October 4, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीगणेशपुराण-क्रीडाखण्ड-अध्याय-037 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ सैंतीसवाँ अध्याय देवपत्नियों द्वारा की गयी गजाननस्तुति, गजानन से वर प्राप्तकर देवों को पुनः अपने पूर्ववत् स्वरूप की प्राप्ति, देवताओं द्वारा हेरम्ब गणपति की मूर्ति का शमीपत्रों द्वारा पूजन, ब्रह्माजी द्वारा मन्दारकाष्ठ से निर्मित गणेशप्रतिमा का शमीपत्रों द्वारा पूजन, मन्दार तथा शमी के माहात्म्य का वर्णन अथः सप्तत्रिंशोऽध्यायः बालचरिते शमीमन्दारमाहात्म्यं कीर्ति बोली — हे महामुने! उन देवियों ने किस प्रकार से उन गजानन की स्तुति की, उसे मुझे बतलाइये ॥ १ ॥ मुनि बोले — हे कीर्ते ! उस स्तुति को मैं बताता हूँ, तुम ध्यान देकर उसे सुनो ॥ ११/२ ॥ ॥ ता ऊचुः ॥ नमस्ते सर्वरूपाय सर्वान्तर्यामिणे नमः । नमः सर्वकृते तुभ्यं सर्वदात्रे कृपालवे ॥ २ ॥ नमः सर्व विनाशाय नमस्तेऽनन्तशक्तये । नमः सर्वप्रबोधाय सर्वपात्रेऽखिलादये ॥ ३ ॥ परब्रह्मस्वरूपाय निर्गुणाय नमो नमः । चिदानन्दस्वरूपाय वेदानामप्यगोचर ॥ ४ ॥ मायाश्रयायामेयाय गुणातीताय ते नमः । सत्यायासत्यरूपाय गुणाविक्षोभकारिणे ॥ ५ ॥ शरणागतपालाय दैत्यदानवभेदिने । नमो नानावताराय विश्वरक्षणतत्पर ॥ ६ ॥ अनेकायुधहस्ताय सर्वशत्रुनिबर्हण । अनेकवरदात्रे ते भक्तान्ना हितकारक ॥ ७ ॥ वे बोलीं — हे सर्वरूप ! आपको नमस्कार है, आप सर्वान्तर्यामी को नमस्कार है। सब कुछ करने वाले आपको नमस्कार है। सब कुछ प्रदान करने वाले कृपालु गणेशजी को नमस्कार है। सबका संहार करने वाले को नमस्कार है। अनन्त शक्ति से सम्पन्न आपको नमस्कार है। सबको ज्ञान प्रदान करनेवाले को नमस्कार है। सबकी रक्षा करने वाले तथा सबके आदि में विद्यमान रहने वाले आपको नमस्कार है ॥ २-३ ॥ आप परब्रह्मस्वरूप हैं तथा निर्गुण हैं, आपको बारंबार नमस्कार है । चिदानन्दस्वरूप आपको नमस्कार है, वेदों से भी अगोचर आपको नमस्कार है। आप माया के आश्रय हैं, अपरिमेय हैं, गुणातीत हैं, आपको नमस्कार है। सत्यस्वरूप, अनन्तरूप और सत्त्वादि गुणों में विक्षोभ शरणागतों का पालन करने वाले तथा दैत्यों और उत्पन्न करने वाले को नमस्कार है ॥ ४-५ ॥ दानवों का भेदन करने वाले आप गणेशजी को नमस्कार है। आप विश्व की रक्षा करने में तत्पर रहते हैं, नाना प्रकार के अवतार धारण करने वाले आपको नमस्कार है ॥ ६ ॥ अपने हाथों में अनेक आयुध धारण करने वाले को नमस्कार है। सभी शत्रुओं का विनाश करने वाले को नमस्कार है। हे भक्तों के हितकारक ! अनेक वर प्रदान करने वाले आपको नमस्कार है’ ॥ ७ ॥ ब्रह्माजी बोले — इस प्रकार उनकी स्तुति करके पुनः उन्हें प्रणाम करके उन्होंने बहुत-से वरों की याचना की ॥ ७१/२ ॥ वे बोलीं — हे देव ! जलरूपता को प्राप्त देवताओं को आप उनका पूर्व स्वरूप प्रदान करें तथा आप ऐसी कृपा करें कि हम कभी भी आपका विस्मरण न करें, सर्वदा स्मरण करते रहें! ॥ ८१/२ ॥ गणेशजी बोले — तुम सबने अपनी पूजा-आराधना के द्वारा मुझे अपने वश में कर लिया है। अतः मैं तुम सबकी मनोभिलषित वाञ्छा को अवश्य पूर्ण करूँगा। तुम्हारे द्वारा की गयी इस स्तुति से शीघ्र ही प्रसन्न होकर ‘तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण होगी।’ ऐसा वचन मैं देता हूँ ॥ ९१/२ ॥ देवी सावित्री के कथनानुसार सभी देवता मंगलमय जलरूप में परिणत हुए हैं। उन देवी के वचन को अन्यथा करने में पितामह ब्रह्माजी भी समर्थ नहीं हैं, अतः सभी देवता एक अंश से जलस्वरूप (नदीरूप) – को प्राप्त करने पर भी अपने पूर्व स्वरूप को प्राप्त करेंगे और अपने-अपने अधिकारों को प्राप्त करेंगे। मेरा कहा हुआ मिथ्या नहीं होगा। तुम सभी देवांगनाएँ एवं देवगण यहाँ पर शमीपत्रों के द्वारा मेरा पूजन करो ॥ १०-१२ ॥ जिसने मुझे शमीपत्र अर्पित कर दिया, उसने मानो सम्पूर्ण भुवन ही मुझे प्रदान कर दिया, उसे सौ भार सुवर्ण 1 दान करने का फल प्राप्त होगा। इसमें कोई संशय नहीं ॥ १३ ॥ ब्रह्माजी बोले — विघ्नेश्वर गणेशजी के इस प्रकार से कहने पर सभी देवता अपने-अपने स्वरूप में स्थित हो गये और अंशरूप से वे नदीरूप में भी स्थित रहे। तब उन्होंने विनायक का दर्शन किया ॥ १४ ॥ वे देवता भगवान् गजानन को प्रणाम करके तथा उनकी स्तुति करके प्रार्थना करने लगे कि हे देव ! आप हमारे अपराध को क्षमा करें। हमने बुद्धि में मोह उत्पन्न हो जाने के कारण बिना आपका पूजन किये और पितामह ब्रह्माजी की ज्येष्ठ पत्नी देवी सावित्री की उपेक्षाकर यज्ञ प्रारम्भ कर दिया था और उसका फल भी तत्काल हमने देख लिया, अब आपकी कृपा से हमने अपना पुनः नवीन रूप प्राप्त किया है। आपकी कृपा से हम परमानन्द को प्राप्त हुए हैं। ऐसा कहकर उन्होंने शमीपत्रों के द्वारा विनायक का पूजन किया ॥ १५–१७ ॥ वे विघ्ननाशन विनायक भी उन देवताओं को आनन्दित करके अन्तर्धान हो गये। तब उन देवताओं ने गणेशजी की पत्थर की एक शुभ मूर्ति बनायी, जो चार भुजाओं वाली थी और हाथी के सूँड़युक्त मुखवाली थी, उस मूर्ति का उन्होंने ‘हेरम्ब’ यह नाम रखा। साथ ही एक श्रेष्ठ मन्दिर बनवाकर उसमें उस मूर्ति को बड़े ही आदरपूर्वक स्थापित किया ॥ १८-१९ ॥ तदनन्तर सभी लोगों पर उपकार करने की दृष्टि से वे देवता बोले — जो व्यक्ति विद्या के अधीश्वर इन हेरम्ब गणपति का इस उत्तम नगर में भक्तिपूर्वक पूजन करेगा, उसके ऊपर प्रसन्न होकर भगवान् हेरम्ब उसकी समस्त कामनाओं को पूर्ण करेंगे। इन हेरम्ब का वन्दन करने से, स्मरण करने से अथवा प्रणाम करने से गजानन पूर्वोक्त फल प्रदान करेंगे, इसमें कोई संशय नहीं ॥ २०-२१ ॥ वहाँ पर पूर्व में मन्दारवृक्ष के काष्ठ से निर्मित जो विनायकजी की विशाल मूर्ति थी, उसे ग्रहण कर इन्द्र परम ऋद्धिशाली अपनी पुरी अमरावती में ले गये ॥ २२ ॥ वे प्रभु इन्द्र आज भी सपत्नीक उस मूर्ति की भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं। तदनन्तर उन सभी देवताओं ने भी अपने-अपने लोक में मन्दारकाष्ठ की गणेशमूर्ति बनाकर शमीपत्रों के द्वारा उनकी पूजा की। इसके फलस्वरूप वे सभी अपनी-अपनी स्त्रियों के साथ परम आनन्द को प्राप्त हुए और उन्होंने उत्तम भोगों को प्राप्त किया ॥ २३-२४ ॥ ब्रह्माजी ने बारह वर्षों तक परम तप करके भगवान् विघ्नेश्वर को प्रसन्न करने के अनन्तर पुनः यज्ञ किया ॥ २५ ॥ उन ब्रह्माजी ने भी मन्दारकाष्ठ से विघ्नराज गणपति की एक वरदायिनी मूर्ति बनवाकर अत्यन्त आदर के साथ शमीपत्रों के द्वारा अनेक बार उसका पूजन किया । उन्होंने स्वर्णपत्रों, दूर्वा, मन्दारपुष्पों, केतकी के पुष्पों तथा श्वेत दूर्वांकुरों के द्वारा सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली उस मूर्ति का पूजन किया ॥ २६-२७ ॥ गृत्समद बोले — हे मातः ! हे शुभे ! इस प्रकार मैंने अत्यन्त संक्षेप में मन्दार तथा शमी की महिमा तुम्हें बतायी है। इस महिमा का श्रवण करने से सभी पाप विनष्ट हो जाते हैं ॥ २८ ॥ तभी से लेकर मंगलमयी शमी भगवान् गणेश को अत्यन्त प्रिय हो गयी। तुम्हारे द्वारा अनजान में भी [शमीदलों के द्वारा] जो विनायक की पूजा हो गयी थी, उसी के फलस्वरूप तुम्हारा पुत्र जीवित होकर उठ खड़ा हुआ है । मन्दार की भी महिमा मैंने भलीभाँति निरूपित कर दी । [हे कीर्ते !] अब अनुमति दो, मैं अपने आश्रम को जाऊँगा ॥ २९-३० ॥ ब्रह्माजी बोले — शमी तथा मन्दार की महिमा को सुनने के अनन्तर रानी कीर्ति ने अपने पुत्र के कल्याण के लिये गणपतिमन्त्र के विषय में पूछा ॥ ३१ ॥ गणेशजी की प्रीति को बढ़ानेवाले इस श्रेष्ठ आख्यान का जो श्रवण करता है, वह व्यक्ति कभी भी संकट को प्राप्त नहीं होता और अपनी समस्त कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। जो व्यक्ति सर्वदा प्रातःकाल उठकर शमी, मन्दार तथा गणेशजी का श्रद्धाभक्तिपूर्वक स्मरण करता है, वह सभी पापों से रहित हो जाता है और सुखी होता है ॥ ३२-३३ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीगणेशपुराण के क्रीडाखण्ड में ‘शमी तथा मन्दार के माहात्म्य का वर्णन’ नामक सैंतीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३७ ॥ 1. -दो हजार पल सुवर्ण का मान एक भार के बराबर होता है। Content is available only for registered users. 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