarding this mantra….
    Who is Rishi, Chhand, Shakti, Bijam, Kilkam etc.
    Thanks Sir.

    • ‘मन्त्र महार्णव’ में वर्णित इस मन्त्र का विधान इतना ही दर्शाया गया है । अतः विनियोगादि के विषय में सन्देह न करते हुए शेष क्रिया पूर्ववत् करें।

  • धन्यवाद आचार्य जी,
    आचार्य जी, मैं षोडशोपचार की मुद्रा सीखना चाहता हुँ। क्या आप मेरा कोई मार्ग दर्शन कर सकते हैं ?

  • धन्यवाद आचार्य जी, आचार्य जी, मैं षोडशोपचार की मुद्रा सीखना चाहता हुँ। क्या आप मेरा कोई मार्ग दर्शन कर सकते हैं ?

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