॥ अथ अश्व गज पूजन प्रयोगः ॥ प्रतिपदा से लेकर नवरात्र पर्यन्त गजाश्वों का पूजन करे । वस्त्रादि अलंकारों से सुसज्जित कर गंधादि से पूजन करे । एक पिण्ड प्रतिदिन पायसान्न, घृत, गुड़, शहद एवं सुरायुक्त बनाकर गजाश्वों को खिलावें । स्वाति नक्षत्र में उच्चैःश्रवा हय आया हैं । त्वाष्ट्र (चित्रा नक्षत्र)में गजाश्वों की पूजा… Read More


॥ नवदुर्गा प्रार्थना व ध्यान ॥ वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् । वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥ १ ॥ दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥ २ ॥… Read More


॥ सिद्धिदात्री ॥ यह देवी त्रिपुरसुन्दरी का ही स्वरूप है । यह कमलासना भी है एवं सिंहारूढा भी है । इसी की कृपा से शिव ने अन्यान्य सिद्धियों को प्राप्त किया था । यह देवि अणिमादि अष्टसिद्धियों से परिवेष्टित एवं सेवित है । ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्री कृष्ण जन्म खण्ड में १८ सिद्धियों का वर्णन… Read More


॥ त्रैलोक्यमोहन गौरी प्रयोगः ॥ त्रैलोक्यमोहन गौरी मन्त्र – माया (हीं), उसके अन्त में ‘नमः’ पद, फिर ‘ब्रह्म श्री राजिते राजपूजिते जय’, फिर ‘विजये गौरि गान्धारि’, फिर ‘त्रिभु’, इसके बाद तोय (व), मेष (न), फिर ‘वशङ्करि’, फिर ‘सर्व’ पद, फिर ससद्यल (लो), फिर ‘क वशङ्करि’, फिर ‘सर्वस्त्री पुरुष के बाद ‘वशङ्करि’, फिर ‘सु द्वय’ (सु… Read More


॥ हरगौरी मंत्र ॥ मंत्र :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हरिहर विरञ्च्याद्याराधिते शिवशक्ति स्वरूपे स्वाहा । यह मंत्र आय एवं शक्तिवर्द्धक है ॥ ॥ गौरी ध्यानम् ॥ गौराङ्गीं धृतपङ्कजां त्रिनयनां श्वेताम्बरां सिंहगां, चन्द्रोद्भासितशेखरां स्मितमुखीं दोर्भ्या वहन्तीं गदाम् । विष्ण्विन्द्राम्बुजयोनि शंभुत्रिदशैः संपूजिताङ्घ्रिद्वयां, गौरी मानसपङ्कजे भगवतीं भक्तेष्टदां तां भजे ॥… Read More


॥ महागौरी ॥ अग्निपुराण के अनुसार गौरी पूजन तृतीया, अष्टमी या चतुर्दशी को करना चाहिये । सिंह सिद्धान्त सिन्धु में चार भुजा देवी का ध्यान दिया है एवं अग्नि पुराण में सिंहस्थ या वृकस्थ देवी का आठ या अठारह भुजा स्वरूप में पूजन करने को कहा है।… Read More


॥ कालरात्रि ॥ ॥ कालरात्रि प्रयोग विधानम् ॥ कालरात्रि का प्रयोग अचूक हैं । यह संहार व सम्मोहन दोनों की अधिष्ठात्री हैं । ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन्हीं के प्रभाव से योगनिद्रा में रहते हुये आराधना व तपस्या में लीन रहते हैं । जब शत्रु बाधा, प्रेतादिकबाधा प्रबल हो बगला, प्रत्यंगिरा, शरभराजादि के प्रयोग शिथिल हो… Read More


॥ कात्यायनी ॥ कात्यायनी दशभुजा देवी ही महिषासुर मर्दिनी है। प्रथम कल्प में उग्रचण्डा रूप में, द्वितीय कल्प में १६ भुजा भद्रकाली रूप में तथा तृतीय कल्प में कात्यायनी ने दश भुजा रूप धारण करके महिषासुर का वध किया। कात्यायनी मुनि के द्वारा स्तुति करने पर बिल्व वृक्ष के पास देवी प्रकट हुई थी। आश्विन… Read More


॥ स्कन्द माता ॥ भगवान शंकर ने पार्वती को एक बार “काली” कह दिया जिससे वे रुष्ट होकर तप करने चली गई । ब्रह्मा के वरदान से गौराङ्ग होकर पुनः शिव के साथ रहने लगी एवं स्कन्द कुमार को जन्म दिया । ये स्कन्द माता अग्निमण्डल की देवता है, स्कन्द इनकी गोद में बैठे हैं,… Read More


॥ कूष्माण्डा ॥ यह देवि ब्रह्माण्ड को कूष्माण्ड की तरह आकृति में धारण करती है । ईषत् हँसने से अण्ड को अर्थात् ब्रह्माण्ड को पैदा करती है । इन्हें कुम्हड़े की बलिप्रिय है अतः इन्हें कूष्माण्डा नाम से संबोधित किया जाता है । अष्टभुजा स्वरूप में सातभुजाओं में अस्त्र धारण करती हैं तथा दाहिनी भुजा… Read More