॥ स्कन्द माता ॥ भगवान शंकर ने पार्वती को एक बार “काली” कह दिया जिससे वे रुष्ट होकर तप करने चली गई । ब्रह्मा के वरदान से गौराङ्ग होकर पुनः शिव के साथ रहने लगी एवं स्कन्द कुमार को जन्म दिया । ये स्कन्द माता अग्निमण्डल की देवता है, स्कन्द इनकी गोद में बैठे हैं,… Read More


॥ कूष्माण्डा ॥ यह देवि ब्रह्माण्ड को कूष्माण्ड की तरह आकृति में धारण करती है । ईषत् हँसने से अण्ड को अर्थात् ब्रह्माण्ड को पैदा करती है । इन्हें कुम्हड़े की बलिप्रिय है अतः इन्हें कूष्माण्डा नाम से संबोधित किया जाता है । अष्टभुजा स्वरूप में सातभुजाओं में अस्त्र धारण करती हैं तथा दाहिनी भुजा… Read More


॥ चन्द्रघण्टा ॥ देवी चन्द्रघण्टा को कहीं कहीं पुराणों व तन्त्रग्रन्थो में चन्डघण्टा नाम से भी संबोधन किया गया है । महाकाल संहिता के कामकला खण्ड में चण्डघण्टा व चण्डेश्वर्या नाम से दो ध्यान मन्त्र भी दिये गये हैं । देवी अपने दाहिने हाथ में पद्म, धनुष, बाण, अभयमुद्रा, धारण किये हुये हैं तो बाँयें… Read More


॥ ब्रह्मचारिणी ॥ हेमवती पार्वती ने शिव को ही अपना पति मानने हेतु कठोर तपस्या की एवं प्रतिज्ञा की यदि मैं शिव को प्रसन्न करने में असफल रही तो ब्रह्मचारिणी रहूंगी । पिता ने उसे उस समय समझाया कि उ-मा अर्थात् उसे मत कर इसी से उनका नाम उमा हो गया ।… Read More


॥ अथ शैलपुत्री सहस्रनाम ॥ इसे पुराणों में काली सहस्रनाम अथवा ललिता सहस्रनाम भी कहा गया है । भगवान शंकर ने जब कामदेव को भस्म कर दिया तो पार्वतीजी ने कहा कि मुझे पत्नि रूप में प्राप्त करने के लिये ही आपने तपस्या की थी फिर कामदेव को आपने क्यों भस्म कर दिया । शिवजी… Read More


॥ हिमालयराज कृत शैलपुत्री स्तुति ॥ ॥ हिमालय उवाच ॥ मातस्त्वं कृपयागृहे मम सुता जातासि नित्यापि यद्भाग्यं मे बहुजन्मजन्मजनितं मन्ये महत्पुण्यदम् । दृष्टं रूपमिदं परात्परतरां मूर्तिं भवान्या अपि माहेशी प्रति दर्शयाशु कृपया विश्वेशि तुभ्यं नमः ॥ १ ॥… Read More


॥ शैलपुत्री ॥ कालिका पुराण के अनुसार महिषासुर वध के पूर्व कल्प में शैलपुत्री ही आदि शक्ति है । पूज्यते वैष्णवी देवी तंत्रोक्ता अष्टयोगिनीः । ताः प्रोक्ताः शैलपुत्र्याश्च पूर्व कल्पे च भैरवः ॥ शैलपुत्री ने जब हिमालयराज के यहां जन्म लिया तो हिमालयराज उनको पहचान नहीं सका जगम्दबा ने दिव्यचक्षु से पहले उग्ररूप पश्चात् शान्तरूप… Read More