December 26, 2015 | Leave a comment हरि भजन बिना सुख नाहीं रे हरि भजन बिना सुख नाहीं रे । नर क्यों बिरथा भटकाई रे ।। काशी गया द्वारका जावे, चार धाम तीरथ फिर आवे, मन की मैल न जाई रे । हरि भजन बिना सुख नाहीं रे । छाप तिलक बहु भाँत लगाए, सिर पर जटा विभूत रमाए, हिरदे शांति न आई रे । हरि भजन बिना सुख नाहीं रे । वेद पुराण पढ़े बहु भारी, खण्डन मण्डन उमर गुजारी, बिरथा लोक बड़ाई रे । हरि भजन बिना सुख नाहीं रे । चार दिवस जग बीच निवासा, ‘ब्रह्मानन्द’ छोड़ सब आसा, प्रभु चरनन चित्त लाई रे । हरि भजन बिना सुख नाहीं रे । Related