January 28, 2019 | aspundir | Leave a comment शत्रु को परास्त करने का मन्त्र विधिः- उक्त मन्त्र के दो प्रकार के अनुष्ठान हैं — १ छोटा, २ बड़ा । छोटा अनुष्ठान १० दिनों का है, बड़ा अनुष्ठान एक वर्ष का । इन अनुष्ठानों से शत्रु का पराभव होता है । शत्रु को परास्त करने और उस पर विजय प्राप्त करने के लिए यह एक अमोघ शस्त्र है । शत्रु एक हो या अनेक हों — सभी पर पूरा प्रभाव होता है । मन्त्रः- Content is available only for registered users. Please login or register छोटा अनुष्ठानः— ठीक मध्याह्न के समय (दिन के १२ बजे) किसी निर्जन जङ्गल में जाकर ऐसा स्थान चुने, जहाँ से लोगों का आना-जाना न होता हो । सिर नङ्गा कर खड़े होकर १००१ बार उक्त मन्त्र का जप करे । आँखें बन्द रखे । जप के बाद भूमि के ऊपर पश्चिम की ओर मुख करके बैठ जाए । फिर दाहिना हाथ उल्टा कर भूमि पर पाँच बार मारे और उक्त मन्त्र का उच्चारण करे । मन्त्र के उच्चारण के साथ शत्रु की आकृति का ध्यान करे । इसके बाद बायाँ हाथ उल्टा कर भूमि पर पुनः पाँच बार मारे और हर बार मन्त्र का उच्चारण करे । साथ ही शत्रु का ध्यान करे । १० दिन तक यह अनुष्ठान करे । इस प्रकार कुल १० हजार जप होगा । इससे मन्त्र सिद्ध हो जायगा । इस छोटे अनुष्ठान में किसी भी प्रकार के नियम-पालन की आवश्यकता नहीं है । जब कोई शत्रु परेशान करे, तब उसका ध्यान कर उक्त प्रयोग का पुनरावर्तन करे । अथवा पहले दाहिना हाथ उल्टा कर पाँच बार भूमि पर मारे, फिर बायाँ हाथ उल्टा कर पाँच बार भूमि पर मारे । साथ ही मन्त्र जप और शत्रु का ध्यान करता रहे । ऐसा करने से वह शत्रु परास्त होगा, साधक की विजय होगी । हाथ उल्टा करने पर हथेली आकाश की ओर होगी और हथेली के पीछे का भाग भूमि की ओर होगा । बड़ा अनुष्ठानः— यह चार चिल्लों में पूरा होता है । पहला ‘चिल्ला’ ४० दिनों में पूरा करे । बाद के ४० दिन छोड़ दे । फिर दूसरा चिल्ला करे और ४० दिन खाली छोड दे । अन्त में चौथा चिल्ला करे । उक्त चार अनुष्ठान ( चिल्ला ) हो जाने से साधक की जिह्वा ( वाणी) में ऐसा प्रभाव आ जाएगा कि चारों तरफ से गोलों या गोलियों की वर्षा हो और अनेक शत्रु साधक को मारने के लिए आ जाएं, तो साधक केवल एक बार उन सबको सम्बोधन कर दाहिने हाथ से सङ्केत करेगा और उक्त मन्त्र का उच्चारण करेगा, तब तुरन्त सब गोले-गोलियाँ बेकार हो जाएंगी और सभी शत्रु भाग जाएंगे । यही नहीं, इस मन्त्र का साधक यदि उड़ती हुई चीलों, कौओं या हिंसक पशु-पक्षियों की ओर हाथ से सङ्केत कर मन्त्र का उच्चारण करेगा, तो आकाश में उड़ते पक्षी नीचे भूमि पर गिर पड़ेंगे और जङ्गली पशु इत्यादि वश में आ जाएंगे । विशेषः— १. चांद की १७ तारीख से पहला चिल्ला (अनुष्ठान) प्रारम्भ करे और ४० दिनों में उसे पूरा करे । बाद में ४० दिन ‘अनुष्ठान’ न करे । २. चाँद की १८ तारीख से दूसरा चिल्ला’ (अनुष्ठान) प्रारम्भ करे और ४० दिनों में उसे पूरा करे । बाद के ४० दिन न करे । ३. चाँद की १९ तारीख से तीसरा ‘चिल्ला’ (अनुष्ठान) प्रारम्भ करे और ४० दिनों में उसे पूरा करे । बाद के ४० दिन न करे । ४. चाँद की २० तारीख से चौथा अर्थात् अन्तिम चिल्ला’ (अनुष्ठान) प्रारम्भ करे । बाद के ४० दिन अनुष्ठान न करे । उक्त प्रकार ३२० दिनों का बड़ा अनुष्ठान होगा । इन सब दिनों में यम-नियम का पालन निम्न प्रकार करना चाहिए — (१) मांस-मछली-अण्डा आदि आमिष भोजन का त्याग करे । निरामिष खानपान करे । सीधा-सादा सात्विक भोजन एक बार करे । (२) ब्रह्मचर्य का अखण्ड पालन करे । (३) सूर्योदय से सूर्यास्त तक मौन व्रत का पालन करे । न इशारे से, न जबान से या सचेत से, न और किसी भी तरह से किसी को कुछ बोलने या कुछ समझाने की मनाही है । (४) प्रत्येक ४० दिन की जप संख्या सवा लाख है । प्रति-दिन ३१२५ बार जप करे, तो ४० दिनों में सवा लाख जप होगा । ऐसा चार बार करना है । चिल्ले’ के बाद ४० दिनों में मन्त्र का स्मरण बराबर करता रहे । (५) प्रति – दिन जङ्गल में निर्जन स्थान में दोपहर के समय जाए और सिर नङ्गा करके खड़े रहकर मन्त्र का जप करे । संख्या ऊपर बताई है । (६) चार अनुष्ठानों व चार बिना अनुष्ठान के दिनों में कोई भी नियम यदि भङ्ग होगा, तो पूरी साधना निष्फल होगी । अतः पूरी सावधानी रखे । (७) फल-श्रुति के अनुसार शक्ति प्राप्त करना प्रयोगकर्ता पर — उसकी आन्तरिक सूझबूझ पर निर्भर है । इस प्रयोग से ऐसी अपूर्व शक्ति प्रगट होती है कि जिन्नात, हमजाद, यक्षिणी, भूत-प्रेत-प्रेतिनी व कर्ण-पिशाचिनी जैसी शक्तियाँ साधक के आसपास रहकर उसका मनचाहा कार्य करने में सहायिका होती हैं । Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe