श्रीकृष्णसहस्रनामम् – गर्गसंहितान्तर्गतं ॥ गर्गसंहितान्तर्गतं श्रीकृष्णसहस्रनामम् ॥ ॥ गर्ग उवाच ॥ अथोग्रसेनो नृपतिः पुत्रस्याशां विसृज्य च । व्यासं पप्रच्छ सन्देहं ज्ञात्वा विश्वं मनोमयम् ॥ १॥ ॥ उग्रसेन उवाच ॥ ब्रह्मन् केन प्रकारेण हित्वा च जगतः सुखम् । भजेत् कृष्णं परंब्रह्म तन्मे व्याख्यातुमर्हसि ॥ २॥… Read More
अथर्ववेदीया श्रीकृष्णोपनिषत् ॥ अथर्ववेदीया श्रीकृष्णोपनिषत् ॥ श्रीकृष्ण परिकररूप में देवी देवताओं का अवतरण, श्रीकृष्ण से उनकी एकरूपता “हरिः ॐ श्रीमहाविष्णुं सच्चिदानन्दलक्षणं रामचन्द्रं दृष्ट्वा सर्वाङ्गसुन्दर मुनयो वनवासिनो विस्मिता बभूवः । तं होचुर्नोऽवद्यमवतारान्वै गण्यन्ते आलिङ्गामो भवन्तमिति । भवान्तरे कृष्णावतारे यूयं गोपिका भूत्वा मामालिङ्गथ अन्ये येऽवतारास्ते हि गोपा नः स्त्रीश्च नो करु । अन्योऽन्यविग्रहं धार्यं तवाङ्गस्पर्शनादिह । शश्वत्स्पर्शयितास्माकं गृह्णीमोऽवतारान्वयम् ॥… Read More
श्रीकृष्ण – एकाक्षरी मन्त्र ॥ श्रीकृष्ण एकाक्षरी मन्त्र ॥ ॥ क्लीं ॥ ॥ ग्लौं ॥ ॥ कृः ॥ ॥ कृं ॥… Read More
त्रैलोक्यविजयं श्रीकृष्ण कवचम् ॥ अथ त्रैलोक्यविजयं श्रीकृष्ण कवचम् ॥ ॥ नारद उवाच ॥ भगवञ्छ्रोतुमिच्छामि किं मन्त्रं भगवान्हरः । कृपया-ऽदात् परशुरामाय स्तोत्रं च वर्म च ॥ १॥ कोवाऽस्य मन्त्रस्याराध्यः किं फलं कवचस्य च । स्तवनस्य फलं किं वा तद्भवान्वक्तुमर्हसि ॥ २॥… Read More
कृष्णप्रेमामृतं स्तवं अथवा श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥ कृष्णप्रेमामृतं स्तवं अथवा श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥ ॥ शेष उवाच ॥ वसुन्धरै वरारोहे जनानामस्ति मुक्तिदम् ॥ १॥ सर्वमङ्गल मूर्द्धन्यमणिमाद्यष्टसिद्धिदम् । महापातककोटिघ्न सर्वतीर्थफलप्रदम् ॥ २॥ समस्त जप यज्ञानां फलदं पापनाशनम् । शृणु देवि प्रवक्ष्यामि नाम्नामष्टोतरं शतम् ॥ ३॥… Read More
युगलशरणागति-मन्त्र युगलशरणागति-मन्त्र सारस्वत कल्प से पच्चीसवें कल्प पूर्व की बात है, उस समय नारदजी कश्यपजी के पुत्र होकर उत्पन्न हुए थे । उस समय भी उनका नाम नारद ही था । एक दिन वे भगवान् श्रीकृष्ण का परम तत्त्व पूछने के लिये कैलास पर्वत पर भगवान् शिव के समीप गये । वहाँ उनके प्रश्न करने पर… Read More
गोपिका विरह गीत ॥ गोपिका विरह गीत ॥ एहि मुरारे कुजविहारे एहि प्रणतजनबन्धो । हे माधव मधुमथन वरेण्य केशव करुणासिन्धो । (ध्रुवपदम्) रासनिकुञ्जे गुञ्जति नियतं भ्रमरशतं किल कान्त । एहि निभृतपथपान्थ । त्वामिह याचे दर्शनदानं हे मधुसूदन शान्त ॥ १ ॥… Read More
श्रीयुगलकिशोराष्टक ॥ श्रीयुगलकिशोराष्टक ॥ श्रीरूपगोस्वामीजी द्वारा रचित श्रीयुगलकिशोराष्टक श्री रूप गोस्वामी (१४९३ – १५६४), वृंदावन में चैतन्य महाप्रभु द्वारा भेजे गए छः षण्गोस्वामी में से एक थे। वे कवि, गुरु और दार्शनिक थे। वे सनातन गोस्वामी के भाई थे। इनका जन्म १४९३ ई (तदनुसार १४१५ शक.सं.) को हुआ था। इन्होंने २२ वर्ष की आयु में गृहस्थाश्रम… Read More
राधामाधव प्रातः स्तवराज ॥ राधामाधव प्रातः स्तवराज ॥ प्रातः स्मरामि युगकेलिरसाभिषिक्तं वृन्दावनं सुरमणीयमुदारवृक्षम् । सौरीप्रवाहवृतमात्मगुणप्रकाशं युग्माङ्घ्रिरेणुकणिकाञ्चितसर्वसत्त्वम् ॥ १ ॥ जहाँपर सगुण हुए परमात्मा के दिव्य लीलागुणों का प्रकाश हुआ है, जो यमुनाजी के जलप्रवाह से आवेष्टित, अतीव रमणीय तथा वांछित फल देनेवाले वृकषों से समन्वित है और जिसमें अवस्थित सकल प्राणिसमुदाय युगल-स्वरूप की चरण-धूलिसे परिपूत है । राधामाधव-युगल… Read More
श्रीराधा-माधवप्रेम की प्राप्ति के लिये श्रीराधा-माधवप्रेम की प्राप्ति के लिये साधक भक्त स्नान करने के बाद श्रीराधामाधव-प्रेमप्राप्ति के लिये सर्वप्रथम भगवान् श्रीराधामाधव के युगलस्वरूपवाले किसी मनभावन चित्रपट को सामने रखकर उसका पंचोपचार पूजन करे, तत्पश्चात् शुद्ध वस्त्र धारणकर, शुद्ध आसन पर बैठकर श्रीमद्भागवत के निम्नलिखित चारों श्लोकों (१०। ३३ । २२-२५)-को, श्रीमद्भागवत के ही निम्नलिखित (१० । ३३ । ४०)… Read More