June 12, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 062 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ बासठवाँ अध्याय लक्ष्मी आदि देवियों की प्रतिष्ठा की सामान्य विधि लक्ष्मीप्रतिष्ठाविधिः श्रीभगवान् कहते हैं — अब मैं सामूहिक रूप से देवता आदि की प्रतिष्ठा का तुमसे वर्णन करता हूँ। पहले लक्ष्मी की, फिर अन्य देवियों के समुदाय की स्थापना का वर्णन करूँगा। पूर्ववर्ती अध्यायों में जैसा बताया गया है, उसके अनुसार मण्डप अभिषेक आदि सारा कार्य करे। तत्पश्चात् भद्रपीठ पर लक्ष्मी की स्थापना करके आठ दिशाओं में आठ कलश स्थापित करे। देवी की प्रतिमा का घी से अभ्यञ्जन करके मूल मन्त्र द्वारा पञ्चगव्य से उसको स्नान करावे। फिर ‘हिरण्यवर्णां हरिणीम्० “ इत्यादि मन्त्र से लक्ष्मीजी के दोनों नेत्रों का उन्मीलन करे। ‘तां म आवह०” इत्यादि मन्त्र पढ़कर देवी के लिये मधु, घी और चीनी अर्पित करे। तत्पश्चात् ‘अश्वपूर्वाम्० “ इत्यादि मन्त्र से पूर्ववर्ती कलश के जल द्वारा श्रीदेवी का अभिषेक करे। ‘कां सोऽस्मिताम्० ” इस मन्त्र को पढ़कर दक्षिण कलश से ‘चन्द्रां प्रभासाम्० ‘ इत्यादि मन्त्र का उच्चारण करके पश्चिम कलश से तथा ‘आदित्यवर्णे० ‘ इत्यादि मन्त्र बोलकर उत्तरवर्ती कलश से देवी का अभिषेक करे ॥ १-५ ॥ ‘ ‘उपैतु माम्० ” इत्यादि मन्त्र का उच्चारण करके आग्नेय कोण के कलश से, ‘क्षुत्पिपासामलाम्-‘ इत्यादि मन्त्र बोलकर नैर्ऋत्यकोण के कलश से ‘गन्धद्वारां दुराधर्षाम्०” इत्यादि मन्त्र को पढ़कर वायव्यकोण के तथा ‘मनसः काममाकूतिम्० “ इत्यादि मन्त्र कहकर ईशानकोणवर्ती कलश से लक्ष्मीदेवी का अभिषेक करे। ‘कर्दमेन प्रजा भूता “ इत्यादि मन्त्र से सुवर्णमय कलश के जल से देवी के मस्तक का अभिषेक करे। तदनन्तर ‘आपः सृजन्तु० ” इत्यादि मन्त्र से इक्यासी कलशों द्वारा श्रीदेवी की प्रतिमा को स्नान करावे ॥ ६-७ ॥ तत्पश्चात् (श्री-प्रतिमा को शुद्ध वस्त्र से पोंछकर सिंहासन पर विराजमान करे और वस्त्र आदि समर्पित करने के बाद) ‘आर्द्रा पुष्करिणीम्० “ इस मन्त्र से गन्ध अर्पित करे। ‘आर्द्रा यः करिणीम्०” आदि से पुष्प और माला चढ़ाकर पूजा करे। इसके बाद ‘तां म आवह जातवेदो० ” इत्यादि मन्त्र से और ‘आनन्द’ इत्यादि श्लोक से अखिल उपचार अर्पित करे ॥ ८ ॥ ‘श्रायन्ती० ‘ आदि मन्त्र से श्री प्रतिमा को शय्या पर शयन करावे। फिर श्रीसूक्त से संनिधीकरण करे और लक्ष्मी (श्री) बीज (श्रीं) से चित्-शक्ति का विन्यास करके पुनः अर्चना करे। इसके बाद श्रीसूक्त से मण्डपस्थ कुण्डों में कमलों अथवा करवीर–पुष्पों का हवन करे। होमसंख्या एक हजार या एक सौ होनी चाहिये। गृहोपकरण आदि समस्त पूजन सामग्री आदितः श्रीसूक्त के मन्त्रों से ही समर्पित करे। फिर पूर्ववत् पूर्णरूप से प्रासाद- संस्कार सम्पन्न करके माता लक्ष्मी के लिये पिण्डिका निर्माण करे। तदनन्तर उस पिण्डिका पर लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करके श्रीसूक्त से संनिधीकरण करते हुए, पूर्ववत् उसकी प्रत्येक ऋचा का जप करे ॥ ९-१२ ॥ मूल मन्त्र से चित्-शक्ति को जाग्रत् करके पुनः संनिधीकरण करे। तदनन्तर आचार्य और ब्रह्मा तथा अन्य ऋत्विज ब्राह्मणों को भूमि, सुवर्ण, वस्त्र, गौ एवं अन्नादि का दान करे। इस प्रकार सभी देवियों की स्थापना करके मनुष्य राज्य और स्वर्ग आदि का भागी होता है ॥ १३-१४ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘लक्ष्मी आदि देवियों की प्रतिष्ठा के सामान्य विधान का वर्णन’ नामक बासठवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ६२ ॥ १. हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥ २. तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ ३. अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् । श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥ ४. कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ ५. चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ ६. आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः । तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ ७. उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह । प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ ८. क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् । ९. गन्धद्वारांदुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ १०. मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि । पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ ११. कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम । श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥ १२. आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे । नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ १३. आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥ १४. आर्द्रा यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् । सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥ १५. तांम आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥ १६. आनन्दमन्थरपुरन्दरमुक्तमाल्यं मौलौ बलेन निहितं महिषासुरस्य । पादाम्बुजं भवतु मे विजयाय मञ्जुमञ्जीरशिञ्जितमनोहरमम्बिकायाः ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe