॥ वैदिक गणेश-स्तवन ॥ गणानां त्वा गणपतिᳬ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिᳬ हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ॥ (शु०यजु० २३ । १९) हे परमदेव गणेशजी ! समस्त गणों के अधिपति एवं प्रिय पदार्थों-प्राणियों के पालक और समस्त सुख-निधियों के निधिपति ! आपका हम आवाहन करते हैं । आप सृष्टि… Read More


॥ ब्रह्मणस्पतिसूक्त ॥ वैदिक देवता विघ्नेश गणपति ‘ब्रह्मणस्पति’ भी कहलाते हैं। ‘ब्रह्मणस्पति के रूप में वे ही सर्वज्ञाननिधि तथा समस्त वाङ्मयके अधिष्ठाता हैं । आचार्य सायण से भी प्राचीन वेदभाष्यकार श्रीस्कन्दस्वामी (वि०सं० ६८७) अपने ऋग्वेदभाष्य के प्रारम्भ में लिखते हैं — “विघ्नेश विधिमार्तण्ड़चन्द्रेन्द्रोपेन्द्रवन्दित । नमो गणपते तुभ्यं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पते ॥” अर्थात् ब्रह्मा, सूर्य, चन्द्र, इन्द्र… Read More


ब्रह्मणस्पती सूक्त [ऋषि – कण्व धौर । देवता – ब्रह्मणस्पति । छन्द बाहर्त प्रगाध(विषमा बृहती, समासतो बृहती)।] उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवयन्तस्त्वेमहे । उप प्र यन्तु मरुतः सुदानव इन्द्र प्राशूर्भवा सचा ॥१॥ हे ब्रह्मणस्पते! आप उठें, देवो की कामना करने वाले हम आपकी स्तुति करते है। कल्याणकारी मरुद्‍गण हमारे पास आयें। हे इन्द्रदेव। आप ब्रह्मणस्पति के साथ… Read More


स्वस्ति-वाचन सभी शुभ एवं मांगलिक धार्मिक कार्यों को प्रारम्भ करने से पूर्व वेद के कुछ मन्त्रों का पाठ होता है, जो स्वस्ति-पाठ या स्वस्ति-वाचन कहलाता है । इस स्वस्ति-पाठ में ‘स्वस्ति’ शब्द आता है, इसलिये इस सूक्त का पाठ कल्याण करनेवाला है । ऋग्वेद प्रथम मण्डल का यह ८९वाँ सूक्त शुक्लयजुर्वेद वाजसनेयी-संहिता (२५/१४-२३), काण्व-संहिता, मैत्रायणी-संहिता… Read More