श्रीगायत्री-मन्त्र से रोग-ग्रह-शान्ति श्रीगायत्री-मन्त्र से रोग-ग्रह-शान्ति १॰ क्रूर से क्रूर ग्रह-शान्ति में, शमी-वृक्ष की लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े कर, गूलर-पाकर-पीपर-बरगद की समिधा के साथ ‘गायत्री-मन्त्र से १०८ आहुतियाँ देने से शान्ति मिलती है। २॰ महान प्राण-संकट में कण्ठ-भर या जाँघ-भर जल में खड़े होकर नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र जपने से प्राण-रक्षा होती है। ३॰ घर के आँगन… Read More
गायत्री मन्त्र द्वारा प्राण-वायु का संचार गायत्री मन्त्र द्वारा प्राण-वायु का संचार जिस प्रकार नाग के मस्तिष्क में मणि स्थित रहती है, उसी प्रकार मानव-मस्तिष्क के ललाट में भी विभूतियों से ओत-प्रोत मणि स्थित है । यह मणि प्राण-वायु के विशेष सञ्चार के प्रभाव से समस्त विभूतियों की किरणों से जगमगा उठती है । गायत्री मन्त्र के साथ उसके प्रत्येक अक्षर… Read More
अलभ्य श्रीगायत्री-कवच अलभ्य श्रीगायत्री-कवच विनियोग-ॐ अस्य श्रीगायत्री-कवचस्य ब्रह्मा-विष्णु-रुद्राः ऋषयः। ऋग्-यजुः-सामाथर्वाणि छन्दांसि। परब्रह्म-स्वरुपिणी गायत्री देवता। भूः बीजं। भुवः शक्तिः। स्वाहा कीलकं। चतुर्विंशत्यक्षरा श्रीगायत्री-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः। ध्यानः- वस्त्राभां कुण्डिकां हस्तां, शुद्ध-निर्मल-ज्योतिषीम्। सर्व-तत्त्व-मयीं वन्दे, गायत्रीं वेद-मातरम्।। मुक्ता-विद्रुम-हेम-नील-धवलैश्छायैः मुखेस्त्रीक्षणैः। युक्तामिन्दु-निबद्ध-रत्न-मुकुटां तत्त्वार्थ-वर्णात्मिकाम्।। गायत्रीं वरदाभयांकुश-कशां शूलं कपालं गुणैः। शंखं चक्रमथारविन्द-युगलं हस्तैर्वहन्तीं भजे।।… Read More
दत्तात्रेय आसन गायत्री दत्तात्रेय आसन गायत्री मन्त्रः- आसन ब्रह्मा, आसन विष्णु, आसन इन्द्र, आसन बैठे गुरु गोविन्द । आसन बैठो, धरो ध्यान, स्वामी कथनो ब्रह्म-ज्ञान । अजर आसन, वज्र किवाड़, वज्र वज़ड़े दशम द्वार । जो घाले वज्र घाव, उलट वज्र वाहि को खाव । हृदय मेरे हर बसे, जिसमें देव अनन्त । चौकी हनुमन्त वीर की ।… Read More
अभयप्राप्तिसूक्त अभयप्राप्तिसूक्त जीवन में सर्वाधिक प्रिय वस्तु अपने प्राण ही होते हैं और सबसे बड़ा भय भी प्राणों से रहित होने का-मृत्यु का ही होता है। इसी दृष्टि से मन्त्रद्रष्टा ऋषि ने सब प्रकार से भयमुक्त रहने के लिये प्राणों की प्रार्थना की है और कहा है-जिस प्रकार द्यौ, पृथिवी, अन्तरिक्ष, सूर्य, चन्द्रमा आदि सभी भयमुक्त… Read More
यमसूक्त यमसूक्त ऋग्वेद के दशम मण्डल का चौदहवाँ सूक्त ‘यमसूक्त’ है। इसके ऋषि वैवस्वत यम हैं। ‘यमसूक्त’ तीन भागों में विभक्त है। ऋचा १ से ६ तक के पहले भाग में यम एवं उनके सहयोगियों की सराहना की गयी है और यज्ञ में उपस्थित होने के लिये उनका आवाहन किया गया है। ऋचा ७ से १२… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 109 ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 109 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ (उत्तरार्द्ध) एक सौ नौवाँ अध्याय बारात की बिदाई, भीष्मक द्वारा दहेज-दान और द्वारका में मङ्गलोत्सव श्रीनारायण कहते हैं — इसी समय रुक्मिणी की माता महारानी सुन्दरी सुभद्रा आनन्दमग्न हो पति-पुत्रवती साध्वी महिलाओं के साथ वहाँ आयीं और निर्मन्थन आदि मङ्गल-कार्य करके दम्पति को… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 101 ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 101 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ (उत्तरार्द्ध) एक सौ एकवाँ अध्याय नन्द आदि समागत अभ्यागतों की बिदाई और वसुदेव-देवकी का अनेकविध वस्तुओं का दान करना नारायण बोले — मुने! इस प्रकार जब देवताओं और मुनियों ने मन-ही-मन श्रीकृष्ण की स्तुति करके विराम लिया, तब आँगन में पीले वस्त्र से… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 84 ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 84 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ (उत्तरार्द्ध) चौरासीवाँ अध्याय गृहस्थ, गृहस्थ-पत्नी, पुत्र और शिष्य के धर्म का वर्णन, नारियों और भक्तों के त्रिविध भेद, ब्रह्माण्ड-रचना के वर्णन-प्रसङ्ग में राधा की उत्पत्ति का कथन श्रीभगवान् कहते हैं — नन्दजी ! गृहस्थ पुरुष सदा ब्राह्मणों और देवताओं का पूजन करता है… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 82 ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 82 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ (उत्तरार्द्ध) बयासीवाँ अध्याय दुःस्वप्न, उनके फल तथा उनकी शान्ति के उपाय का वर्णन तदनन्तर सूर्यग्रहण-चन्द्रग्रहणादि के विषय में कहकर नन्द बाबा के पूछने पर भगवान् कहने लगे । श्रीभगवान् बोले — नन्दजी! जो स्वप्न में हर्षातिरेक से अट्टहास करता है अथवा यदि विवाह… Read More