July 31, 2015 | aspundir | Leave a comment ।। ॐ एक ओंकार श्रीसत्-गुरू प्रसाद ॐ।। ओंकार सर्व-प्रकाषी। आतम शुद्ध करे अविनाशी।। ईश जीव में भेद न मानो। साद चोर सब ब्रह्म पिछानो।। हस्ती चींटी तृण लो आदम। एक अखण्डत बसे अनादम्।। ॐ आ ई सा हा कारण करण अकर्ता कहिए। भान प्रकाश जगत ज्यूँ लहिए।। खानपान कछु रूप न रेखं। विर्विकार अद्वैत अभेखम्।। गीत गाम सब देश देशन्तर। सत करतार सर्व के अन्तर।। घन की न्याईं सदा अखण्डत। ज्ञान बोध परमातम पण्डत।। ॐ का खा गा घा ङा चाप ङ्यान कर जहाँ विराजे। छाया द्वैत सकल उठि भाजे।। जाग्रत स्वप्न सखोपत तुरीया। आतम भूपति की यहि पुरिया।। झुणत्कार आहत घनघोरं। त्रकुटी भीतर अति छवि जोरम्।। आहत योगी ञा रस माता। सोऽहं शब्द अमी रस दाता।। चा छा जा झा ञा टारनभ्रम अघन की सेना। सत गुरू मुकुति पदारथ देना।। ठाकत द्रुगदा निरमल करणं। डार सुधा मुख आपदा हरणम्।। ढावत द्वैत हन्हेरी मन की। णासत गुरू भ्रमता सब मन की।। टा ठा डा ढा णा तारन, गुरू बिना नहीं कोई। सत सिमरत साध बात परोई।। थान अद्वैत तभी जाई परसे। मन वचन करम गुरू पद दरसे।। दारिद्र रोग मिटे सब तन का। गुरू करूणा कर होवे मुक्ता।। धन गुरूदेव मुकुति के दाते। ना ना नेत बेद जस गाते।। ता था दा धा ना पार ब्रह्म सम्माह समाना। साद सिद्धान्त कियो विख्याना।। फाँसी कटी द्वात गुरू पूरे। तब वाजे सबद अनाहत धत्तूरे।। वाणी ब्रह्म साथ भये मेल्ला। भंग अद्वैत सदा ऊ अकेल्ला।। मान अपमान दोऊ जर गए। जोऊ थे सोऊ फुन भये।। पा फा बा भा मा या किरिया को सोऊ पिछाना। अद्वैत अखण्ड आपको माना।। रम रह्या सबमें पुरूष अलेखं। आद अपार अनाद अभेखम्।। ड़ा ड़ा मिति आतम दरसाना। प्रकट के ज्ञान जो तब माना।। लवलीन भए आदम पद ऐसे। ज्यूँ जल जले भेद कहु कैसे।। वासुदेव बिन और न कोऊ। नानक ॐ सोऽहं आत्म सोऽहम्।। या रा ला वा ड़ा ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं लृं श्री सुन्दरी बालायै नमः।। ।।फल श्रुति।। पूरब मुख कर करे जो पाठ। एक सौ दस औं ऊपर आठ।। पूत लक्ष्मी आपे आवे। गुरू का वचन न मिथ्या जावे।। दक्षिन मुख घर पाठ जो करै। शत्रू ताको तच्छिन मरै।। पच्छिम मुख पाठ करे जो कोई। ताके बस नर नारी होई।। उत्तर दिसा सिद्धि को पावे। ताके वचन सिद्ध होइ जावे।। बारा रोज पाठ करे जोई। जो कोई काज होव सिद्ध सोई।। जाके गरभ पात होइ जाई। मन्त्रित कर जल पान कराई।। एक मास ऐसी विधि करे। जनमे पुत्र फेर नहीं मरे।। अठराहे दाराऊ पावा। गुरू कृपा ते काल रखावा।। पति बस कीन्हा चाहे नार। गुरू की सेवा माहि अधार।। मन्तर पढ़ के करे आहुति। नित्य प्रति करे मन्त्र की रूती।। ।। ॐ तत्सत् ब्रह्मणे नमः।। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe