अग्निपुराण – अध्याय 290 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ नब्बेवाँ अध्याय अश्व-शान्ति अश्व-शान्ति शालिहोत्र कहते हैं — सुश्रुत! अब मैं घोड़ों के रोगों का मर्दन करने वाली ‘अश्वशान्ति’ का वर्णन करूंगा; जो नित्य, नैमित्तिक और काम्य के भेद से तीन प्रकार की मानी गयी है; इसे सुनो।… Read More


अग्निपुराण – अध्याय 289 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ नवासीवाँ अध्याय अश्वचिकित्सा अश्वचिकित्सा शालिहोत्र कहते हैं — सुश्रुत अब मैं अश्वों के लक्षण एवं चिकित्सा का वर्णन करता हूँ। जो अश्व हीनदन्त, विषमदन्तयुक्त या बिना दाँत का, कराली (दो से अधिक दन्तप‌ङ्क्तियों से युक्त, कृष्णतालु, कृष्णवर्ण की… Read More


अग्निपुराण – अध्याय 288 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ अठासीवाँ अध्याय अश्ववाहन-सार अश्ववाहनसारः भगवान् धन्वन्तरि कहते हैं — सुश्रुत। अब मैं अश्ववाहन का रहस्य और अश्वों की चिकित्सा का वर्णन करूँगा। धर्म, कर्म और अर्थ की सिद्धि के लिये अश्वों का संग्रह करना चाहिये। घोड़े के ऊपर… Read More


अग्निपुराण – अध्याय 287 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ सत्तासीवाँ अध्याय गज चिकित्सा का कथन गज चिकित्साः पालकाप्य ने कहा — लोमपाद ! मैं तुम्हारे सम्मुख हाथियों के लक्षण और चिकित्सा का वर्णन करता हूँ। लम्बी सूँड़वाले, दीर्घ श्वास लेनेवाले, आघात को सहन करने में समर्थ, बीस… Read More


अग्निपुराण – अध्याय 286 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ छियासीवाँ अध्याय मृत्युञ्जय योगों का वर्णन कल्पसागरः भगवान् धन्वन्तरि कहते हैं — सुश्रुत ! अब मैं मृत्युञ्जय-कल्पों का वर्णन करता हूँ, जो आयु देने वाले एवं सब रोगों का मर्दन करने वाले हैं। मधु, घृत, त्रिफला और गिलोय… Read More


अग्निपुराण – अध्याय 285 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ पचासीवाँ अध्याय मृतसंजीवनकारक सिद्ध योगों का कथन मृतसञ्जीवनीकरसिद्धयोगः धन्वन्तरि कहते हैं — सुश्रुत । अब मैं आत्रेय के द्वारा वर्णित मृतसंजीवनकारक दिव्य सिद्ध योगों को कहता हूँ, जो सम्पूर्ण व्याधियों का विनाश करने वाले हैं ॥ १ ॥… Read More


अग्निपुराण – अध्याय 284 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ चौरासीवाँ अध्याय मन्त्ररूप औषधों का कथन मन्त्र रूपौषध कथनम् धन्वन्तरि जी कहते हैं — सुश्रुत । ‘ओंकार’ आदि मन्त्र आयु देने वाले तथा सब रोगों को दूर करके आरोग्य प्रदान करने वाले हैं। इतना ही नहीं, देह छूटने… Read More


अग्निपुराण – अध्याय 283 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ तिरासीवाँ अध्याय नाना रोगनाशक ओषधियों का वर्णन नाना रोगहराण्यौषधानि भगवान् धन्वन्तरि कहते हैं — अडूसा,मुलहठी या कचूर [1], दोनों प्रकार की हल्दी और इन्द्रयव — इनका क्वाथ बालकों के सभी प्रकार के अतिसार में तथा स्तन्य (माता के… Read More


अग्निपुराण – अध्याय 282 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ बयासीवाँ अध्याय आयुर्वेदोक्त वृक्ष-विज्ञान वृक्षायुर्वेदः भगवान् धन्वन्तरि ने कहा — सुश्रुत! अब मैं वृक्षायुर्वेद का वर्णन करूँगा। क्रमशः गृह के उत्तर दिशा में प्लक्ष (पाकड़), पूर्व में वट (बरगद), दक्षिण में आम्र और पश्चिम में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष… Read More


अग्निपुराण – अध्याय 281 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ इक्यासीवाँ अध्याय रस आदि के लक्षण [1] रसादिलक्षणं भगवान् धन्वन्तरि ने कहा — सुश्रुत। अब मैं ओषधियों के रस आदि के लक्षणों और गुणों का वर्णन करता हूँ, ध्यान देकर सुनो। जो ओषधियों के रस, वीर्य और विपाक… Read More