June 23, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 147 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ सैंतालीसवाँ अध्याय गुह्यकुब्जिका, नवा त्वरिता तथा दूतियों के मन्त्र एवं न्यास-पूजन आदि का वर्णन त्वरितापूजादिः भगवान् महेश्वर कहते हैं — स्कन्द ! (अब मैं गुह्य कुब्जिका, नवा त्वरिता, दूती तथा त्वरिता के गुह्याङ्ग एवं तत्त्वों का वर्णन करूँगा — ) ‘ॐ गुह्यकुब्जिके हुं फट् मम सर्वोपद्रवान् यन्त्रमन्त्रतन्त्रचूर्णप्रयोगादिकं येन कृतं कारितं कुरुते करिष्यति कारयिष्यति तान् सर्वान् हन हन द्रष्ट्राकरालिनि ह्रैं ह्रीं ह्रूं गुह्यकुब्जिकायै स्वाहा ह्रौं, ॐ खें वों गुह्यकुब्जिकायै नमः ।’ (इस मन्त्र से गुह्यकुब्जिका का पूजन एवं जप करना चाहिये।) ‘ह्रीं सर्वजनक्षोभणी जनानुकर्षिणी ॐ खें ख्यां ख्यां सर्वजनवशंकरी जनमोहनी, ॐ ख्यौं सर्वजनस्तम्भनी, ऐं खं खां क्षोभणी, ऐं त्रितत्त्वं बीजं श्रेष्ठं कुले पञ्चाक्षरी, फं श्रीं श्रीं ह्रीं क्षे वच्छे क्षे क्षे हूं फट् ह्रीं नमः । ॐ ह्रां वच्छे क्षे क्षें क्षों ह्रीं फट् ‘ ॥ १-४ ॥’ यह ‘नवा त्वरिता’ बतायी गयी है। इसे बारंबार जानना (जपना) चाहिये। इसकी पूजा की जाय तो यह विजयदायिनी होती है। ‘ह्रौं सिंहाय नमः ।’ इस मन्त्र से आसन की पूजा करके देवी को सिंहासन समर्पित करे। ‘ह्रीं क्षे हृदयाय नमः ।’ बोलकर हृदय का स्पर्श करे। ‘वच्छे शिरसे स्वाहा।’ बोलकर सिर का स्पर्श करे — इस प्रकार यह ‘ त्वरितामन्त्र’ का शिरोन्यास बताया गया है। ‘ ह्रीं शिखायै वषट्।’ ऐसा कहकर शिखा का स्पर्श करे । ‘क्षें कवचाय हुम्।’ कहकर दोनों भुजाओं का स्पर्श करे । ‘ह्रूं नेत्रत्रयाय वौषट् ।’ कहकर दोनों नेत्रों का तथा ललाट के मध्यभाग का स्पर्श करे। ‘ह्रीं अस्त्राय फट्।’ कहकर ताली बजाये। हींकारी, खेचरी, चण्डा, छेदनी, क्षोभणी, क्रिया, क्षेमकारी, हुंकारी तथा फट्कारी — ये नौ शक्तियाँ हैं ॥ ५-७१/२ ॥ अब दूतियों का वर्णन करता हूँ। इन सबका पूर्व आदि दिशाओं में पूजन करना चाहिये — ‘ह्रीं नले बहुतुण्डे च खगे ह्रीं खेचरे ज्वालिनि ज्वल ख खे छ च्छे शवविभीषणे चच्छे चण्डे छेदनि करालि ख खे छे खे खरहाङ्गी ह्रीं क्षे वक्षे कपिले ह क्षे ह्रूं क्रूं तेजोवति रौद्रि मातः ह्रीं फे वे फे फे वक्त्रे वरी फे पुटि पुटि घोरे ह्रूं फट् ब्रह्मवेतालि मध्ये’ (यह दूती मन्त्र है) ॥ ८-९ ॥अब पुनः त्वरिता के गुह्याङ्गों तथा तत्त्वों का वर्णन करता हूँ। ‘ह्रौं ह्रूं हः हृदयाय नमः।’ इसका हृदय में न्यास करे। ‘ह्रीं हः शिरसे स्वाहा।’ ऐसा कहकर सिर में न्यास करे। फां ज्वल ज्वल शिखायै वषट्।’ कहकर शिखा में, ‘इले ह्रं हूं कवचाय हुम्।’ कहकर दोनों भुजाओं में ‘क्रों क्षं श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्।’ बोलकर नेत्रों में तथा ललाट के मध्यभाग में न्यास करे। क्षौं अस्त्राय फट्।’ कहकर दोनों हाथों से ताली बजाये अथवा ‘हुं खे वच्छे क्षे ह्रीं क्षे हुं अस्त्राय फट्।’ कहकर ताली बजानी चाहिये ॥ १०–१११/२ ॥ मध्यभाग में ‘हुं स्वाहा।’ लिखे तथा पूर्व आदि दिशाओं में क्रमशः ‘खे सदाशिवे, व ईशः, छे मनोन्मनी, मक्षे तार्क्षः, ह्रीं माधवः, क्षें ब्रह्मा, हुम् आदित्यः, दारुणं फट् का उल्लेख एवं पूजन करे। ये आठ दिशाओं में पूजनीय देवता बताये गये हैं ॥ १२-१३ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘त्वरिता- पूजा आदि की विधि का वर्णन’ नामक एक सौ सैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १४७ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe