स्वस्ति-वाचन स्वस्ति-वाचन सभी शुभ एवं मांगलिक धार्मिक कार्यों को प्रारम्भ करने से पूर्व वेद के कुछ मन्त्रों का पाठ होता है, जो स्वस्ति-पाठ या स्वस्ति-वाचन कहलाता है । इस स्वस्ति-पाठ में ‘स्वस्ति’ शब्द आता है, इसलिये इस सूक्त का पाठ कल्याण करनेवाला है । ऋग्वेद प्रथम मण्डल का यह ८९वाँ सूक्त शुक्लयजुर्वेद वाजसनेयी-संहिता (२५/१४-२३), काण्व-संहिता, मैत्रायणी-संहिता… Read More
शंकराचार्य परम्परा अध्यात्म परम्परा १ ॐ गुरु जी प्रथमे उत्पत्ति आद्य शून्य, २ आद्य शून्य से अनादि शून्य, ३ अनादि शून्य से योगाशून्य, ४ योगाशून्य से महा-शून्य, ५ महा-शून्य से निरा शून्य, ६ निरा शून्य से आत्म-शून्य, ७ आत्म-शून्य से प्रमाल-शून्य, ८ प्रमाल-शून्य से चेतन-शून्य, ९ चेतन-शून्य से अजोड़ी शून्य, १० अजोड़ी शून्य से ओङ्कार, ११ ओङ्कार… Read More
पूजा में आरती का महत्त्व पूजा में आरती का महत्त्व ‘आरती’ पूजन के अन्त में देवता की प्रसन्नता के हेतु की जाती है । ‘स्कन्द-पुराण’ में लिखा है – “मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, यत्-कृतं पूजनं हरेः । सर्व सम्पूर्णतामेति, कृते नीराजने शिवे ।।” अर्थात् मन्त्र-हीन और क्रिया-हीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सम्पूर्ण पूर्णता आ जाती है ।… Read More
भगवान् श्री राम की दिन-चर्या भगवान् श्री राम की दिन-चर्या “आनन्द-रामायण” के राज्य-काण्ड के १९ वेँ सर्ग में ‘भगवान् श्रीराम’ की दिन-चर्या का वर्णन है । इस वर्णन से सदाचारों का महत्त्व भली-भाँति स्पष्ट होता है । महर्षि वाल्मीकि अपने शिष्यों को बताते हैं – “भगवान् श्रीराम नित्य प्रातः-काल चार घड़ी रात्रि शेष रहते मङ्गल-गीत आदि को श्रवण कर जागते… Read More
उड़िया विलंकारामायण उड़िया विलंकारामायण उड़िया भाषा में एक ऐसी रामायण लिखी गई, जिसकी विषयवस्तु वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण एवं रामचरितमानस से सर्वथा भिन्न है । इस ग्रन्थ का नाम है विलंकारामायण । इसके रचयिता हैं उड़िया के आदिकवि शारलादास । ऐसा माना जाता है कि उन्होंने इसकी रचना जगन्नाथपुरी के राजा गजपति गौड़ेश्व कपिलेन्द्रदेव के शासनकाल (1452-1479… Read More
वर्ष-गाँठ (जन्म-दिन) कैसे मनाएँ ? वर्ष-गाँठ (जन्म-दिन) कैसे मनाएँ ? (१) आत्म-शोधनः- प्रातःकाल स्नान आदि करके नवीन वस्त्र धारण करे। पूजा-स्थान में अपने सम्मुख पहले से स्थापित ‘पञ्च-पात्र’ के जल में, निम्न मन्त्र से ‘अंकुश-मुद्रा’ द्वारा ‘सूर्य-मण्डल’ से तीर्थों का आवाहन करे- ॐ गंगे च यमुने चैव, गोदावरी सरस्वति ! नर्मदे सिन्धु कावेरि ! जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।। फिर ‘पञ्च-पात्र’ से… Read More
जपमाला के संस्कार जपमाला के संस्कार कबीर जी ने कहा है – माला फेरत जुग भया, मिटा ना मन का फेर । कर का मन का छाड़ि के, मन का मनका फेर ।। माला के सम्बन्ध में शास्त्रों में बहुत विचार किया गया है । यहाँ संक्षेप में उसका कुछ थोड़ा-सा अनुमान मात्र दिया जाता है – माला… Read More
आप स्मार्त्त हैं या वैष्णव ? आप स्मार्त्त हैं या वैष्णव कभी-कभी पंचांगों में एकादशी और जन्माष्टमी के वर्तों में स्मार्त्तों के लिये और वैष्णवों के लिये – दो व्रत दो दिन लिखे रहते हैं। जनसाधारण नहीं समझ पाता कि वह व्रत किस दिन करे -पहले दिन या दूसरे दिन । ध्यान रहे – सम्पूर्ण संसार में फैले हिन्दू मात्र स्मार्त्त… Read More
प्रार्थना प्रार्थना “ॐ वाङ्मे मनसि प्रतिष्ठिता, मनो मे वाचि प्रतिष्ठितमाविरावीर्म एधि वेदस्य म आणीस्थः श्रुतं मे मा प्रहासीः। अनेनाधीतेनाहोरात्रान् संदधाम्यृतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु। तद् वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारमवतु वक्तारम्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्ति।।” (ऋग्वेदीय शान्तिपाठ)… Read More
पूजा के विविध उपचार पूजा के विविध उपचार संक्षेप और विस्तार के भेद से पूजा के अनेकों प्रकार के उपचार हैं- पञ्चोपचार-१॰ गन्ध, २॰ पुष्प, ३॰ धूप, ४॰ दीप और ५॰ नैवेद्य। दस उपचार- १॰ पाद्य, २॰ अर्घ्य, ३॰ आचमन, ४॰ स्नान, ५॰ वस्त्र-निवेदन, ६॰ गन्ध, ७॰ पुष्प, ८॰ धूप, ९॰ दीप और १०॰ नैवेद्य।… Read More