June 8, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 045 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ पैंतालीसवाँ अध्याय पिण्डिका आदि के लक्षण का वर्णन पिण्डिकालक्षणकथनम् भगवान् हयग्रीव कहते हैं — ब्रह्मन् ! अब मैं पिण्डिका का लक्षण बता रहा हूँ। पिण्डिका लंबाई में प्रतिमा के समान ही होती है, परंतु उसकी ऊँचाई प्रतिमा से आधी होती है। पिण्डिका को चौसठ कुटों (पदों या कोष्ठकों) से युक्त करके नीचे की दो पंक्ति छोड़ दे और उसके ऊपर का जो कोष्ठ है, उसे चारों ओर दोनों पार्श्वों में भीतर की ओर से मिटा दे। इसी तरह ऊपर की दो पङ्क्तियों को त्यागकर उसके नीचे का जो एक कोष्ठ (या एक पंक्ति) है, उसे भीतर की ओर से यत्नपूर्वक मिटा दे। दोनों पार्श्व में समान रूप से यह क्रिया करे ॥ १-३ ॥’ दोनों पार्श्वों के मध्यगत जो दो चौक हैं, उनका भी मार्जन कर दे। तदनन्तर उसे चार भागों में बाँटकर विद्वान् पुरुष ऊपर की दो पङ्क्तियों को मेखला माने। मेखलाभाग की जो मात्रा है, उसके आधे मान के अनुसार उसमें खात खुदावे। फिर दोनों पार्श्वभागों में समानरूप से एक-एक भाग को त्यागकर बाहर की ओर का एक पद नाली बनाने के लिये दे दे। विद्वान् पुरुष उसमें नाली बनवाये । फिर तीन भाग में जो एक भाग है, उसके आगे जल निकलने का मार्ग रहे ॥ ४-६ ॥ नाना प्रकार के भेद से यह शुभ पिण्डिका ‘भद्रा’ कही गयी है। लक्ष्मी देवी की प्रतिमा ताल (हथेली) के माप से आठ ताल की बनायी जानी चाहिये। अन्य देवियों की प्रतिमा भी ऐसी ही हो। दोनों भौहों को नासिका की अपेक्षा एक-एक जौ अधिक बनावे और नासिका को उनकी अपेक्षा एक जौ कम । मुख की गोलाई नेत्रगोलक से बड़ी होनी चाहिये। वह ऊँचा और टेढ़ा-मेढ़ा न हो। आँखें बड़ी-बड़ी बनानी चाहिये। उनका माप सवा तीन जौ के बराबर हो। नेत्रों की चौड़ाई उनकी लंबाई की अपेक्षा आधी करे। मुख के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक की जितनी लंबाई है, उसके बराबर के सूत से नापकर कर्णपाश (कान का पूरा घेरा) बनावे। उसकी लंबाई उक्त सूत से कुछ अधिक ही रखे। दोनों कंधों को कुछ झुका हुआ और एक कला से रहित बनावे। ग्रीवा की लंबाई डेढ़ कला रखनी चाहिये। वह उतनी ही चौड़ाई से भी सुशोभित हो। दोनों ऊरुओं का विस्तार ग्रीवा की अपेक्षा एक नेत्र 1 कम होगा। जानु (घुटने), पिण्डली, पैर, पीठ, नितम्ब तथा कटिभाग- इन सबकी यथायोग्य कल्पना करे ॥ ७-११ ॥ हाथ की अँगुलियाँ बड़ी हों। वे परस्पर अवरुद्ध न हों। बड़ी अँगुली की अपेक्षा छोटी अँगुलियाँ सातवें अंश से रहित हों। जंघा, ऊरु और कटि – इनकी लंबाई क्रमशः एक-एक नेत्र कम हो । शरीर के मध्यभाग के आस-पास का अङ्ग गोल हो। दोनों कुच घने (परस्पर सटे हुए) और पीन (उभड़े हुए) हों। स्तनों का माप हथेली के बराबर हो। कटि उनकी अपेक्षा डेढ़ कला अधिक बड़ी हो। शेष चिह्न पूर्ववत् रहें। लक्ष्मीजी के दाहिने हाथ में कमल और बायें हाथ में बिल्वफल हो।2 उनके पार्श्वभाग में हाथ में चँवर लिये दो सुन्दरी स्त्रियाँ खड़ी हों।3 सामने बड़ी नाकवाले गरुड की स्थापना करे। अब मैं चक्राङ्कित (शालग्राम ) मूर्ति आदि का वर्णन करता हूँ ॥ १२-१५ ॥ 1. नेत्र की जो लंबाई और चौड़ाई है, उतने माप को ‘एक नेत्र’ कहते हैं। 2. . मत्स्यपुराण में दाहिने हाथ में श्रीफल और बायें हाथ में कमलका उल्लेख है- पद्मं हस्ते प्रदातव्यं श्रीफलं दक्षिणे करे।’ (२६१। ४३) 3. . मत्स्यपुराण में अनेक चामरधारिणी स्त्रियों का वर्णन है— ‘पार्श्वे तस्याः स्त्रियः कार्याश्चामरव्यग्रपाणयः। (२६१ । ४५) ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘पिण्डिका आदि के लक्षण का वर्णन’ नामक पैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ४५ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe