अग्निपुराण – अध्याय 383 अग्निपुराण – अध्याय 383 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीन सौ तिरासीवाँ अध्याय अग्नि पुराण का माहात्म्य अग्नि पुराण माहात्म्यः अग्निदेव कहते हैं — ब्रह्मन् । ‘अग्निपुराण’ ब्रह्मस्वरूप है, मैंने तुमसे इसका वर्णन किया। इसमें कहीं संक्षेप से और कहीं विस्तार के साथ ‘परा’ और ‘अपरा’ — इन दो… Read More
अग्निपुराण – अध्याय 382 अग्निपुराण – अध्याय 382 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीन सौ बयासीवाँ अध्याय यमगीता यमगीताः अग्निदेव कहते हैं — ब्रह्मन् । अब मैं ‘यमगीता’ का वर्णन करूँगा, जो यमराज के द्वारा नचिकेता के प्रति कही गयी थी। यह पढ़ने और सुनने वालों को भोग प्रदान करती है तथा मोक्ष… Read More
अग्निपुराण – अध्याय 381 अग्निपुराण – अध्याय 381 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीन सौ इक्यासीवाँ अध्याय गीता-सार गीतासारः अग्निदेव कहते हैं — अब मैं गीता का सार बतलाऊँगा, जो समस्त गीता का उत्तम-से-उत्तम अंश है। पूर्वकाल में भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उसका उपदेश दिया था। वह भोग तथा मोक्ष दोनों को… Read More
अग्निपुराण – अध्याय 380 अग्निपुराण – अध्याय 380 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीन सौ असीवाँ अध्याय जडभरत और सौवीर नरेश का संवाद अद्वैत ब्रह्मविज्ञान का वर्णन अद्वैत ब्रह्म विज्ञानम् अग्निदेव कहते हैं — अब मैं उस ‘अद्वैत ब्रह्मविज्ञान’ का वर्णन करूँगा, जिसे भरत ने (सौवीरराज को) बतलाया था। प्राचीनकाल की बात है,… Read More
अग्निपुराण – अध्याय 379 अग्निपुराण – अध्याय 379 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीन सौ उन्यासीवाँ अध्याय भगवत्स्वरूप का वर्णन तथा ब्रह्मभाव की प्राप्ति का उपाय ब्रह्मज्ञान निरुपणं अग्निदेव कहते हैं — वसिष्ठजी! धर्मात्मा पुरुष यज्ञ के द्वारा देवताओं को, तपस्या द्वारा विराट् के पद को, कर्म के संन्यास द्वारा ब्रह्मपद को, वैराग्य… Read More
अग्निपुराण – अध्याय 378 अग्निपुराण – अध्याय 378 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीन सौ सतहत्तरवाँ अध्याय निदिध्यासनरूप ज्ञान ब्रह्मज्ञानम् अग्निदेव कहते हैं — ब्रहान् ! मैं पृथ्वी, जल और अग्नि से रहित स्वप्रकाशमय परब्रह्म हूँ। मैं वायु और आकाश से विलक्षण ज्योतिर्मय परब्रह्म हूँ। मैं कारण और कार्य से भिन्न ज्योतिर्मय परब्रह्म… Read More
अग्निपुराण – अध्याय 377 अग्निपुराण – अध्याय 377 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीन सौ सतहत्तरवाँ अध्याय श्रवण एवं मननरूप ज्ञान ब्रह्मज्ञानम् अग्निदेव कहते हैं — अब मैं संसाररूप अज्ञानजनित बन्धन से छुटकारा पाने के लिये ‘ब्रह्मज्ञान’ का वर्णन करता हूँ। ‘यह आत्मा परब्रह्म है और वह ब्रह्म में ही हूँ।’ ऐसा निश्चय… Read More
अग्निपुराण – अध्याय 376 अग्निपुराण – अध्याय 376 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीन सौ छिहत्तरवाँ अध्याय समाधि समाधिः अग्निदेव कहते हैं — जो चैतन्यस्वरूप से युक्त और प्रशान्त समुद्र की भाँति स्थिर हो, जिसमें आत्मा के सिवा अन्य किसी वस्तु की प्रतीति न होती हो, उस ध्यान को ‘समाधि’ कहते हैं। जो… Read More
अग्निपुराण – अध्याय 375 अग्निपुराण – अध्याय 375 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीन सौ पचहत्तरवाँ अध्याय धारणा धारणा अग्निदेव कहते हैं — मुने ! ध्येय वस्तु में जो मन की स्थिति होती है, उसे ‘धारणा’ कहते हैं। ध्यान की ही भाँति उसके भी दो भेद हैं — ‘साकार’ और ‘निराकार’। भगवान् के… Read More
अग्निपुराण – अध्याय 374 अग्निपुराण – अध्याय 374 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीन सौ चौहत्तरवाँ अध्याय ध्यान ध्यानम् अग्निदेव कहते हैं — मुने ! ‘ध्यै चिन्तायाम्’ — यह धातु है। अर्थात् ‘ध्यै’ धातु का प्रयोग चिन्तन के अर्थ में होता है। (‘ध्यै’ से ही ‘ध्यान’ शब्द की सिद्धि होती है) अतः स्थिरचित्त… Read More