विंशोत्तर-शत-महा-देव-‘मकारादि’-शत-नाम-स्तोत्र महादेवो महाकल्पो, महा-वेशो महा-बलः । महोद्योगो महोत्कर्ष, महा-भीमो महोक्षजः ।।१ महा-कालो महोत्सर्गो, महा-नागो महोत्सुकः । मोघो मोघ-बलो मेघो, मेघदो मेघ-वाहनः ।।२ मन्द-हासो महा-सेनो, मन्दाकिनि-शिरो-धरः । मुक्तिदो मोक्षमानन्दो, मोक्षो मोक्ष-प्रदो मनः ।।३… Read More


श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् प्रणाम-मन्त्रः- ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ।। पूर्व-पीठिका ।। ॐ नमस्कृत्य महा-देवं, सर्वज्ञं… Read More


आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग “भैरव-तन्त्र” के अनुसार आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं – १॰ रात्रि में तीन मास तक प्रति-दिन ३८ पाठ करने से (कुल ११४० पाठ) विद्या और धन की प्राप्ति होती है। २॰ तीन मास तक रात्रि में नौ अथवा बारह पाठ प्रति-दिन करने से ‘इष्ट-सिद्धि’ प्राप्त होती है ।… Read More


श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र ॐ गुरोः सेवां त्यक्त्वा गुरुवचन-शक्तोपि न भवे भवत्पूजा-ध्यानाज्जप 1 हवन-यागा 2 द्विरहितः । त्वदर्च-निर्माणे क्वचिदपि न यत्नं व कृतवान् जगज्जाल-ग्रसतो झटिति कुरु हार्दं मयि विभो ।।१ प्रभो ! दुर्गासूनो ! तव शरणतां सोऽधिगतवान् कृपालो ! दुःखार्तः कमपि भवदन्यं प्रकथये । सुहृत् 3 ! सम्पत्तेऽहं सरल 4-विरलः 5 साधकजन स्त्वदन्यः 6 कस्त्राता भव-दहन-दाहं शमयति ।।२… Read More


श्री बटुक भैरव स्तोत्र सभी प्रकार की आपदाओं के निवारण का एक सिद्ध प्रयोग (हिन्दी पद्यानुवाद) ।। पूर्व-पीठिका ।। मेरु-पृष्ठ पर सुखासीन, वरदा देवाधिदेव शंकर से – पूछा देवी पार्वती ने, अखिल विश्व-गुरु परमेश्वर से । जन-जन के कल्याण हेतु, वह सर्व-सिद्धिदा मन्त्र बताएँ – जिससे सभी आपदाओं से साधक की रक्षा हो, वह सुख… Read More


श्रीचण्डी-ध्वज स्तोत्रम् विनियोगः- अस्य श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रां बीजं, श्रीं शक्तिः, श्रूं कीलकं मम वाञ्छितार्थ फल सिद्धयर्थे विनियोगः । अंगन्यासः- श्रां, श्रीं, श्रूं, श्रैं, श्रौं, श्रः से हृदयादिन्यास व करन्यास करें । ।। मूल-पाठ ।। ॐ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः । परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः ।।… Read More