श्रीरुद्र गीता श्रीरुद्र गीता ।। चौपाई ।। सुनु मुनि यह तन – मन्दिर माहीं । दुइ विधी चेतन-रुप सदा ही ।। निर्विकल्प आतम यक रुपा । सदा एक – रस शान्त अनूपा ।। यक चैतन्योन्मुख वपु अहई । सो वह मिला दृश्य सन रहई ।। वास्तव मँह न भयो कछु कैसे । स्वप्न -सृष्टि पुनि जाग्रत जैसे… Read More
ब्रह्म-गीता ब्रह्म-गीता ।।चौपाई।। सर्वात्मा रुप जो जाना। है सोई ब्रह्म-देव कर ध्याना।। बाहर भीतर पूरण देखै। सोइ आवाहन तासु विशेषै।। सर्वाधार जानिवो जोई। ब्रह्म-देव हित आसन सोई।। स्वच्छ जानिबो अर्ध अनूपा। जानै शुद्ध आचमन-रुपा।। निर्मल जानब सोइ अस्नाना। चिश्वात्मा वसन परिधाना।। है निर्गन्ध सुगन्ध सुहाई। निर्वासना सुमन सुख-दाई।। निर्गुण जानब धूप समीपा। स्वयं प्रकाश-मान सोइ दीपा।।… Read More