शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 41 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] इकतालीसवाँ अध्याय मेरुगिरिके स्कन्द-सरोवरके तटपर मुनियोंका सनत्कुमारजीसे मिलना, भगवान् नन्दीका वहाँ आना और दृष्टिपातमात्रसे पाशछेदन एवं ज्ञानयोगका उपदेश करके चला जाना, शिवपुराणकी महिमा तथा ग्रन्थका उपसंहार सूतजी कहते हैं – वहाँ [मेरुपर्वतपर] सागरके समान एक विशाल सरोवर… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 40 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] चालीसवाँ अध्याय वायुदेवका अन्तर्धान होना, ऋषियोंका सरस्वतीमें अवभृथ – स्नानऔर काशीमें दिव्य तेजका दर्शन करके ब्रह्माजीके पास जाना, ब्रह्माजीका उन्हें सिद्धि प्राप्तिकी सूचना देकर मेरुके कुमारशिखरपर भेजना सूतजी कहते हैं – इस प्रकार क्रोधको जीतनेवाले उपमन्युसे यदुकुलनन्दन… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 39 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] उनतालीसवाँ अध्याय ध्यान और उसकी महिमा, योगधर्म तथा शिवयोगीका महत्त्व, शिवभक्त या शिवके लिये प्राण देने अथवा शिवक्षेत्रमें मरणसे तत्काल मोक्ष – लाभका कथन उपमन्यु कहते हैं— श्रीकृष्ण ! श्रीकण्ठनाथका स्मरण करनेवाले लोगोंके सम्पूर्ण मनोरथोंकी सिद्धि तत्काल… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 38 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] अड़तीसवाँ अध्याय योगमार्गके विघ्न, सिद्धि-सूचक उपसर्ग तथा पृथ्वीसे लेकर बुद्धितत्त्वपर्यन्त ऐश्वर्यगुणोंका वर्णन, शिव – शिवाके ध्यानकी महिमा उपमन्यु कहते हैं— श्रीकृष्ण ! आलस्य, तीक्ष्ण व्याधियाँ, प्रमाद, स्थान- संशय, अनवस्थितचित्तता, अश्रद्धा, भ्रान्ति-दर्शन, दुःख, दौर्मनस्य और विषय – लोलुपता-… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 37 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] सैंतीसवाँ अध्याय योगके अनेक भेद, उसके आठ और छः अंगोंका विवेचन – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, दशविध प्राणोंको जीतनेकी महिमा, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधिका निरूपण श्रीकृष्णने कहा— भगवन् ! आपने ज्ञान, क्रिया और चर्याका संक्षिप्त सार… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 36 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] छत्तीसवाँ अध्याय शिवलिंग एवं शिवमूर्तिकी प्रतिष्ठाविधिका वर्णन श्रीकृष्ण बोले – [ हे भगवन् ! ] मैं लिंग तथा मूर्तिकी उत्तम प्रतिष्ठाविधिको सुनना चाहता हूँ, जिसे शिवजीने कहा था ॥ १ ॥ उपमन्यु बोले— [हे कृष्ण ! ]… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 35 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] पैंतीसवाँ अध्याय लिंगमें शिवका प्राकट्य तथा उनके द्वारा ब्रह्मा-विष्णुको दिये गये ज्ञानोपदेशका वर्णन उपमन्यु बोले – [ हे कृष्ण ! ] तदुपरान्त वहाँपर ब्रह्मतत्त्वका प्रतिपादक, नादमय, एकाक्षरात्मक शब्द- ब्रह्म ओंकार प्रकट हुआ ॥ १ ॥ उस समय… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 34 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] चौंतीसवाँ अध्याय मोहवश ब्रह्मा तथा विष्णुके द्वारा लिंगके आदि और अन्तको जाननेके लिये किये गये प्रयत्नका वर्णन उपमन्यु बोले – [हे कृष्ण !] नित्य नैमित्तिक तथा काम्यव्रतसे जो सिद्धि यहाँ कही गयी है, वह सब लिंग अथवा… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 33 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] तैंतीसवाँ अध्याय पारलौकिक फल देनेवाले कर्म- शिवलिंग- महाव्रतकी विधि और महिमाका वर्णन उपमन्यु कहते हैं – यदुनन्दन ! अब मैं केवल परलोकमें फल देनेवाले कर्मकी विधि बतलाऊँगा। तीनों लोकोंमें इसके समान दूसरा कोई कर्म नहीं है ॥… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 32 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] बत्तीसवाँ अध्याय ऐहिक फल देनेवाले कर्मों और उनकी विधिका वर्णन, शिव – पूजनकी विधि, शान्ति-पुष्टि आदि विविध काम्य कर्मोंमें विभिन्न हवनीय पदार्थोंके उपयोगका विधान उपमन्यु कहते हैं — हे श्रीकृष्ण ! यह मैंने तुमसे इहलोक और परलोकमें… Read More