भगवान् वराह भगवान् वराह स्रुक्-तुण्ड सामस्वरधीरनाद, प्राग्वंशकायाखिलसत्रसन्धे । पूर्तेष्टधर्मश्रवणोऽसि देव सनातनात्मन् भगवन् प्रसीद ।। (विष्णुपुराण १ । ४ । ३४) ‘प्रभो ! स्रुक् आपका तुण्ड (थूथनी) है, सामस्वर धीर-गम्भीर शब्द है, प्राग्वंश (यजमानगृह) शरीर है तथा सम्पूर्ण सत्र (सोमयाग) शरीर की संधियाँ हैं । देव ! इष्ट (यज्ञ-यागादि) और पूर्त (कुआँ, बावली, तालाब आदि खुदवाना, बगीचा लगाना… Read More