October 10, 2015 | Leave a comment अमोघ लघु प्रयोग नवार्ण-मन्त्रः- “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।।” ‘ऐं’ – बीजमादीन्दु – समान – दीप्तिम् । ‘ह्रीं’ सूर्य – तेजो – द्युतिं द्वितीयम् ।। ‘क्लीं’ – मूर्तिः वैश्वानर – तुल्य – रुपम् । तृतीयमानन्द – सुखाय चिन्त्यम् ।।१ ‘चां’ शुद्ध – जाम्बु – वत् – कान्ति – तुर्यम् । ‘मुं’ पञ्चमं रक्त – तरं प्रकल्पयम् ।। ‘डां’ षष्ठमुग्रार्ति – हरं सु – नीलम् । ‘यैं’ सप्तमं कृष्ण – तरं रिपुघ्नम् ।।२ ‘विं’ पाण्डुरं चाष्टममादि – सिद्धिम् । ‘चें’ धूम्र – वर्णं नवमं विशालम् ।। एतानि बीजानि नवात्मकस्य । जपेत् प्रद्युः सकल – कार्य – सिद्धिम् ।।३ विधिः- सकल कार्य की सिद्धि – सफलता हेतु, लक्ष्मी – प्राप्त्यर्थ या किसी कार्य में विघ्न निवारण के लिए उक्त अमोघ प्रयोग है। उक्त ३ श्लोक का कम-से-कम १०८ पाठ नित्य प्रातः – सायं, घृत – दीपक के सामने, रक्त – आसन पर बैठकर, २१ दिनों तक करें। यह साधना शुक्ल पक्ष अष्टमी अथवा किसी भी शुभ दिन से प्रारम्भ की जा सकती है। ‘नवार्ण-मन्त्र’ की दीक्षा प्राप्त कर मन्त्र का जप भी किया जा सकता है, किन्तु जब तक दीक्षा प्राप्त न हो, तब तक मात्र उक्त तीन श्लोकों का पाठ कर लाभ उठाया जा सकता है। Related